मोहनिक् कारन घर बरबाड्

संगम चौधरी
५ माघ २०७८, बुधबार
मोहनिक् कारन घर बरबाड्

एक्ठो सुग्घुर घर रहठ् । डेख्नामे बरे सुहाओन, सबजे ओकर टारिफ कर्थै । रुपरंग फेन सुग्घुर, सबजे नजर लगैठैं । घरेम् सबकुछके सुबिढा बनाइल रहठ् । सबजे कठै इ घर बनुनिया बरे सिपार हो । संसारके सबसे सग्घुर ओ महँग घर कलेसे फरक नै परि । उहे घरेम् बिर बाहादुर ओ मोहनिक् डेरा रठिन् । हुइना टे बिर बाहादुर अपनेहे उ घरेम डेरा लेहे नै आइल रहठ् , उहिहे मोहनि अपन ठन नन्ले रहिन । बिर बाहादुर धेर जहनके मयालु रलक ओ ओइनहे बिरके मैयम रमाइठ् डेख्के मोहनिहे फेन बिरके मैयक् नसामे रमैनास लग्ठिन । एक साँझ मोहनि बिरहे बास करे बलैलिन, उहे राटभर मोहनि बिरके प्यारके नसामे आनन्द उठैलिन ओ उहे राटसे मोहनि बिर हे अपन घरेम् डेरा डैडेलिन । आब मोहनि ओ बिर राटदिन एक्के सँगे रहेलग्लै । मोहनि बिरहे बहुट मैया करेलागल रहिन ओ बिर अपन प्यारके नसामे मोहनिहे अपन अधिनमे पार सेकल रहे । 

बिर एकठो किसानके घरेम जलम लेके ओकर सेवा सुसारसे बाहरठ् , जवान हुइठ ओ उहिहे बरे मजासे स्याहार सुसार करके ढैले रहठ् । ढिरेढिरे बिर गाउँ सहर बजारके घर घर पुगेलागल । मनै बिरहे बरे मजा माने लग्लिस ओ खोजि करेलग्लिस् । बिर मनैनके मन जित्नामे सफल हुइलागल, ओहे मारे किसन्वा आउर सेवा करेलागल, उहि माहा बिर ठानेलागल् । बिर बाहादुर ढिरे ढिरे संसार भर धेर मनैन ठन पुगेलागल् , आहे मारे हुइ मोहनि उहि आउर ज्याडा मैया करेलागल रहिन् । बिर ओ मोहनिक् संम्बन्ध बरे गहिर होगैल रहिन् , बिर अत्रा प्यारा होगैल रहठ कि मोहनि राटदिन बिरके संग भुलल् रठिन् । मोहनि जब सानसे बिरहे मैया करेलग्ठिन उहे बेला घरेमसे ढुवाँ उरेलागठ् , जैसेकि घरेम आगि लाग्गैल वा । मोहनि बिरके नसामे बेहास होजैठिन् ओ उ ढुवाँ फेन सान्ट होजाइठ् । बिर ढेर घरेम बसेरा लेहेपुगठ् ओ हरेक् घरेम उहे मेरिक् आगिक् ढुवाँ निकार डेहठ् । जस्टके मोहनि उहि मैया करठिन् आस्टके ओरे जे फेन करठै । मोहनि बिरके नसामे बरेजोर भुलल् रठिन, बिर ढेर जहनके जिन्गि ओइनके घर परविार खटम् करासेक्ले रहठ् मने सबकुछ जानके फेन मोहनि उहि  छोरे नै सेक्लेरठिन् , टस्टे अपन रना घरेम् डेराडेले पलिरठिन् , उहि आउर मैया कर्ठिन् । बिर के कारन अपन रना घर झोल्ला सेकल रठिन् । जहोर टहोर घर सरे लागल रहिन् , बरे कमजोर हासेकल रठिन् हालठ् , टहुँपर अपन मनमानिम् चल्टिरठिन् । घर खटम् होजिठिन् टहुँपर बिर हे छोरे नै सेक्ना । विर मोहनिक् कारन अपने टे जरठ् मने उ घर सखाप पारडेहठ् । जानल बुझल मनै बिर हे अपन घरेम् बसेरा नाडेउ घर बरबाड् पारठ् कठै , मने अभिन फेन बिरके मैया जालमे फसल बटै ढेर जने । बिरके गल्टि टे नै हुइस् मने उहि बसेरा डेहुइया बुझे पर्ना बा । 

पाठक् मित्र अभिन सम् इ कथा से अलमलमे बटि कि ? आब ना होइ । इ कथा के पात्र बिर ( माखुर ) हो , मोहनि मनैनके मुह हो , घर मनैनके शरिर हो , जोन संसारमे सबसे अमुल्य बा । 

माखुर एकठो किसान मनैया अपन खेत्वामे उत्पादन करठ् , उहि मजासे सेवा सुसार करठ् , बर्हाइठ ओ खोब सुसार करके ढारठ् ओ गाउँ, सहर, बजार के मनैनके घर घर पुगाइठ् । उहे माखुर मनै हुक्का, चिलम् , चुरोट, बिडि मे भरके सुरकठै । ओ ढुवाँ उरैठैं , उहे ढुवाँ मनैनके जिउ हे सखाप पारठ् , भयानक् क्यानसर जसिन रोग के सिकार बनाडेहठ् । सब कुछ जानके फेन मनैनके मुह माखुर हे छोरे नै सेकल हो । माखुर ढेर जहनके बलबच्चनके घर पविार बिगार सेक्ले बा । मने जाने कब अक्किल अइना हो मनैन के । ओराइल ।

मोहनिक् कारन घर बरबाड्

संगम चौधरी