बेलापरसुवासे लखलऊसमके परगा

सागर कुस्मी
२२ पुष २०७९, शुक्रबार
बेलापरसुवासे लखलऊसमके परगा

अभिन छोटे रहुँ । मने जानेजुकुर होगैल रहुँ । बुडुक् महा डुलारु रहुँ । छोटेमे बुडुक् संग कबु बन्सी लगाइ टे कबु पहुनी खवाइ हुइल । इ संस्मरणमे इन्डिया घुम्लक् लावा ओ पुरान बातचित आझ इ लिख्नौटीमे लिख्नास लागल । इहे गैल २०७९ जेठ १४ गते धनगढीसे भारतके बेलापरसुवासम जैना मौका मिलल रहे । इ अवसर जुरैले रहिंट, मुक्तककार सत्यनारायण दहित । भेरभेड्डा मर्मत कैना ओ गोटियारिनसे भेंट कैना बहनामे धनगढीसे जेठ १४ गते साँझके जैना तयार हुइली । वहाँ पुगट पुगट साँझ ७ बज्गैल रहे । ओहे दिन हुँकार गोटियारिनके डेंउटा बनैना रहिन । डेंउटा कैसिक बनैठैं उ फेन जानगैल ओ प्रत्यक्षफेन डेख्गैल । डोसर बिहान ओहेबेर हौसलपुर गाउँ हेर्ना मौका फेन मिलल । इ मोर पहिलबार हो उ ठाउँ गोरा टेक्लक । ओहे बिहान दिनके तेकुलिया बजार फेन हेर्ना मौका मिलल ।

भारतमे जैबो टे वहाँक थारु फेन बहुत दिलदार लागठ । हरेक घरमे एक ना एक जाने सरकारी जागिर रहल मनैं । बिना कामके कोइ नाही । खाली कोइ नैरना डेख्गैल । मने नेपालमे धेर बेरोजगार बटैं ओ कठी फेन । मने रोजगार हुइलक अप्नही मेहनत ओ पस्ना चुहाइ परठ कना पाठ वहाँक थारुनके काम कराइ शैली, लवाइ खवाइ ओ चालचलन डेखके ।

मै छोट रहुँ टबे, चन्दनचौकी लग्गेक हुइलक् मारे मोर बुडु चन्दनचौकी बजार खेले खोप लैजाए । छुट्की फुइक् घर खोनपुरवा गाउँसे पैडर आढा घन्टा लागठ चन्चौकी पुग्ना । कबु रौनक् मेला हेरे जाइ टे कबु जलेबी खवाइ बुडु चन्दनचौकी लजाए । एक फेरा पंचपेंरा बुडुक् सालक् घर पहुनी खाइ गैल रहि । बुडु बुडी ओ मै । टब्बेहें टिलक् मिठाइ खोब खागैल । सरसिकार मास मच्छी टे जुनक् जुन । एकचो पलिया फिलिम हेरे गैली कमल टाकिमे । दिनभर बैठल बैठल जिउ मिच्छागैल रहुँ । ढिंर्ह फुलके हैरान । ऐसा ठुस्की पाड निकरगैल कि सरडारीनके नाक छोप्ना कररा । ओहे बात समझ समझ अभिनसम हाँसी लग्टी रहठ । बुडुक् चोंर्हयाइल रहुँ खरबुज्जा बिलारिक् सिकार टे खोब खाइ मिले ।

एक फेरा इन्डियाके राजधानी नयाँ दिल्लीमे घुम्ना मौका जुरल रहे । हेर्ना ठाँउ मन्से लोटस टेम्पल फें एक हो । इ मन्दिर पुरैना फुला हस (कमलके फुला) जस्का टस बनाइल बा । महा सोहावन बिल्गाइठ । कमल फुलाके आकारमे सिर्जाइल बा इ मन्दिर । सन १९८६ सालमे बनल इ मन्दिरके भिट्टर कौनो फेन भगवानके मुर्टी नै बिल्गाइठ । भिट्टर सराटोल महा भन्डो हल बा । यहाँ कौनो धर्मके मनैन रोकटोक नैहो । जौन धर्मके मनै जाइ मिलठ । भिट्टर जाके ५ मिनेतसम् ध्यान डेके बैठे परठ । अपन माँगन कैबो टे भगवान पूरा कर्ठै कहिके जनबिस्वास बा । यहाँ जाके ध्यान कैलेसे सारा मनके सिहरा फेन उटरजाइठ । मन हल्लुक लागठ । हुइना टे दिल्लीमे बहुट ठाउँ बा घुम्ना मेरिक । जस्टे कुटुब मिनार, लोटस टेम्पल, पुरान किल्ला, लाल किल्ला, राजघाट, इन्डिया गेट आदि । दिल्ली घुम्ना मौका जुरैले रहिंट साहित्यकार गोचा हिरालाल चौधरी । ओहकान गाडी बिगरके सामान लेहे गैल रहि ।

ओस्टेके एक्चो फागुनके महिना मचल रहे । कपिलवस्तुक् संघरिया श्याम सिटि फोनमे बलाके मिछवइले रहिंट । शिवरात्रीके डोसर बिहन्नी उठ्के धनगढीसे कपिलवस्तु ओर नेंग्डेनु । बिहान ५ बजे नेगल बस ३ बजेओर चार नम्बर जितपुर कपिलवस्तु पुगाइल । ओहाँसे नास्ता खाखुके झोझर डेलि बुटवल । ओहाँसे फे सरासर नाम्डेलि भैरहवा । तालिम बा कहिके बलाबुलुके टे सुनौली नाका छिराके गोरखपुर पुगा डरलैं । साँझ सात बजे गोरखपुर पुग्गैली । बिजनेस सम्बन्धि एक अँठवार तालिम रहे । बिचमे एक दिन अँटवारके बिदा हुइलेक ओर्से बैठल डेरा ठनसे ८ किलोमिटर डुर गोरखनाथ मन्दिर घुम्ना योजना बनैली ।

गोरखपुरके चर्चित ठाउँ मन्से गोरखनाथ मन्दिर फेन एकठो चर्चित धार्मिक स्थल मानजाइठ् । मन्दिरमे पुजा कैलेसे सोचल काम पुरा हुइठ कहिके जनविस्वास बावै । आँजर पाँजरके फुलासे सजावट हुइल बा । मन्दिरके डख्खिन ओर लाउमे बैठ्के सयर कर्ना पोखरी फेन गजब मोहन्याइठ पर्यटक लोगन । डस डिनके बैठाइ फेन बहुट उपलब्धी मुलक रहल । ओहे तालिम कुछ कर्ना हिम्मत ओ आँट बर्हल । गोरखपुरसे घरे लौटे बेर गोरखपुर रेलवे स्टेसनसे मैनाली हुइटी पलिया सम डु डिनके रेल यात्रा हुइल । अभिनसमके सबसे लम्मा रेल यात्रा इहे हो । हुइना टे इहिसे पहिले २०५० साल ओर हुइ सायद बेलुवा बर्दियासे बिछियासे चन्दनचौकी ओ चन्दनचौकी से बिछिया रेल यात्रा कैसेक्ले बटुँ ।

खाली रहल समयहे सदुपयोग करुँ कहिके भारतके श्रावस्तिक् थारुनके बारेम जानकार लेहक लाग खोज अनुसन्धान करे २०७६ बैसाख १६ गते मोतीपुर ओ भजकाही गाउँ जैना मौका मिलल रहे । सोम डेमनडौरा गोचक् गोचाली खाजाघर मन्से कलुवा खाके रुपैडियाहे बहराइज ओर लग्नु । बहराइजमे संघरिया कर्मवीर चौधरी साँझके बरा मजासे स्वागत करलैं । डोसरे बिहन्नी उठ्के मोतीपुर सिरसिया ओर लग्नु । वहाँ कलुवा खैना व्यवस्था कर्मवीर फोन कैके जना रख्ले रहिंट । राम करतार चौधरी मास्टर दिन भर अपन गाउँ घुमैनैं । ओहे क्रममे मोतीपुरके सुरेन्द्र चौधरी लगायत संघरियनसे वहाँ घुम्ना मौका मिलल रहे ।

ओहे साँझके ओहैंक् मिलनसार संघरिया आशिष चौधरीके घर भचकाहीमे डुर्ही डब्ना मौका मिलल । नाउँ किल सुनल रहुँ । जिन्गीमे पहिल बार अगैक् चट्नीक् स्वाद लेहे मिलल् । गोडामिल स्वादके अगै बनुवँम रना एक मेरके फलके रुख्वा हो । इ बैसाख जेठमे मिलठ । भचकाही गाउँमे हरेक साल डेवारीमे थारुनके खेलकुद हुइठ । बलरामपुरमे थारुनके बस्टी बा । भारतमे थारुनके बस्टी रहल ठाउँ जैना इच्छा कहिया जुरठ पटा नैहो ।

सांस्कृतिक कार्यक्रमसे सिकाइ, जहाँ साहित्य ओहाँ पहिचान । हरेक समुदायके अपन अपन छुट्टे जीवनशैली रहठ । भारतमे फे थारु लोग सांस्कृतिक जागरण कार्यक्रम करठैं । मोतीपुर सिरसिया, चन्दनचौकी लगायत टमान ठाउँमे कार्यक्रम कर्टी आइल बटैं । कार्यक्रममे पहुना ओइनहे आसन ग्रहण नैकैजाइठ । पहुना लोग अप्नही मन्चमे आके अनुशासित होके बैठल रठैं । कोइ पहुना भासन करल कलेसे ४÷५ मिनेट किल बोल्ठैं । बोल्ही टे फे शिक्षासे जोरल बात बट्वैठैं । मने हमार नेपालमे टे नेता लोग एक्के जे एक घन्टासे जेडा बोल्ठैं । आसन ग्रहण नैकरैलेसे झोक्कैना । कार्यक्रममे मजासे नैबैठना । भारतमे कलाके बहुत मान सम्मान हुइठ मने यहाँ टे कुछ नै । अपन काम अप्नही कर्ना बानी, एक्चो कलेसे बात मानजैना, एक डोसरहे सम्मान कर्ना स्वागत शैली गजब लागल ।

कार्यक्रममे जैबो टे ढेर जहनसे चिन्हजान हुइठ । कोइकोइ संघरियनहे मजा गुन लगैबो टे हरदम सम्झठैं ओ कामफें लगठैं । लखनऊमे फेन आब भारतके टमान ठाउँके थारु बैठल पाजाइठ । मै लखनऊके बसाइमे डा. बलराम चौधरी, मंगल थारु लगायत संघरियन ढेर सहयोग करठैं । एक्चो फोन कैके कलेसे फटाफट बात मानजैना सहयोगी बानीहे सलाम कर्ही परी ।

ओसिक टे इन्डिया घुमाइ ढेर ठाउँ नैहो । टब फेन यादगार पल जेडा बा । खटीमाके साहित्यकार डा.राज सक्सेनासे फे सैगर उँकवारभेंट हुइल बा । ओहोर पुर्णागिरी दर्शन गैलक् फेन सम्झना मनहे किलकोर डेहठ । बेलापरसुवा, पलिया, बिछिया घुम्लक् फेन बहुट सम्झना बा ।

घुम्ना किल बरि बात नैरहठ यात्रामे । लावा लावा मनैंनसे चिम्ह्जान लावा लावा ठाँउक् बारेम् ज्ञानगुणके बात फेन ढेर चाज सिखे मिलठ । मनैं अपन छाइ छावन घुमक् रोक लगैठैं । बिग्रक् डरैठैं । मने मै टे कठुँ हम्रे नैघुमके नै जन्ठी । किताबी ज्ञानसे जेडा ज्ञान यात्रा कैके फे सिखे मिलठ् । सहि ओ साकारात्मक सोंच लेके नेंगी हरेक परगामे सफलता मिलि । मनैं जुन घुम्लक् गरयैठैं अपन लर्कन । जबसम बाहेर ठाउँ नैडेखैबी टबसम् बाहिरी ज्ञान बिटोरे नैसेक्जाइठ् । चली एक परगा अपनेनके फेन पर्यटकीय ठाउँ हेरे जाइ ।

(लेखक थारु भासा साहित्यमे खोजमुलक विषयमे कलम चलैटी आइल बटैं ।)

बेलापरसुवासे लखलऊसमके परगा

सागर कुस्मी