ट्रि–हाउस

छविलाल कोपिला
२४ पुष २०७९, आईतवार
ट्रि–हाउस

ट्रि–हाउस
अर्थात रूख्वक्–घर !
चिरैंचुरंगन् रुख्वक् डँरिया–डँरियामे ठाँठ बनैठैं
रूख्वक् डोन्डरम् ठाँठ बनैठैं
ओ, जिठैं अपन जिनगी
मने अझकल,
मनै फेन रूख्वामे ठाँठ बनाइ भिंरल बटैं
लकिन, मनैनके ठाँठहे ठाँठ नैकहिजाइठ
मनैनके ठाँठहे टे
ट्रि–हाउस अर्थात रूख्वक्–घर कहिजाइठ ।

ट्रि–हाउस
जौन दिनसे ठर्हियाइल,
बनुवँक् बीच भागमे
ओकर मैयाँ बनुवाँसे रहिगैलिस
जंगली जीवजन्तुनसे रहिगैलिस
ओ, ओटरे लस्गर मैयाँ गाउँ ओ मनैनसंगेफें रहिगैलिस ।

उ कौनो रात
जोगनी ओ भुस्का किरनसंगे बिटाइठ
कौनो रात
हाँठी, गैंरा ओ बाघनके बोल सुनके निडाइठ
टे कौनो रात
आँढी बयाल ठाम्ह्के ओ बर्खक पानी ओर्हके कटाइठ ।

कबुजबु उ मडियाकेसंग रहठ
ओ, रहठिस ओकर संग कुछ मानव आकृति
रात कट्टी जाइठ
मडिया गिलासके उप्पर अँख्नेइटि रहठ
कुछ खिल्ली चुरोतके ढुवाँ फुर फुर उरठ
ओ, ढुमिल आकृतिसे
जब निकरठ हाँसिक गुरछर्रा
उ मुस्कुराइठ
काहे कि
मेहफिलमे भेज–ननभेज संवाद चल्टि रहठ ।

कौनो रात प्रेमिल लोग रठैं
जोन्हिंयँक मुस्की संगे
प्रणयके डन्डुर संवाद चलठ
यौनक्रिडाके हलकोरा आइठ
ओ, रातभर दिल ठाम्हके बैठल अनुभूति बटिस ओकरसंग ।

हरेक दिन बिहान हुइठ
ओ, साँझ हुइठ
अइसिके,
बिहान ओ साँझ हुइना क्रम चल्टि रहठ
मने, ट्रि–हाउस भर सेमरामे आर लागके
ठह्र्याल रहठ ।

लमही-३, मजगाउँ, डेउखरदांग
अनुवाद:– सागर कुस्मी

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