क ख रा नै पहर्के छावा फें बनल कमैयाँ

अंकर अन्जान सहयात्री
२५ फाल्गुन २०७९, बिहीबार
क ख रा नै पहर्के छावा फें बनल कमैयाँ

गजल
टेंर्ह्वा हर पकरके बाबा फें बनल कमैयाँ ।
क ख रा नै पहर्के छावा फें बनल कमैयाँ ।

आघे-पाछे घुम्टि हाँ हजुर कहटी-कहटी,
गुलामी करकर्के काका फें बनल कमैयाँ ।

स्कुल पर्हे नै जाके गुल्लिडन्डा खेलखेल,
यि जिन्गि बिगार्के डाडा फें बनल कमैयाँ ।

एक बोटल डारु और डुइ बुट्टि सिकारमे,
मिठाइहस् बिक्के मामा फें बनल कमैयाँ ।

डुइ बोरा धानकेलाग् कागटिक तमसुकमे,
औंठाछाप लगाके आजा फें बनल कमैयाँ ।
अंकर अन्जान सहयात्री
जानकी ८ जबलपुर कैलाली

क ख रा नै पहर्के छावा फें बनल कमैयाँ

अंकर अन्जान सहयात्री