खन्टाइल मैंयाँ

बिरेन्द्र चौधरी जलन
२९ फाल्गुन २०७९, सोमबार
खन्टाइल मैंयाँ

प्रेम कथा
खन्टाइल मैंयाँ

जीवनके आरोह अवरोहहे आत्मसाथ कर्टी आघे बहर्ना क्रममे जिन्गी कहोर लडियाहस बहल टे कहोर पहारहस भट्कल ओ कहोर भिरहसक अल्झल । आझ मोर जिन्गी कहोर नैसोंचल भिरहस हुइल बा । मै जीवनमे जिन्गीसंग बाँचक लाग कोनो सम्झौता नैकरल नैहो । कर्नु ढेर सम्झौता, कर्नु जिÞन्गीक संगे मै ।

टभुन मै जिÞन्गीम कबु फें शान्तीके सास फेरे नैपैनु । हाँसी खुशीसे बैठे नैपैनु । मै ढिरे ढिरे आघे बहर्टी बटँु जिÞन्गीक यात्रा समझके । शिलासे अकस्मात घोडाघोडीमे भेंट हुके मोर जिन्गीमे एक्ठो लावा मोड लेहल । उ घटनासे फेन एकचो मोर जिन्गीम ढुम्मिल ओ पिडादायी उल्टाडेहल बा । शिलासे कोनो समयमे मोर जिन्गीक सपना साटल रहे । ओसिक हेर्लेसे ओहकार ओ मोर जिन्गी सुखद् सम्बन्धके पर्याय जो बनल रहे । मने आझ मोर सपना धरापमे परल बा । शिलक संगे जोरल मोर सपनाके सुन्दर महल एक एक कर्के भटकगिल बा । मोर जिÞन्गीक डगर भटकगिल बा ।

आब यहाँसे कहाँ जिना ? महि कुछ पटा नैहो । मै अन्यौलमे आघे बहर्टी बटँु । मनैनमे कत्रा हलहल ओ कत्रा ढेर परिवर्तनके चरण एकसे एक कर्टी हुइटी रहठ । काल्हिक मायालु ओ चुल्बुली शिलामे आझ ढेर परिवर्तन आइल बटिन । अत्रा मायालु लागीन । मने आझ ढेर दिनके बाड शिलासे भेंट हुइल महि कहोर कहोर नैमजा महसुस हुइल । टभु फें मै अपनहे सम्हर्नु । एक मन टे कहटेहे कहुँ भाग जाउ, ओहकार नजर झुक्वाके । मने नैसेक्नु मै ओसिक करे । पलपल महि शिलाके याद सम्झना सटैटी रहठ । टब मै एकचो खोब हेरठुँ । बिरेन्द्र । कत्रा परिवर्तन हुइल बटो ना ? एकाएक कानमे बजल मधुर आवाज । घुम्के हेरठँु ओहे शिला महि हेर्के हँस्टी रठी । ठाकल बिरेन्द्र, प्यारमे हारल बिरेन्द्र, जिÞन्गीक प्रिय चिज हेर्वाइल बिरेन्द्र । परिवर्तन नैहुके का का हुइ टे । नै कहँु कटीकटी आजाइठ मुहमसे यी सब शब्द । आब टे जिन्गीक बारेमे लेखाजोखा करे छोर सेकले बटँु ।

समयके भेलमे मै फें दुबा डेहल बटँु जिन्गीहे । बर्खायÞामके लडिया हो मनैनके जिन्गी । किनार मोर्के नेंग डेहठ कबु कहोर टे कबु कहोर । पटा नैहो कहाँ पुगके ओराइठ यी जिन्गीक यात्रा ? कहाँ पुगके ओराइठ मै नेंग्टी रहल यी डगर ? शिला एक्कासी भाबुक हुइली । मनैनके जिन्गीमे समवेदना ओ संबेगके महत्व हुइठ कहंै कबि हँुक्रे । मने आझ महि ओहे समवेदना ओ संबेगसे सटैटी रहठ ओ साेंच्टी रठुँ मोर प्यारी शिलाहे मजा हुइहिन कना बिस्वासमे बैठल बटँु । मोर जिन्गी अझकल कोनो गति पक्रे नैसेकठो । मै समयके पैलाहे पछयइटी नेंग्टी बटँु । समय जोहोर डौराइठ ओ.हरे डौर्टी बटुँ । कहुँ कलेसे बहकटी बटुँ ।
शिलासे भेंट हुके फें मै बातचितके क्रमहे बर्हाइ नैसेकठुँ । अत्रैमे एकठो लौडा आके कहल शिलाहे हलहल करो ना । ढि़ला हुगील । टब जाके जाइटँु ना कहिके शिला महिसे बिदा हुके उ लौडक संग गैगीली । सायद उ लौडा शिलाके जीवन संघरिया हुइहिन । महिसे ओकर चिनजान फें नैकरैली । कर्रा पर्के हुइ उ ओसिक कर्ली । हेर्टी हेर्टी उ मोर यी आँखीसे हेरागिली । शिला कहिके बलैना मन लागल मने मै उ बेलम् हिम्मत करे नै सेक्नु ।
बिरेन्द्र चौधरी जलन
घोडाघोडी ४ गणेशपुर कैलाली

खन्टाइल मैंयाँ

बिरेन्द्र चौधरी जलन

घोडाघोडी ४ गणेशपुर कैलाली