अन्तरवार्ता
‘पैंसा नैकमैलेसे फेन बहुत पाठक कमैले बटुँ’
चितवन जिल्लाके भरतपुर महानगरपालिका वडा नम्बर २५ शुक्रनगरके साहित्यकार मनोज अज्ञात, चर्चित उपन्यास ‘टुकी’ ओ ‘टुवरा’के स्रस्टा हुइँटैं । बाह्रखरी बुक्स काठमाडौंसे आयोजित राष्ट्रव्यापी खुल्ला आधुनिक कथा प्रतियोगिता २०७७ मे उहाँके कथा ‘झोरी’ उत्कृष्ट २५ भिट्टर पर्ना सफल हुइल रहे । राष्ट्रके चर्चित साहित्यकार मध्ये एक हुइँटैं मनोज अज्ञात । बाबा शिखाराम महतो ओ डाइ बिक्रमिया थारुके कोखसे २०३९ साल फागुन महिनाके २८.गते इ धर्तीमे गोरा टेकलैं । उहाँका फुटकर कथा, लघुकथा राष्ट्रिय पत्रपत्रिका ओ अनलाइन पोर्टलमे निरन्तर प्रकाशित हुइल बटिन । उहाँले गजल, कविता लेखनमे फेन पोख्त बटैं । थारु पत्रकार संघ नेपाल, चितवनके उपाध्यक्ष समेत रहल उहाँ एक कुशल रेडियोकर्मी फेन हुइँटैं । थारु साहित्यिक क्षेत्रमे नाम ओ दाम कमाइल अब्बल लेखकके रुपमे स्थापित हुइल बटैं । ओस्टेके हरचाली साहित्यिक त्रैमासिक, निसराउ साप्ताहिक लगायत तमान पत्रिकाके आजिवन सदस्य फेन हुइँटैं । एहे क्रममे समसमायिक विषयमे निसराउ साप्ताहिक पत्रिकाके प्रधान सम्पादक सागर कुश्मीसे करल छोट्मिठ् बातचित यहाँ प्रस्तुत कैल बा ।
१.अप्ने लेखन क्षेत्र ओर कहियासे लगली ? लिख्ना आशिर्वाद कहाँसे पैलि ?
मै लेखन क्षेत्रमे लागल ८÷९ कक्षा पर्हेबेर हो । ओहेबेर मै रोजाना लिखुँ । दैनिक बिचबिचमे भावना, कविता जैसिन लेख रचना लिख्टी रहुँ । एसएलसी डेके खाली समयमे मै एकठो लघुउपन्यास फें लिखले रहुँ । लिख्ना हौसला भर अपन डाइसे पैनु ।
२.अप्नेक बाल्यकाल कैसिक बिटल बटा डिना ? कब्बु नैबिस्राइ सेक्ना जिन्गीके सबसे यादगार पल का बा ?
मोर बाल्यकाल सामान्य बिटल । गाउँघरमे रहल मध्यमवर्गीय लर्कापर्का जस्टे बिटल । बिस्राइ नैसेक्ना उ बेलाके क्षण कहेबेर सायद ४÷५ कक्षामे पर्हेबेर हो, छोट लर्का मै बाबक् कोटके गोझुम् रहल पैंसा मध्ये एक पत्ता चोराके पाउरोटी किनके फिर्ता हुइल सक्कु पैसा मोर हाँठम् परल रहे । उ डेख्के मै अचम्म परल रहुँ । घरमे खानतलासी हुइबेर रामधुलाई खाके अक्क ना बक्क हुइल रहुँ । उ दिनिक् याद समझके मै अभिन फें झस्कठुँ ।
३.साहित्यिक क्षेत्रमे लागके का पैली ओ का गुमैली ?
पाइल अभिन खासे कुछ नैहुइटुँ । पाठक मनग्गे कमाइलहस लागठ । साहित्यिक क्षेत्र कलक् लम्मा यात्राके दुखियारी पेसा हो । अक्षरके अब्बल घोरुवामे सवार करे सेके परठ पूर्ण सफलता प्राप्तिके लाग । अस्टे प्रयाससे आँखी उघर्टी सपना डेखे परठ । उ सपना साकार पारकलाग कैयौं रात लिख्टी, लिखल पाण्डुलिपि सम्पादनमे कटठ् । ओहेमारे मै कठुँ निन्द, चैन, स्वास्थ्य गुमैले बटुँ ।
५.अप्ने खास कैके कौन कौन बिधामे कलम चलैठि ? कैसिन रचना मन परठ ?
कथा, लघुकथा, उपन्यास, गजल, कवितामे मोर कलम डौरठ । यिहे रचना रुचैठुँ ।
६.अझकल अप्नेक गाउँ ठाउँ ओरिक थारु साहित्यके अवस्था कैसिन बा ?
थारु साहित्य गाउँ ठाउँमे ओझेल परल बा । थारु लेख रचना परहुइया पाठक बहुत कम बटैं । प्रतिक्रिया नैअइलक ओरसे लेखक ओइने फेन मुरझुराइल बटैं । अन्य साहित्य क्षेत्रमे जस्ते मजा प्लेटफर्म फें नैहो । थारु संघसंस्था फेन थारु साहित्यहे प्रोत्साहन करल नैबिल्गाइठ । ओहेमारे थारु स्रस्टा ओइने फेन मातृभाषामेसे फें राष्ट्रिय भाषामे अपन कृति ढेर प्रकासित कैले बटैं ।
७.थारु भासा साहित्यसे थारु समाजहे कैसिक आघे बर्हैटी बटी ?
थारुभासा, भेषभुषा, परम्परा, संस्कृति उजागर करक लाग एकठो महत्त्वपूर्ण पाटो कलक थारु साहित्य हो । यी थारु समुदायहे अध्ययनशिल बनैना भारीे भुमिका निर्वाह करठ । थारु ओइने अध्ययनशिल हुइना कलक थारु समुदायके बौद्धिक विकास हुइना हो । यीहे थारु समुदायमे आमूल परिवर्तन लाने सेकठ ।
८.एक्ठो सफल लेखक बनक लाग कत्रा संघर्ष करे परठ ?
.भयंकर संघर्ष बा एमने । अपने मनैं गोरा टन्ठैं । नैहुइना नैहुइना कमेन्ट करठैं । सक्कु मेरके कमेन्टहे स्रस्टा सहर्ष स्विकार करही परठ । अपनहे अपनही परिमार्जित करटी अपन कलम टिखरटी आघे बर्हे परठ । लेखनयात्रामे निरन्तरता जरुरी बा । मेहनत, प्रयास कैलेसे सफल कसिक नैमिली । एक दिन जरुर मिली ।
९.अझकलके युबन्हे साहित्यमे कलम चलाइक लागका कैसिन योजना बनैले बटी ?
अझकलके थारु युवा सक्कु जाने साहित्यहे नैचिन्ठैं । नैपहरठैं । परहुइया, लिखुइयामे एक दुई बटैं । ओइने निरन्तरता डेहे नेसेक्ठैं । कारण का हो कलेसे, भरपुर अध्ययनके अभाव, आर्थिक अभाव, सपोर्ट तथा निर्देशनके अभाव । यी अभाव परिपुर्ति हुइ सेकी कलेसे थारु युवा जरुर साहित्यमे जमे सेकहीं ।
१०.मनैंनके जिन्गीमे साहित्यहे कैसिक परिभाषित करठी ?
साहित्य कलक कच्चे माटीसे बनल आकर्षक कला हो । जिहिनहे खेलैटी, केरैटी, निचोरटी, सुमसुम्यँइटी बेलसटी जाइ परठ । जिही जौन मेरके आकारमे फेन आकर्षक आकारमे परिणत करेसेके परठ । पूर्णता पाइल उ आकार आँखीले हेर्ना मेरके लालायित हुइ परठ । इहे हो साहित्य ।
११.आब कोन लावा पोस्टाके तयारीमे बटी ?
आब अइना दिनमे लावा पोस्टा उपन्यास ओ एकठो कथा संग्रह प्रकाशनके तयारीमे बटुँ । केरैटी, निचोरटी, सुमसुम्यँइटी फट्कटी बटुँ । इही प्रकाशनमे नानक लाग हतार नैकरले हुँ । ‘टुकी’ मोर पहिल उपन्यास हो, टुवरा डुसरा । यी कृति महिन बहुत ढेर ज्ञान, पाठ सिखैले बा । अभिन टे आउर प्यारा पाठकनके प्रतिक्रियासे महिन आकुर ढेर प्रोत्साहन ओ मैंयाँ डेले बा । ढेर चिज सिख्ना मौका मिलल् बा । आब अइना दिनमे सक्कु पाठक ओइनके मनमे आउर गार्ह होके बैठे सेकम कना आस बा । पाठक कलक् वास्तवमे लेखकके लाग मार्गदर्शक हुइँट, भगवान हुइँट । पाठक ओइनके प्रतिक्रिया मोर लाग आशिर्वाद ओ अभिष्ट प्रसाद हुइँट ।
१२.ओरौनीमे कुछ छुटल बात बा कि कहे पर्ना ?
कहे पर्ना, लिखे पर्ना बात बहत बा । हरेक सजीव वा निर्जीव वस्तुमे कथा नुकल रहठ । वस् ओहे कथाके आकर्षक ड्राफ्ट बन्ना साहित्य बन्ना जरुरी बा । सक्कुजे अध्ययन कैना जरुरी बा । बनल आकार उप्पर मन्थन हुइना जरुरी बा । लिखल पाना पूर्णता पैना जरुरी बा । पैंसा नैकमैलेसे फेन बहुत पाठक कमैले बटुँ । इ फेन एक मेरके सफलता हो । पाठक ओइनके हरदम सकरात्मक नकारात्मक प्रतिक्रिया पाउँ । ओ अपनेनके परिवारके परगा लगातार जुगजुग चल्टी रहे । जय साहित्य ।