थारु समुदायके घर उत्तर–डख्खिन

विश्वराज पछल्डङ्या
५ चैत्र २०७९, आईतवार
<strong>थारु समुदायके घर उत्तर–डख्खिन</strong>

थारु समुदायके घर उत्तर–डख्खिन
प्राचीन वास्तुशास्त्र अनुसार पूजा ओ भान्सा कोठा निर्माण

विश्वराज पछल्डङ्या
थारु समुदायहे शिक्षामे पाछे परल समुदायके रुपमे लेजाइठ । यी समुदायमे रहल धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व ओ विशेषता बाहेर आइ नैसेक्के ओ समुदायसे बुझ्ना अवसर पाइल नैहो । थारु समुदायके घरेम हिन्दु धर्मावलम्बीसे मन्ना सक्कु देवीदेवताके प्रतिक ढारल रहठ । ओटरा केल नैहुके थारु समुदायहे पहिलेसे प्राचीन वास्तुशास्त्रके ज्ञान रहे कना बाट ओइनके घरेक बनावट, पूजा कैना विधि, पूजा ओ भान्सा कोठा निर्माण कैना पद्दतीसे प्रष्ट पारल बा ।

और समुदायसे घर बनाइबेर वास्तुशास्त्र परहल ओ बुझल पुरोहितके सहायता लेहे पर्ना रहठ, मने थारु समुदायके जे कोइ वास्तुशास्त्र अनुसार अपन घर बनैटी आइल बटंै । थारुहुकनके प्राय ः सक्कुुहुनके घर पूर्व–पश्चिम मोहरा रहल उत्तर–दक्षिणके घर रहठ ।

उत्तर–दक्षिणके घर तथा पूर्व ओ पश्चिम ढोका रहल घर बनैनासे थारु समुदाय पहिलेसे वास्तुशास्त्रमे विश्वास राखे कना स्पष्ट हुइठ । घरके दक्षिणी भागमे बैठक कोठा, उत्तर–पूर्वमा देवताके कोठा, ओकर दक्षिणमे सुत्ना कोठा, उत्तर–पश्चिम कोठामे भान्सा बनैना चलन थारु समुदायमे अभिनफे विद्यमान बा ।

मनैनके मृत्यु हुइलेसेफे शव पश्चिम ढोकासे केल बाहेर निकर्ना, क्रियापुत्रीसे पश्चिम ढोकाकेल प्रयोग कैना जैसिन पौराणिक चलनफें थारु समुदायमे रहटी आइल बा । घरके दक्षिण–पूर्व कोठामे भैँसक रक्षक ‘ढम्रज्वा’ ढारजाइठ । कलेसे, पूर्वके आगनमे भवानी देवीहे स्थान डेहल रहठ । ओस्टेक करके, घरेक पूर्वओर अपन कुल देवता रख्ना मन्दिर (मर्वा) बनैना प्राचीन चलन रहटी आइल बा ।

थारु समुदायके पौराणिक मान्यता अनुसार घरके पश्चिम–दक्षिणओर सकभर सुत्ना कोठा बनाजाइठ । देवताहे ठाँठी हुइल घरेम नैरख्ना परम्पराफें थारु समुदायमे बा । मने, पछिल्का समय देवताके लाग ठाँठी रहल घर बनाइ लागल बटैं । वास्तुके अर्थ आवासगृह अर्थात् घर ओ शास्त्रके अर्थ हुइठ अनुशासन ओ निर्देश । ओहेमारे, ‘वास्तु शास्त्र’ कना घर वा कौनो संरचना कैसिक निर्माण कैना कना बाटके निर्देशहे बुझजाइठ । वास्तु शास्त्रहे आधुनिक समयके विज्ञान ओ आर्किटेक्चरके प्राचीन स्वरुप माने सेक्जाइठ । हिन्दु धर्म अनुसार वास्तुशास्त्रके पालन करके बनाइल घरेम बैठेबेर सुख, शान्ति एवं समृद्धि प्राप्त हुइठ कना विश्वास बा ।

थारु घरके प्रवेशद्वार पूर्व या पश्चिममे केल
थारु समुदायके घरके प्रवेशद्वार पूर्व वा पश्चिम केल बनाजाइठ । सक्कु जैसिन घर उत्तर–दक्षिणके हुइना ओरसे प्रवेशद्वारफे पूर्व वा पश्चिम बनैना चलन बा । पूर्व वा पश्चिम मुलद्वार हुइलेसेफे दुनु ओर एक–एक ठो ढोका रख्न अनिवार्य मानजाइठ । शुभ साइत पूर्वके ढोकासे करजाइठ कलेसे मृत्यू संस्कारके काम पश्चिम ढोकासे केल कैना चलन बा ।

उत्तर–पश्चिममे भान्सा कोठा
वास्तुशास्त्र अनुसार भान्साके पवित्रता तथा स्वच्छता कौनो मन्दिरसे कम नैरहठ । टबमारे भान्सा बनाइबेर वास्तुशास्त्र अनुसार बनाइबेर उत्तम रहठ । वास्तुशास्त्र अनुसार, भान्सा घर दक्षिण–पूर्वी क्षेत्रमे बनैना उत्तम मानजाइठ, मने ठाउँ नैहुइलेसेफे उत्तर–पश्चिममे निर्माण करे सेक्जाइठ ।

खाना पकैना ठाउँसे पूर्वी ओ उत्तरी भित्ताहे छुए नैपरठ । थारु समुदायके भान्साफे उत्तर–पश्चिम ओरके कोठामे रहठ । यिहीसेफे थारु समुदायके भान्साफे वास्तुशास्त्र अनुसार मिलल बा कना बुझजाइठ ।

मने, उल्टह्वा थर रहल थारुके घरके मोहरा पूर्व–पश्चिम हुइलसेफे देउता रख्ना कोठा दक्षिण–पूर्व ओ भान्सा कोठा दक्षिण–पश्चिमओर रहठ । यी थर रहल थारुके बैठक कोठा उत्तरओर बनैना चलन बा ।

पूर्वी दिशामे कुल देवता ढैना मन्दिर (मर्वा)
हिन्दु धर्ममे पूजासे भारी महत्व बोकल बा ओ श्रद्धा भक्तिपूर्वक कैना यी कार्यके लाग घरमे अलग्गे पूजा स्थल बनैना करजाइठ । पूजास्थल बनाइबेर ढेर बाटमे ख्याल पुगाइ पर्ना रहठ ।

वास्तु शास्त्रमे दिशासे भारी भूमिका खेलठ । कौन कक्ष कौन दिशा पट्टि बनाइ परठ वा नैपरठ कना बाट वास्तु शास्त्रमे उल्लेख करल बा । पञ्चभूत लगायत वास्तुशास्त्रमे दिशाफे एक महत्वपूर्ण तथा आधारभूत बाट हो । घर तथा भवन अथवा कौनो निर्माण कार्य करेबेर कौन दिशामे कौन वस्तु रख्ना कना बा एकदम महत्वपूर्ण हुइ आइठ ।

वास्तुशास्त्रके अनुसार पूर्वी दिशाहे मजा मानजाइठ । पूर्वसे सूर्य उदाइठ, अर्थात नयाँ प्रहरके आरम्भ हुइठ । टबमारे पुरान ओ खराब बाटहे छोरके नयाँ ओ असल बाटहे पछ्याई चहना व्यक्तिहुकनके लाग पूर्व दिशा उत्तम रहठ । सम्वृद्धताके दिशा हो पूर्वदिशा ।

यी समुदायके घरके दक्षिण–पूर्व कोठामे पशुपंछीके रक्षक ‘ढम्रज्वा’ देवता रहठैं । कलेसे, पूर्वके आगनमे भवानी देवी घरके पूर्वओर अपन कुल देवता रख्ना मन्दिर (मर्वा) बनैना करजाइठ । यिहे मर्वामे घरके कुल देवता धारल रहठंै । डसिया, डेवारी ओ टमान पर्वमे यिहे मर्वामे रहल देवताके फें पूजा करजाइठ ।

उत्तर–पूर्वमे देवताके कोठा (डिउह्रार कोन्टी)
थारु समुदायके देउथान उत्तर–पूर्व दिशामे रहठ । यिहे दिशामे बनाइल देउथानमे कुलके सक्कु देवता ढारल रहठ । यी कोठाहे थारु समुदायसे ‘डिउह्रार’ कोठा कहठंै । वास्तुशास्त्रसे उत्तर–पूर्व दिशाहे भगवानके दिशा मन्ना हुइल ओरसे थारु समुदायसे पहिलेसे वास्तुशास्त्र अवलम्बन करके घर निर्माण करल प्रमाणित हुइठ ।

यिहे दिशामे कैलाश पर्वतमाला रहल ओ कैलाश पर्वतमालामे शिवपार्वतीके बास हुइना ओरसेफें थारु समुदायसे यी दिशाहे देउथानके रुपमे चयन करल ठोकुवा कैना सेक्जाइठ । उत्तर–पूर्वके कोठाके पश्चिमओर पूर्व मुख पारके डेह्री ढारजाइठ । यी डेह्रीहे ‘पटाहा डेह्री’ कहठंै । यिहे डेह्रीमे एक ठो झोला टाङगजाइठ । उ झोलामे शिव, पावर्ती, ऋषिमुनी लगायतके देवता ढारल रहठ । कलेसे, डेह्रीके टरे घरके कुल देवतासंगे घर गुर्वाके घोरुवाा ढारल रहठ । यी सक्कु देवता पूर्व मुख करके ढारजाइठ ।

वास्तुशास्त्रसेफे आठु दिशामन्से यी दिशाहे सबसे पवित्र मानल बा । यी दिशाके सहि सदुपयोगसे पुरुष तथा महिलनके जीवनमे सुख, शान्ति ओ सम्वृद्धि छइना वास्तुशास्त्रके मान्यता बा । टबमारे पूजा कैना कोठा यी दिशामे रख्ना सबसे फलदायी मानजाइठ बा ।

पश्चिम ढोकासे केल शव निकारे पैना मान्यता
उत्तर–पूर्व दिशा देवगणनके दिशा हो कलेसे ओकर ठीक उल्टा दक्षिण–पश्चिम दिशा राक्षसगणनके दिशा हो । यदि तान्त्रिक शास्त्रके पाठ करे परठ कलेसे ओकर कोठाहे दक्षिण–पश्चिम दिशामे रख्ना उत्तम रहठ । टबमारे थारु समुदायसे शवहे पश्चिम ढोकासे केल निकर्ना ओ दाहसंस्कारके लाग दक्षिण–पश्चिमओर लैजैना करठैं ।

ओस्टेक करके वास्तुशास्त्रसे उत्तरओर शिरानी करके सुटे नैहुइना कहल बा । थारु समुदायसेफें उत्तरओर शिरानी करके कबुफे नैसुत्ना करल थारु संस्कृतिके अन्वेषक अशोक चौधरी बटैलंै । उहाँ थारु समुदायके घर, पूजा कोठा, भान्सा, देवता रख्ना ठाउँ सक्कु वास्तुशास्त्र अनुसार रहल बटैलंै । भगवानके पूजाकक्ष यी दिशामे ढारेबेर शुभ नैहुइना वास्तुशास्त्रमे उल्लेख बा ।वास्तुशास्त्र अन्धविश्वास नही, यीफे विज्ञानके एक अंश हो, जिहीसे प्राकृतिक ओ भौतिक ऊर्जाके सम्बन्धहे बुझाइठ ।

आक्रमणसे जोग्ना घरेक भित्तामे हिंस्रक जनावरके चित्र
यी समुदायसे घरके भित्तामे हिंस्रक जनावरके चित्र बनैठैं । जंगली तथा हिंस्रक जनावरके आक्रमणसे जोग्ना घरके भित्तामे चित्र बनैना करल थारु संस्कृतिके जानकार एकराज चौधरी बटैलंै । प्रकृति पुजक हुइल ओरसे थारु समुदायके अधिकांशसे अपन घरेम हिंस्रक जंगली जनावर हात्ती, बाघ, सर्प, घोडा, मयूर, हरिण लगायत जनावरके चित्र बनैना करल उहाँ बटैलंै । हिंस्रक जनावरके चित्र बनैलेसे ओइने घर ओ परिवारके सदस्यके रक्षा करठै कना मान्यता बा,’ उहाँ कहलैं ।

मुगलके आक्रमणसे बचकलाग घर आघे सुवर बहन्ना चलन
यी समुदायसे घरके आघे सुवर बहन्ना करठैं । ओइने अपन देवीदेवताहे सुवरके बली डेठंै । घरके आघे सुवर बध्ना वैज्ञानिक कारण पत्ता नैलग्लेफे भारतमे मुगलहुक्रे हिन्दुहुकनहे रखेडे लागल बाड ज्यान जोगैना थारु समुदाय लुम्बिनी हुइटी दाङ उपत्यकामे आके बसोबास करल अनुमान करे सेक्जाइठ ।

मुगलसे सुवर नैछुना हुइल ओरसे घरेक आघे सुवर बाँढेबेर मुगलहुक्रे घर भिटर नैपैठना हुइल ओरसे थारु समुदायसे यी उपाय निकारल अनुमान बा । ‘घरके आघे सुवर बहन्ना ओ खोर बनैनाके कारण यिहे कना प्रमाण टे नैहो, मने मुगलसे बँच्ना थारु समुदायसे यी उपाय अपनाइल हुइ परठ,’ पछला प्रगन्नाके देशबन्ढ्या गुर्वा लिलामणी चौधरी कहलैं । (गोचाली खबरसे)

<strong>थारु समुदायके घर उत्तर–डख्खिन</strong>

विश्वराज पछल्डङ्या