अन्तरवार्ता
‘भासा साहित्य बची टककिल हमार अस्तित्व बची’
थारु जनकवि बमबहादुर थारु
रुपन्देही जिल्ला कञ्चन गाउँपालिका वडा नम्बर १ बकुलगाढके थारु जनकवि बमबहादुर थारु, थारु साहित्यकार मध्ये एक हुइटंै । हुँकार एक दर्जनसे ढेर थारु भासक् पोस्टा प्रकाशन हुइल बटिन । उहाँ थारु भाषा साहित्य परिषद नेपालसे २०५४ फागुन ७ गते सप्तरी कल्यानपुरमे थारु जनकविके उपाधि पैलैं ओ अब्बेसम सम्मान पुरस्कारसे सम्मानित फेन हुइल बटैं । थारु जनकविके जलम् २०१२ साल सावन २३ गते डाइ डुठिया डङोरिया थारु, बाबा जाली प्रसाद डङोरिया थारुके कोखसे हुइलिन । उहाँ रुपन्देहीके थारु साहित्यके ढुरखम्भा फेन हुइटैं । यहे क्रममे उहाँके साहित्यिक यात्रामे केन्द्रित होके पत्रकार सागर कुश्मीसे करल छोटमिठ बातचित यहाँ प्रस्तुत कैल बा ।
१.अपने साहित्य लेखनके सुरुवात कहियासे करली ? लेखन प्रेरणा कहाँसे पैली ?
–साहित्य लेखनके सुरुवात मै कक्षा ६ मे परहेबेर भैरहवा मावि भैरहवक् तिलोत्तमा वार्षिक पत्रिकामे ‘मनको चाह’ निबन्ध प्रकाशित हुइल रहे । ओकर बाद कक्षा ८ मे परहेबेर २०२८ सालमे मोर एकल गीत संग्रह ‘चौताल करेजाफार’ प्रकाशित हुइल । लेखनके प्रेरणा मै दाइ–बाबनके निरन्तर भजन ओ गीत–नाचके पचासौँ पोस्टा पहर्ना गैना डेख्के बरा प्रभावित रहँु ओ हमार एकचो गारु चरहुइया मुसलमान लांैरा गीतके पोस्टा छपाके गा–गाके बजारेम् बेचल डेख्लुँ । ओस्टके मेलामेलामे फगुवा गीतके पोस्टा गा–गाके बेचत देखलुँ, भोजपुरी गीत, फिल्मी गाना ओ नौटंकी गीत आदि सुनके मै ऐसन प्रकारके दोसर गीत फें लिख सेकबुँ कैहिके मनेम विचार आए लागल । उहे पे्ररणासे मोर लेखन आघे बर्हटी गैल । अब्बासम मोर ३ पोस्टा प्रकाशित ओ १५ से ढेर पोस्टा पाण्डुलिपिक रूपमे बटा समय आइ टे प्रकाशित हुइ ।
२.अपन पोस्टा निकर्ली कैसिन प्रतिक्रिया आइल ?
–समाजमे पोस्टा प्रति अभिनसम टे बरा सकारात्मक प्रतिक्रिया आइल बा । चौताल करेजाफार फगुवा गीतके करीब २ वर्षसम एकछत्र हमार क्षेत्रमे साम्राज्य जैसिन रहे । पाछे २०४९ मे चौताल टाइगर, हथगोला, रससभरी प्रकाशित हुइल । समाजमे एकछत्र धुम मचैलाँ । बिस्तारे होली गैना प्रचलन हेरैटी बा बकी होलिक नाउँ सुन्टेकी बमबहादुरके चेहरा बिम्व बनके जनजनके मानसपटलमे नाच उठट सायद टब्बे टे फगुवा वा ढुरहेरिक् दिन सारा दिन जैसिन मोबाइलमे घन्टी बज्टी रहठ । रेडियो, टेलीभिजनमे अन्तरवार्ता चल्टी रहठ । ओसही अन्य पोस्टक फें प्रतिक्रिया प्रभावकारी ओ ज्ञानवद्र्धक रलक ओरसे डिग्री ओ पिएचडी–थेसिस लिखुइया विद्यार्थिनके दर्शन मिल्टी रहठ ।
३.कथा बाहेक आउर कौन कौन विधामे कलम चलैटी आइल बटी ?
–गीत, कविता, सायरी, हाँस्य व्यङ्ग्य प्रकाशित आख्यानसे ढेर बटाँ । निबन्ध, कथा, उपन्यास आदि अप्रकाशित बटाँ । थारु शब्दकोश बरवार हुइ ओकर तयारी हुइटी बा ।
४.अप्ने थारु भासा साहित्यमे कलम चलाके रुपन्देहीमे अपन जैसिन कैठो साहित्यकार जन्मा रख्ली ? ओइने अझ्कल का–का करटी बटैं ?
–समय–समयमे जल्मना समय–समयमे हेराजैना । मै अपने जैसिन साहित्यकार टे दर्जनो जन्मैलुँ । बाँकी साहित्य एक सेवामुलक कार्य किल हो सायद । पेसा नैहो, अन्य पेसा कैके साहित्यिक सेवा करुइया कुछ कालसम टिके सेकना अन्यथा रोजीरोटिक चक्करमे परके हाँठ उठा डेहना जसिन प्रतित हुइट । अझकाल टे बहाने बा घनि का घनि का । प्रोफेस्नल साहित्यकार बाहेक हम्मनके जैसिन साहित्यकार भुमिगते बटाँ कहे सेक्जाइ ।
५.अब्बेक अवस्थामे समाज परिवर्तन ओ थारु भासा साहित्य विकासके लाग कैसिन मेरके साहित्य सिर्जना कैलेसे समाजमे परिवर्तन लाने सेक्जाइ ?
–अपन पुर्खनके विरासत इतिहास–भासा–संस्कृति–संस्कार–जातीय पहिचान–भुगोल ओ आपन हक अधिकारके रक्षाके रूपमे युवा पिढीहे आघे बरहैटी समाजमे रहल कुरीति, कुप्रथा, कुसंगत ओ कुसंस्कारहे हतोत्साहित कैना ओ लावा युग वा जमाना कटे आनेक भासा संस्कृति ओ संस्कार अपनैना कामहे निरुत्साहित बनैना खालके साहित्य सिर्जना करेक चाही जैसिन लागठ ।
६.साहित्य लेखनके दौरानमे कब्बु नैबिस्राइ सेक्ना यादगार पल कुछ बा ? ओ आगामी दिनमे कौन कृतिके तयारीमे बटी ?
–बात २०२८ सालके हो । मोर पहिला कृति चौताल करेजाफार गीत संग्रह छपाएक लाग एकजना भैरहवाके मुनिबके साथे भारतके गोरखपुर कान्ताप्रेसमे गैलुँ । उ प्रेसके म्यानेजर नाम टे भुला गिलुँ बकी सायद शुक्ला रहे ।. मोर जैसिन कम उमिरके कवि उनकार प्रेसमे पहिला हुइलुँ सायद । मोर मुरीपरे फुला च¥हैलाँ । अगरबत्ती जलाके धुपधुङार कैलाँ । लड्डु मङाके मुह मीठा करुवैलाँ । मोर शिरपर हाँठ ढैके आशिर्वाद डेहला–‘बेटा मेरे प्रेसमे आया इतना कम उमरका तुँ पहला कवि है, मै तुझपर अत्यन्त प्रभावित और प्रसन्न हँु । मै ब्राह्मण मुहसे तुझे आशिर्वाद देता हुँ तँु आगे चलके बहुत बडा कवि बनेगा । मै अवाक हुइके उ पण्डिटवक नमस्ते किल कैलुँ । लाजसे मोर मुह झुक गैलरहे । कवि कलक का हो मोहिए खास पटा नै रहे । उ समय मोर उमेर १६ बर्षमे लागल रहे । मोछ अभिनसम नाइ जामल रहे ।
उ घटना आझसम सोंचके मै झझक जैठुँ । उ आशिर्वाद अनुसार मै बहुत बडा कवि टे नै बनेसेक्लुँ । बकी जिन्गीभर कविता ओ साहित्यके सेवा कैना अभिभारा मुरीपर थोप देहल बभना अब मैँ काकरु ।
७.अब्बे रुपन्देहीमे थारु भाषा साहित्यिक अवस्था कैसिन बा ? अपनेक गाउँ ठाउँमे साहित्य श्रृंखला हुइठ कि नाही ?
–हमार जिल्लम थारु साहित्यिक अवस्था पहिलेहीसे ओट्ना जोरदार नैरहे । मजा साहित्यिक मित्रजनके अभावमे मै पहिलहीसे पीडित बटुँ । बीचमे टे कोरोनाक कारनसे खासे चहलपहल नाइ बा फेसबुके साहित्यकारनके मै का नाउँ लिउँ । मोर अप्ने निष्क्रियता फें डोसर कारण बनेसेकी ।
८.अप्ने बहुत लम्मा समयसे साहित्यमे कलम चलैटी आइल बटी । यी साहित्य कलक का हो बटा डि ना ?
–साहित्यके परिभासा अप्ने शिक्षाशास्त्रमे पटा पाइ सेक्बी । मोर अपन ओरसे कहना का बा कि मानव समाजमे अनेक जातजातिनके जौन दैनिक बोलीचाली, बात बट्कुही, भासा, संस्कृति, गीतबाँस बा, उही वैज्ञानिक ढंगसे विभिन्न विधामे लिखत प्रस्तुत कैना कला हो । यम्ने समय परिस्थति अनुसार भासक् साथसाथे नविकरण ओ परिमार्जन हुइटी रहठ ।
९.समग्रमे थारु भासक साहित्यके भविष्य कैसिन डेखटी ?
–एकदम उज्वल । महाकली नदीसे मेची नदीसमके सम्पुर्ण थारु भाषिकाहे संकलन कैके पर्यायवाची बनाके व्याकरण बनैलेसे नेपाली भाषासे बरा भासा थारु भासा बनेसेकी । एकजुट होके साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार, समाजसेवी, नेतागण अगर चाहे टे बहुत लम्मा समय फें नैलागी । रङ्गविरङ्गी फुलक माला जहिया तयार हुइ निर्विवाद रूपमे अंग्रेजी भासाके हाराहारीमे विशाल ओ संस्कृत भासा जैसिन सुन्दरतम हुइसेकी । थारु भासा ओ साहित्य बची टक किल हमार अस्तित्व बची ।
१०.अभिनसम रुपन्देहीसे थारु भासक पत्रिका कौनो फेन प्रकाशित हुइल नैडेख्जाइठ, अप्नेनके एकरलाग कैसिन कदम उठैटी बटी ?
–विडम्बने कहेक परी । रुपन्देहीके थारु हरेक मानेम आगे बटा साहित्य पाछे परल बा । होसेकत साहित्यके काम आयमुलक ना होके जायमुलक हुइलक कारणसे फिन समाजके कौनो फें सदस्य यम्ने लम्मा समयसम टिके नै सेकना अवस्था देखपरठ । २०४२ सालमे मोर सक्रियतामे पहिला त्रैमासिक पत्रिका थारु साहित्य निकरल । बकी संहरिया तीन महिनासम फें टिके नैसेक्लाँ । पत्रिका बन्द होगिल । फेन कुछ नयाँ पुस्तनहे अगुवा बनाके २०६३ सालमे अद्र्धवार्षिक पत्रिका पहिलपरग मोरे सक्रियतामे प्रकाशित हुइल । बकी संहरिया आधा वर्षसम फेन मोरिक साथ नैडेहलाँ । पत्रिका बन्द हुइल । आब मै काकरुँ ? ठेक्कादार महीँ ठहरलुँ । मोहिए माफ कर्बी । का साहित्य ओ भासा एक जनेक ठेक्कासे आघे बरहेसेकी ? कपिलवस्तु ओ नवलपरासी, चितवन, पर्सा सक्कु ओर हालत यिहे बा । अपने टे मै आजीवन संघर्ष करटे बटुँ । बकी पैसा दैके संहरिया बनाइ सेक्ना अवस्था मोर नैहो ।
११.जैटीजैटी, इ पत्रिका मार्पmत का सन्देश डेहक् चाहटी ?
–थारु भासा ओ साहित्यहे अपन पुर्खनके विरासत समझके मै अपनेनके पत्रिका परहुइया संहरियनहे नमस्कार करे चाहटुँ । आघे सक्कु अंक अवश्य प¥हबी मोर अर्जी बा । डोसर अर्जी मै विद्वान थारु साहित्यकार संहरियनहे करे चाहटुँ । हमे्र थारु मानक भासा बनाइबेर जल्दीबाजीमे त थ द ध लगायत अन्यसमेत कैके । अक्षरके उच्चारण थारु बोलीचालीम नैहो कैके बिना स्थलगत अनुसन्धान ओ बिना सक्कु जिल्लक प्रतिवेदन साइड लगागिल । डँगौरा भासाहे थारु भासा नामकरण डेना कटना उचित बा ? लोकजीवनके अध्ययन अनुसन्धान बिना का हमार निर्णय समाज पचाइसेकी ? हमार बनाइल पाठ्यक्रम का डोसर जिल्लामे लागु हुइसेकी ? जस्टे बोल्ना ओस्टे लिख्ना का यी सिद्धान्त धानखोलासे पच्छिउँके क्षेत्रमे किल लागु हुइ ? चली मोर सहेँ पुर्वी जिल्ला अनुसन्धान करी । संकीर्ण मानसिकतासे क्षेत्रीय मानक बनी । बाकी राष्ट्रिय थारु मानक नैबनी । डगौरा मानक बनुइयमके महुँ एक सदस्य हुइठ । समग्र थारुमानक भासा टे भविष्यमे बनी । अभिनसम चर्चा नैचलल हो हमार संहरियनमे . ध्यानाकर्षण होए छोट मुह बडी बात माफ कर्बी । धन्यवाद ।