‘कला मनैंनहे जिवन्त बनाइठ’
कैलाली जिल्लाके चित्रकार मित्थु थारु, थारु चित्रकार मध्यके एक हुइँट् । उहाँ नेपाल ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठानसे ललित कला विषेश पुरस्कार २०७६ से पुरुसकृत फेन हुइल बटैं । उहाँ साहित्यमे फेन कलम चलैठंै । उहाँक् जलम २०४५ साल पुस महिनाके ९ गते डाइ अंगनी डंगौरा थारु ओ बाबा खुशीराम डंगौरा थारुके कोखसे जानकी गाउँपालिका–१ भगतपुर गाउँमे हुइलिन । उहाँ अब्बे ललितकला क्यापस काठमाण्डौंमे व्याचलर तेस्रो बरसमे अध्ययन करटी बटैं । इहे क्रममे समसामायिक विषयमे सागर कुस्मीसे करल छोटमिठ बातचित यहाँ प्रस्तुत कैल बा ।
१.अप्ने चित्रकारितामे कहियासे ओ कैसिक छिर्लि ?
हुइना टो कोइ कौनो क्षेत्रमे लागल बा कलेसे ओकर पाछे ढेर प्रेरणाके स्रोत रठिन । मोर जलम गाउँमे हुइल । उहेमारे ना टो कलाके वातावरण रहे, ना टो कोइ प्रेरणा डेहुइया मनै रहैं । अपन जिन्गिक भोगाइ ओ अनुभवसे कलामे छिरनु । सायद नेंगना, खेल्ना डौरना उमेर हुइल टबसे । कबु अंगनम् कबु बारिम् खेटुवम् खेल्टि खेल्टि, कबु कुइलासे घरेक् भिटम् चित्र बनाउँ टो कबु अंगनम् । ढुरेमे खेलेबेर ढुरिमे अंगरिले या टो डन्ठिले चित्र बनाउँ । खेटुवम् बारिम् खेलेबेर माटिसे भाँराकँुरा ओ जानवरके मूर्ति बनाउँ । चित्रकला ओ मुर्ति कलामे मै बचपनसे अनौपचारिक रुपमे लागल रहुँ । जब महिन लागल कि कलामे लागके फें समाज ओ राष्ट्रके लग ढेर काम करे सेकजाइठ । मै औपचारिक रुपमे २०७२ सालसे कला क्षेत्रमे लग्नु । कलामे बचपनसे ढेर रुचि रहे मने गरिबिक् कारण पाछे पर्हाइ रुकगैल । छोटओट काम करटि जिन्गि बिटे लागल । अस्टेके एकदिन बिचार आइल । जिन्गि टो जस्टे जिबो ओस्टे बिट्जाइठ । आब चाहे ज्या हुइ मै पर्हम् कैहके पर्हाइ छुट्लेक ८ बरसके बाड सबकाम छोरके कला बिसय लैके क्याम्पस भर्ना हुइनु । अइसिक मै कला क्षेत्रमे लग्नु ।
२.अप्नेक बनाइल चित्र कहाँ कहाँसम पुगल बा ?
जब कौनो कलाकारके कौनो कला सार्वजनिक हुइठ टो ओकर यात्रा भौतिक ओ भावानात्क दुइ रुपमे हुइठ । एक देससे बाहेर विदेस टक पुगठ, डोसर दर्शकके दिल टक पुगठ । भावनात्मक रुपमे दर्शक के दिल टक पुगल बा कि नाइ एकर मुल्याङकन करना समय नाइ हुइल हो । काकरे कि मै सिकारु बिद्यार्थी हँु । अभिन ढेर बात सिख्ना बाँकी बा । ओ भौतिक रुपमे कहबि टो मै कलाहे जिवनयापन माध्यम बनैना प्रयासमे बटुँ । मोर कला दाङ्गके चखौरा थारु संग्रह लगायत बिदेशमे क्यानाडा, अष्ट्रेलिया, अमेरिका लगायत अन्य देशमे पुगल बा ।
३.एकर संग संगे आउर का का काम कर्ठि ?
मै एकठो कलाके बिद्यार्थी हुँ । प्रयोगात्मक बाहेक सैद्धान्तिक परहाइमे व्यस्त रठुँ अझकल । स्नातक चौठा बरसक् परिक्षा हुइना समय हो । यी बाहेक स्कुलमे कला सिखैना काम फें कर्नु मने चित्त नाइ बुझके छोरडेनु । मै चित्रकार हुइलेक ओरसे कला सिर्जना बाहेक औरे कौनो काम नाइ करठुँ । मोर तन मन सदा कलामे केन्द्रित रहठ ।
४.चित्रकार हुइक लाग कत्रा संघर्ष करे परल ?
मोर जिन्गि औरे मनैंनसे ठोरिक फरक फरक बा । जौन उमेर लर्का अपन डाइ बाबनठें रठैं, उ उमेरमे गरिबिक कारण डाइ बाबन छोरके काठमाण्डांैमे औरेक् घरेम् काम कर्टि पर्हे अइनु । लावा ठाउँ लावा मनैंन संग रहेबेर, जैसिक अपन डाइ बाबन जिद्दि करके रोके रहे चाहे ना रहे, ओसिक कोनो चिज मागे नाइ सेकुँ । बनैना चाहाना रहटि रहटि फें बनैना समान नाइ हुके बनाइ नाइ पाउँ । जौन घरेम् रहुँ उहे घरेम् घरायासी काम करुँ । टो भाँरा ढोइना निला, हरियर साबुन नानैं टो मै उ साबुनसे कापीमे चित्र बनाउँ । जब स्कुलके परहाइके बाद कला बिषय लैके पर्हम कनु टो, कलामे कोनो भविष्य नाइ हो कैहके नाइ पर्हे डेना ढेर दबाब आइल । टब फेन मै अपन निर्णयमे अडिक रनु । काकरे कि जत्रा आत्मा सन्तुष्ती महिन कला सिर्जना कैके मिले, ओात्रा आत्मा सन्तुष्ती कोनो कामेम् नाइ मिलठ् ।
५.अपन सिखल सीपहे अपनसे पाछेक् युवनहे कैसिक सिखाइ चहठि ?
यदि कोइ युवा कलामे ढेर रुचि रख्ठैं । कलामे लागके कुछ करे चाहटंै कलेसे मै अपन ओेरसे हुइना सहयोग पक्का फेन करम । अब्बेक् अवस्थामे पूर्णरुपमे मैफें आत्मानिर्भर नाइ हुइ सेकल हुँ । मोरठे जौन सिप बा, उ सिप बांँटके सिखैना कोसिस् करम । कला कना चिज एक त्याग तपस्या ओ साधना हो । कोइ पैसा कमैना हिसाबसे कला सिखे खोजि कलेसे उ कुछ दिन टो बनाइ मने कलाहे निरन्तरता डेहे नाइ सेकि । मै ठोकुवाके साथ कहटुँ यी मोर दाबी हो ।
६.चित्रकला कलक का हो ? कैसिक बुझ्ले बटि, बटा डिइ ना ?
हुइना टो कला कलेक का हो मै फें यिहे प्रश्नक् उत्तरके खोजीमे बटुँ । आदिम युगसे आझटक कलामे अत्रा बदलाव आइल कि अनेक परिभासा आइल । कलाके परिभाषा यिहे हो कना बरे कठिन बा । .टब फेन सामान्य रुपमे मै बुझल अनुसार कला जीवन हो । कलामे हुइना हरेक चिज जीवनमे रहठ् । ओ जीवनमे हुइना हरेक चिज कलामे रहठ् । कला मनैंनहे जिवन्त बनाइठ ।
७.अपने इ क्षेत्रमे कैसिन सपना बोकके लागल बटि ?
यदि चित्रकला ओ मूर्तिकलाके बात कर्बि टो यी दुइ कलाहे कहबि टो, सबसे पुरान संचार माध्यम हो । आदिम युगमे कलाहे जादु ओ कलाकारहे जादुगरके रुपमे हेरजाए । अझकलके जबानामे फें कलाहे अन्तरराष्ट्रिय भासा हो कहे सेकजाइ । ओहेमारे मै अपन थारु समुदायके कलाके विकास करम कहिके लागल बटुँ ।
८.थारु समुदायमे कलाकारिताके माध्यमसे कैसिक परिवर्तन लाने सेक्जाइ ?
कलासे थारु समाज किल नाइ कि हरेक समाजहे परिवर्तन करे सेकजाइ । देशहे, संसारहे परिवर्तन करे सेकजाइ । आझसम जत्रा यी समाज ओ संसारमे परिवर्तन आइल बा । यी सबमे कलाके प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष भूमिका बटिस् । कला (चित्र÷मूर्ति) अइसिन चिज हो, जौन बात हजार शब्दमे व्यक्त करे नाइ सेकजाइठ, उ बात एकठो कलाके माध्यमसे बरा सहज रुपमे व्यक्त करडेहठ् ।.हमारहस् लेखपढ करल मनैं, रहल समाजमे कलाहे हमरे जनचेतना फैलैना माध्यम बनाके समाज परिवर्तन करेसेक्बी । कोइ अक्षर नाइ बुझि मने कला सब कोइ बुझि । काकरे कि कला अन्तरराष्ट्रिय भासा हो ।
९.अप्ने साहित्य फेन लिख्ठि, का का बिधामे कलम चलैठि ?
मै अपनहे कोनो साहित्यकार नाइ मन्ठुँ । साहित्याकार बनेक् लाग निरन्तर साधना चाहठ । बस मै टो कबुकबु दुइ चार हरफ लिख्ठुँ । एक समय रहे । जब मै कला (चित्र÷मूर्ति) मे औपचारिक रुपमे लागम् कैहके साेंच्ले नाइ रहुँ । उ समयमे खोब कविता, मुक्तक, कथा, लघुकथा, गजल लिखुँ । अब्बे फें मोरठे कुछ सुरक्षित बा । स्कुल पर्हेबेर एकठो कविता संग्रह छपैना तयारी रहे । सहयोग बिना उ ओस्टे रह गैल । जबसे कला (चित्र÷मूर्ति) मे लग्नु टबसे लेखन ढिरे ढिरे कम हुइटि गैल । आब कबुकबु किल लिख्ठुँ । काहे कि चित्र बनैनासे सपाँर नैमिलठ ।
१०.ओरौनीमे कुछ कना बा कि ?
आब हमार देसमे फेन कला कुछ ना कुछ व्यवसायीक हुइटि बा । कलामे लागके कोनो व्यापारहस कमाइ टो नाइ सेकजाइ मने जीवन गुजारा चलाइ सेकजाइ कना लागठ । कलामे लागके कलाके माध्यमसे फें समाज ओ देशके लाग ढेर काम करे सेकजाइ । नेपाली कलाहे राष्ट्रिय अन्तर्राष्ट्रिय क्षेत्रमे पुगाइक लाग सरकारसे सहि नीति निर्माण करे पर्ना जरुरी बा । हमार समाजफें कला संस्कृतिमे धनी बा । कलाके माध्यमसे हम्रे एकर संरक्षण करे सेकब । एकर संरक्षण कर्ना हमार सक्हुनके जिम्मेवारी हो, कर्तव्य हो ।