गजल
प्राकृतिक बगियामे मेरमेरके फुला फुलल् डेख्ठुँ ।
ओहे फुलामे जोग्नि, मढरि, भौंरा भुलल् डेख्ठुँ ।
अपन बोलि भासा संस्कृति पहिरान छोर्के यहाँ,
लावा युबा हुक्रन बिडेसि संस्कारमे डुलल् डेख्ठुँ ।
कट्रा सोहावान हमार अप्ने नाचकोर गिटबाँस बा,
फेर काहे इ छोर्के फिल्मि डुन्यँम् झुलल् डेख्ठुँ ।
डफ्ला मन्ड्रा, झाल, मजिरा, कस्टार हमार संगिट,
इ सब छोर्के बजारमे डिस्को डिजे खुलल् डेख्ठुँ ।
कसिके लावा पुस्टाहे हमार अपन संस्कृति डेना हो,
एहे सोंचमे हमार पहिचान हेरैना डर नुकल् डेख्ठुँ ।
दिपक चौधरी “असीम”
कैलारी-२ बसौटी, कैलाली