‘बनसप्टी’ लोपोन्मुख परम्परा

थारुजनकवि बमबहादुर थारु
८ बैशाख २०८०, शुक्रबार
‘बनसप्टी’ लोपोन्मुख परम्परा

‘बनसप्टी’ लोपोन्मुख परम्परा

‘बनसप्टी’ थारु भाषामहे सम्बन्धित बा । एकर अर्थ हुइट–बनवँक् आराध्य देवी । नेपालीम इहिहे बनदेवी चाहे देउराली कठैं । इहिहे फें डोसर शब्दम कलेसे वनस्पति कलेसे फरक नैपरी ।

परापूर्व कालसे थारुक पुर्खाहुक्रे बन–जंगलेक आँजर पाँजरमे बसोबास कैना एक बन प्रिय प्राणीक रूपमे सर्वविदिते बा । बनुवाँसे पइना जीवन उपयोगी काठीपाता, घाँस–चरन, बन्वाहाँ जनावर, चिरइचुरुङ्गनके सिकार, बनहाँ टिनाटावन, सागपात, कन्दमूल, बेमती–फुटकी–राइ, गरजुवा, जरीबुटी आदि लगायत स्वच्छ बयाल–पानी साठे घुमघामके आनन्द सक्कु बनवे ओरसे सम्भव बटिन । अइसिन अनुपम ओ उपयुक्त जगही बनवँक् आँजर पाँजर हुइक पुर्खाहुक्रे अपन रोजीरोटीसे लैके जीना–मुनक सुगमस्थल मन्ले रहैं । बिन बनुवँक् मनैं जिए फें नैसेकठंै । अइसिन आवश्यक ओ महत्वपुर्ण बन सम्पदाहे हमे्र सम्मान संरक्षण ओ संवद्र्धनफे कर्टी आइल बटी । उहे ओरसे हमार पुर्खाहुक्रे डाइ सम्मान रक्षक ओ पुजेक पर्ना मन्टी बनस्पति मातक नाउँसे पुज्टी आइल हुइहीं । आझ हम्रफें ऊ पुर्खा हुक्रनके पौली पछियैटी हुकहाँर सम्मान करली ओ पुजली फें । आझ दिन पर्बत बासिन्दा हुक्रनके हालीमुहाली बहर्लक् ओरसे बनसप्टीहे बनदेवी चाहे देउराली कहटी सम्मान कैना ओ पूजा कैजाइठ ।

कुछ दसक आघेसम बन–जङ्गलके आकार चाहे क्षेत्रफल फें बरा रहिस । बनुवँम् बाघ भालु चितुवा अजगर जसिन खतरनाक जनावरफें रहिंट । बनुवँम डगरक् नाउँमे पट्टिर ठौरा उहो फें झालाझुँगीसे भरल रहिस । डगरम् चोर–डाँकन् डरफें रहे । यी जैसिन भय ओ त्राससे मुक्तिक लाग बनसप्टी माताहे स्मरण कैना चाहे सम्झना प्रचलन रहे । सक्कु बनुवँक् सक्कु जसिन डगरक बिच्चेबिच्चे रुखवँक् झालापाटा टुर्के डगरेक् पँजर ढुहाके उहिहे सम्मान कर्टी अमूर्त बनसप्टी कहटी पुज्ना चलन रहे ओ आसमे बटले बा फें । जाइबेर झालापाटा टुरके चर्हैना ओ लौटानिम उहे झालापाटा निकार्क पँजरे राखडेना कैजाए । एसही झालेझालक रास लाग राखे ।

यी रीत ओ परम्परा पुस्टो पुस्टासे चल्टी आइल हो । झालापाटा बाहेक बनसप्टीहे कुच्छु चीज च¥हाइल नैडेख मिलठ् । पछिल समयमे बनचौकिक् बनपलिए अलग्ग कोसमेक रुखवा टर बनदेबी कैह्के बोकवक् बली च¥हाइल डेखगिल । देउरालिम अझकल कठवँक मुंग्रम त्रिसुल ओ चिर्कुट टाँगलफें डेखगिल । यी अइसिन कारबार पहिले नैरहे । बनसप्टी खुडे प्रकृतिक रक्षक हुइठ भक्षक नैहुइँट चाहे बनुवँक् सुग्घुर सुरट ओ मनमोहनी छटा हुइठाँ ।

यिहिन सन्तान–दरसन्तान कायम रख्ना हमार परम कर्तव्य ओ दायित्व फें हो । अन्तिममे यी बनसप्तीक संरक्षण ओ संवद्र्धन करकलाग हम्रे सक्कुजाने जिम्मेवारी लिइ । जय होवे बनसप्ती माता । हरियर बन नेपालके धन जुग–जुग चरितार्थ रहे ।

थारुजनकवि बमबहादुर थारु
कञ्चन–१ बकुलगाढ, रुपन्देही

‘बनसप्टी’ लोपोन्मुख परम्परा

थारुजनकवि बमबहादुर थारु