दिलके बट्ठा

दिपक चौधरी “असीम“
१० बैशाख २०८०, आईतवार
दिलके बट्ठा

कविता

दिलके बट्ठा

दिलके बट्ठा सहे नैसेक्जाइठ्
छाटि फाटेहस बठाइठ
नासुर बन्गिल बा घाउ भित्रेभित्रे
बारम्बार लगढार डुखेहस करठ
ना रोके जाइठ
ना ढोके जाइठ
कसिक चोखाइ यि दिलके खटरा
बिर्वाफेँ कोइ नैबटाइठ
दिलके बट्ठा सहे नैसेक्जाइठ
छाटि फाटेहस बटाइठ ।

कबु प्यार बन्के सटाइठ
कबु टिटमिठ बोलि बचन बन्के सटाइठ
कबु नाटपाँट, इस्टमित्र, दुस्मन
आउर अपन पन बन्के सटाइठ
कसिक बँच्ना हो
यि दिलके बट्ठासे
हाँ
कसिक बच्ना हो यि दिलके बट्ठासे
कोइ अपन बन्के लुटट
कोइ भ्रस्टाचार कर्के लुटट
कोइ राजनीति, दलाल, चोरि
टे कोइ डेस बेंच्के राष्ट्रके सम्पति लुटके
सर्ब साधारण जन्तनहे
गाँस, बास, लुग्रासे बन्चिट कर्के
अपन डेस छोर्के आनक डेस जैना मज्बुर कर्के
गाउँ घर परिवारसे डुर हुइना बट्ठा डेठैं
हाँ टबे हुइ सायड
दिलके बट्ठा सहे नैसेक्जाइठ ।

मिलन, बिछोर सुख डुख टे अइटि रहठ जिन्गिमे
उलार डब खाल्ह उँच
जिन्गिक् डग्रामे संघर्सके मैडानमे हुइटि रहट
सिट घाम
घाम छाँहि सबकुछ सहे सेक्जाइठ
मनो यि
दिलके बट्ठा सहे नैसेक्जाइठ
छाटि फाटे हस बठाइठ ।

दिपक चौधरी “असीम“
कैलारी २ बसौटी, कैलाली

दिलके बट्ठा

दिपक चौधरी “असीम“