भुले नैसेक्ना सुग्घुरकीक् याद

लाहुराम चौधरी
२५ बैशाख २०८०, सोमबार
भुले नैसेक्ना सुग्घुरकीक् याद

संस्मरण

भुले नैसेक्ना सुग्घुरकीक् याद

मुर्गी बोल्ना जुन मोर निन्ड खुलजाइठ । जारके मारे मै गुड्रीटिर चिमइले रहठुँ । कब हुइ ओजरार कैहके घनीघनी मोका खोल्ठुँ । फेनसे लगा डेहठुँ । उठके घरक डुरहीटर पुगल का रहठुँ टिरि¨–टिरि¨ मोबाइलमे घण्टी बजठ । मै हाली–हाली मोबाइल पकरठुँ ओ हेलो कहठँु । सँचमे ओहे संघरिया सागर कुश्मी रहठंै । “लाहु जी, जल्डीजल्डी अइना कोसिस करबी, कञ्चनपुरके झण्डाबोझी गाउँमे साहित्यिक कार्यक्रम बा, सल्लाह फेन करना बा, सन्झ्याके बेरी खैना हिसाबसे अइबी, अपन निकारल किताब ‘‘छिर्कल ओजरिया” फेन कुुछ झोलम् डारलेहबी ।” सोचठँु महिनक् २० गते सबडिन बन्ड हुइठ, मौका एहे बा, नैटो घुमे कबु नैमिली । कुछ किताब झोलम् डरठँु ओ कुकरा मोटरमे बैठ्के लाट मरठँु । चालु हुइठ । गेर लगाके चलडेहठँु । सुख्खड बजार पुग्नासे पहिले मोर कुकरा मोटर बिगरजाइठ । बन्वाइँट–बन्वाइँट डिनके १२ बज जाइठ । कहठुँ सायड बिगरल हो । का जिना हो घुम्ना तरखरमे रहठँु कि फेनसे संघरिया सागर जीके फोन आजाइठ, कहठैं हाली नेंगी, मै धनगढी व्यानर छपाइटुँ । अतरिया बजारठनसे संगे जाबी ।

मोर दुईमन सोह् पसेरी होजाइठ । जाउँ कि नाजाउँ कहाँ–कहाँ सोच्ठँु सोझर डेहठुँ । कुछ घण्टा पाछे अतरिया बजार पुग्ठु ओ सागर कुश्मी संघरियकठन फोन करठुँ टो कहठैं रुकली कुछ बेरके बाड अतरिया पुगटँु । असरै–असरै एक घण्टा होजाइठ । मिच्छा जैठँु । बलटल अतरिया पुग्ठंै ओ कहठंै “का कहबी लाहु जी, ढिला टो होगइल । टबु ठिकेपर बा । अब्बा टो पुगजाब ।” कुकरा मोटरके कान आइट्ठँु ओ सागर कुश्मी जीके पाछे–पाछे चलडेहठुँ । बब्बा, आघे हेरठुँ सागर जीके कुकरा मोटर चिलगारीहस उरेहस डेख्ठुँ । मै बहुट पाछे रैहजिठँु । एक टो अतरिया बजारठनसे पच्छिउ कबु नैगइल रहठुँ । पुग्ना कोसिसमे ठोरा जोरसे कुकरा मोटर चलइठँु । बनवाँके डगर, बिच्चे डगरमे ट्राफिक रोक लेहठंै, छोरठंै फेन । मै अपन मन्का चल डेहठुँ । गुलरिया बजार पुग्टी किल सागर जी रोक्ठंै । कहठंै रुकली । ठोरा काम बा कहटी शुभम् अफसेट प्रेस भिट्टर पेलजिठंै । किताब बाँन्ढली । मोर नैबन्ठो । “मै रबर छोरटी कहठुँ ‘‘डि सर बँढ्ना अन्ले बटुँ । सब बाँढ लेम बनजाइ ।” ओहइसे (परिचय) चिनजान करना सुरु होजाइठ । जालीके चुलीराम चौधरीसे जान पहिचान हुइठ । फेनसे नेंग डेहठी । कुछ बेरपरसे झलारी बजार पुग्ठी टो झलारीके बजारमे रहल प्रतिक्षालयमे भकुन्डा गाउँक तीन जाने, झण्डाबोझी गाउँ जाक्ष्क लाग तीन जाने हमार असरम् बैठल रहठैं । सन्झ्या होजाइठ । हमरे तीन–तीन जाने अक्के कुकरामोटरपर बैठके झलारी बजारसे ७ किलोमिटर उत्तर झण्डाबोझी गाउँमे पुगजैठी । बैठ्ना डेउ, पानी डेउ कहे लग्ठंै । जौन घर गाउँक् भलमन्सा, डेसबन्ढिया गुरुवा हिमाली चौधरीके रहठिन । सागर कुश्मी जीके झण्डाबोझी गाउँसे पहिलेसे जान पहिचान बटिन । मिझ्नी बनल किनै पुछे लग्ठैं, भुख लाग्टा हाली डेउ । मच्छीक् टीना निंढहो कहठंै, सायड मुर्घी चि¨नी चिन्हले रहठिन सागर जीहे ।

मिझ्नी, बेरी बनल नैरहठ । भन्सरियन कहठैं । अब्बा बनजाइ । टल्हुक घुमे जाउ । हमरे सक्कु जाने गाउँओर घुमे चलडेहठी बाफरे मोर लजर केकरोपर लाग जाइठ । अट्ना सुग्घुर, डेखटी किल मै हुँकार लग सपना सजाइ लग्ठँु । एक टरफी प्यारे होजाइठ । मै नेंगटुँ कि रुकल बटुँ भूलाजैठुँ । झस्कठुँ सक्कु संघरियन साहित्यिक कार्यक्रम करना ठाउँमे पुग रहठैं, घुमघुम हेरठंै, चाकल जग्गा हो कहठैं अरामसे पुगजाइ कहठैं । मोर दिमाकमे हलचल मचा डेहठी ओहे सुग्घुरकी बठिन्याँ । डर फेन लागठ । गाउँक् नाउँ हो झण्डाबोझी । किहु बिगरलेसे केउ भाला फेन गोझी । बबाल होजाइ । गाउँक् भलमन्सा हिमाली चौधरी बरा चोटगर झट्कार । संगे संगे समुदाय हेरे लैजिठैं, बरा डुर लागठ, हाँठी भगैना मच्वा हेरके फेनसे लौट जिठी । हमार अगुवा सागर कुश्मी रहठैं कलसे सागर कुश्मीक अगुवा हिमाली चौधरी डगरा डेखाइट अइठंै । झोल्पट होजाइठ, बेरी खाइ जाइ, टयार होगइल हुइ भलमन्सा कहठैं । एक गोँरा ढइले का रहठुँ । मोर लजर फेनसे हँुकरेपर पर जाइठ । अन्धारमे फेन डियाहस् ओजरार बिल्गैठैं । पक्कै मोर मनहे चोरा लैजिठैं ।

भलमन्सक घर पुग्टी किल हाँठ ढोके बेरीपर बैठजिठी । टिनाभर बरा कोरु ठनिक फिक्कल लागेहस् करठ । टब सागर कुश्मी कहठंै, “नोन मगाइ भलमन्सा जी” भलमन्सा हिमाली चौधरी नोन मगइठैं टो भन्सरियन चट्नी लन्ठंै । पाछे कहठैं । हमरे चटनीहे नोन कहठी । टब ठोरा हाँसी लागेहस् करठ । बरहियासे बेरी होजाइठ । सागर कुश्मी जी २० गते हुइना “थारु साहित्यिक जागरन कार्यक्रम” के रुपरेखा तयार परनामे लागल रहठैं । साहित्यिक कार्यक्रम बा कहके सक्कु ओर पत्रचार पहिले होसेकल रहठ । छोकरा नाच, सखिया नाच, दिननच्वा नाच मगा रखले बटी, फिक्स हो कहठैं हिमाली चौधरी गाउँक भलमन्सा जी । ‘‘सब सिंगार सब सिंगार कहठैं घेघरे बिगार” मडुवा कना हो कि का, गाउँहिके एक जाने सल्लाह करटी करटी डोसर बाट कहे लग्ठंै । झगराके जर खोजे लग्ठैं । लगभग सल्लाहके बाट आढै रहजाइठ । एक दुई, एक दुई करटी करटी भलमन्सान अंगना भरजठंै । कब कब छोकरा नाच सुरु होजाइठ । गीत सुनके हिमाली चौधरीक पर मोर लजर लाग जाइठ । भलमुडा नचुन्या फेन सपर गील रहठंै । एकओर ठारु एक ओर जन्नी गीतमे डोहोरी करे लग्ठंै । सागर कुश्मी जी टो झन छट्के लग्ठैं, हमार टो देखके मजा आजाइठ, ठोपरी मारमार हँस्ठी, रात होगइल कहटी छोकरा नाच ओराइठ । डुर डुरके गाउँक मनै अपनअपन घर चलजिठंै । टब हमार ओ रहल कुछ गाउँक संघरियनसे जान पहिचान कार्यक्रम हुइ लागठ । ठाउँठाउँ पर हाँसी लग्वइटी रहठंै सागर कुश्मी । कैसिक हेरठँु मोर लजर बहे सुग्घुरकी बठिन्यकपर लागजाइठ, झमझमसे डेहमे करेन्ट लागेहस लागठ । डेखटी डेखटी अपन घरे हालीसे चलजिठै, मोर आँखीक बोझ बनजिठंै । सोचना बाध्य पार डेहठंै, निन्ड लाग्टा बहाना लगइटी अक्ली कोन्टीम सुटे चलजिठँु । कहाँ–कहाँसे गाउँ घुमके आछट पाटी हेरके हिमाली चौधरी आजिठंै, फेनसे निन्द हेर्वा डेहठंै, सजना, ढमार, बट्कुही बट्वाइ लग्ठंै । कब निडइठँु पटै नैपइठँु । सपनामे ओहे सुघुरकिसे गजब नुकिक साँढा खेल्नु । पुरा बाट नैबटाउँ नैकि जान लिहि ।

ओजरार होजाइठ । सागर जी हाँठ मुह ढोइ लहाइ गाउँक् बिच्चे एकठो घर लैजीठै । कहठंै यी घरक सक्कु जे झलारी बजारमे बैठ्ठंै । कबु–कबु किल गाउँमे अइठंै । चाह पिके गाउँ घुमे जाइ लग्ठी कि सागरके फोन आजैठिन । संघरिया चुलीराम चौधरी कुकरा मोटर लेहठै झलारी बजारमे लेहे चलजिठैं । फेनसे सागर जीके मोबाइलमे फोन आजीठीन । लेहे जइना मोर पाला होजाइठ । कहठंै मोहन चौधरी झलारी बजारमे बटंै । फोन नम्बर डेहठंै ओ कुकरा मोटर लेहठुँ लेहे चल .डेहठँु । आढा डगर जैठुँ पटा चलठ ना लाइसन, ना ब्लुबुक खाली झलारी बजार पुगजिठँु । पुग्टीकिल फोन आजाइठ । छविलाल कोपिला “बर्का पहुना”हे फेन आन लेहबी । फोन लगइठँु । रामचरण चौधरी “अजराइल” हिन डेख लेहठुँ । आके कहठैं छविलाल डेखले बटंै जाइ अपने । भूट्ला छट्वइठैं । मै मोहन चौधरीहिन बैठाके गाफसफ करटी झण्डाबोझी पुगा डरठुँ । पाछे–पाछे बर्का पहुना आपुग्ठंै । कलुवा खैना बलौवा होजाइठ । सक्कु जाने कलुवा खाइ भलमन्सक घर जाइठी, कलुवा खाइट खाइट लगभग १० बज जाइठ । हाली–हाली कार्यक्रम हुइना ठाउँमे जैठी । सुनसान रहठ । मंच खाली रहठ । फाँटफुट मनै केउ ढु¨म टो केउ डगराके किनारे बैठल रहठैं । आयोजक हुक्रनके पटै नैरहठ् । बलटल आयोजक कहठैं आब पाला डान्सके । अइटी बटैं डान्स डेखाइ बाबु । हेर हेरके मजा लेहबी ।

लेहँगा मोर हो टोहाँर गीतके बोलमे ओहे सुग्घुरकी बठिन्याँ सँपरके । लेहँगा चोली लगाके नच्ठंै । सक्कुजे हेरटीक हेरटी रहजिठंै, सारा अंगअंग हिला डेहठंै, मोर ढकढिउरीहन टो झन डगमग्वाके हिलनाहा बना डेहठैं । अक्कै घचिमे साहित्यिक कार्यक्रम मञ्चमे भीर होजाइठ । बिच बिचमे साहित्यिक कार्यक्रम । बिच बिचमे नाच हुइटी रहठ । साठमे गीत गजल, मुक्तक, मांगर, ढमारके बौछार हुइटी रहठ । खुशीक बाट साहित्यिके फट्वाँमे ओजरार केरनी साफी चौधरीक् मुक्तक संग्रह सिर्जलके बिमोचन हुइठ । बर्का पहुना छविलाल कोपिलाके हाँठसे । तीन जनहन सम्मान फेन कैगील । जेम्ने कैलालीके चुलीराम चौधरीहीन, झण्डाबोझीक भलमन्सा, डेसबन्ढीया गुरुवा हिमाली चौधरीहिन ओ भरखर टेम्हरी साफी चौधरीहिन । बिच बिचमे बहस कार्यक्रम फेन मोर सँच आँख खोल डेहनै । सुझाव सल्लाह अट्ना बरहिया डेहनै कि जीन्गीभर बहसके याड रही । महिन डर लागेहस करे, मंचमे कबुनै अपन गजल बाचन कैले रहठँु । बोले नैसेकम कहँु मनो पाला आइल । मैंक पकरनु ।

बैठो मजासे कपरा अपन छाम छाम ।
मोर टरफसे उकुवारभेट ओ राम राम ।
पटबिस्सर मै टो माघ महिना हो काहुन,
हत्तेरी टबे आझ दिनके लाग्टा जार घाम ।

मुक्तकसे सुरु करठुँ । सारा मंच हहरा उठठ । वाह वाह आवाज आइठ । महिन झन बलगरहस् लागठ । आपन ओहे गजल सुरु कर डेहठुँ ।

मै टो बटुँु कैलालीके, मोरसंग के–के जैबो ?
ठरुवा लेबो छडरबडर, छावा लर्का पैबो ।

ठग्ना बाट निहो यहाँ, गौखइसे कसम बा,
भोज करबो हाली हाली, खोबसे मच्छी खैबो ।

चेमे–चेमे लर्का कर्ही, टबु सुनसान लागी,
मैयाँ लागी कोन्टीमन, मिहिनहे बटैबो ।

मोर गजल सुनके ओहे सुग्घुरकी बठिन्याँ हाई–हाई कहे लागठ । मै फुलु¨ा बनके हावामे उरे लग्ठुँ । भन्सरियन मिझ्नी लान लेहठैं । ढिकरी, अचार, मच्छीक् टिना, चट्नी, खोबसे मजा लैलै खैठी । याडमे याड छाइल करठ । मोहन चौधरी जीके मांगर, रामचरण चौधरी “अजराइल” के गजल, हिमाली चौधरीके ढमार, छोकरा नाचके डोहा गीत मनहे सजा डेहठ । फेनसे रात रुक्ना मन टो रहठ् मनो व्यापार करना मनै व्यापारहे सोंचके हाली हाली कहठुँ । मै घरे जइम्, ढिला होजाइ । जाइडी सागर जी कहठुँ । रहिली प्रशंसा–पत्र टो लैली । टब जैबी कहठंै । साहित्यिक कार्यक्रम चालु रहठ । छविलाल कोपिका बर्का पहुनाके हाँठसे प्रशंसा–पत्र डेहठैं । टिका, माला घल¬¬¬ा डेहठैं । मान सम्मान जौन सागर कुश्मी जीके बरवार हाँठ बा । मौकामे चौका मरनु । सायड, सागर जीके सहयोगसे थारु साहित्यिक जागरन कार्यक्रम २०७४ झण्डाबोझी गाउँक् ओ ओहे सुग्घुरकी बठिन्यँक् याड भूले नैसेक्ना याड मोर जिन्गीम् बनगैल बा ।

लाहुराम चौधरी
भजनी कैलाली

भुले नैसेक्ना सुग्घुरकीक् याद

लाहुराम चौधरी