भेंरह्वा रामदास

दिपक चौधरी ‘असीम’
१४ जेष्ठ २०८०, आईतवार
भेंरह्वा रामदास

कथा
भेंरह्वा रामदास

मंगल थारु एकठो कमैयाँ, जे डोसरके घर काम कर्के अपन घरेक गुजारा करठ । मंगल अपन लर्का बच्चा परिवारके संग एकडम खुसि रहठ । मनो उ अपन मन भिट्टर अनेक सपना डुख पिरा छुपैले रहठ ओ अपने परिवार उइन सड्डा खुसी बनैले रहठ ।

ढिरेढिरे लर्काबच्चा बहर््टी जैठिस ओ मंगलके जिम्मेवारि फेन बहर््टी जैठिस । मंगल आउर भारि चिन्टामे डुब्टि जाइठ ओ गम्भीर डेखाइट । यि सब ओकर बर्का छावा हेर्टि जैठिस ओ अपने मनमे कुछ करे पर्ना सोंच बनाइ लागठ । एकडिन बर्का छावा मंगलहे कहलिस, ‘बाबा, मै फेँ किस्नान घर काम करे जिम ।’

टब मंगल कहल, ‘टै का काम करे जिबे ?’
बाबक् प्रश्न सुन्के छावा कहल, ‘किस्नान भेंरि चर्हैम ।’

‘ठिक बा, किसन्वैंसे पुछम टे चलिस भेंरि चर्हाइ,’ कैह्के मंगल कहल ।

डोसर डिन बाट बट्वाके अपन बर्का छावै भेंरि चर्हाइ लगा डेहठ ।

मंगलके बर्का छावा रामदासके साल भरिक भेरि चह्रैलक् एक मन ढान टन्खा रहिस । उहिसे घरक कुछ समस्या टरे लग्लिस ।

रामदास सक्कारे रोज भेंरि लेले खेट्वम जाइठ कलेसे गाउँक आउर लर्का झोला, कापि, पोस्टा लेले स्कुल जाइठ । उ सब डेख्के रामदासके मनमे फेन पर्हे जैना रहर जागे लग्लिस ।

उ एकडिन अपन बाबाहे कहल, बाबा मै पर्हे जैम टे नैहुइ ?

छावक असिन बिचार सुन्के मंगल कहल, ठिक बा काल्ह किसन्वैंसे छुट्टि माँग्डेम टब चल्जाइस पर्हे ।

बाबक असिन बाट सुन्के रामदास बरा खुसि हुइल ओ डोसर डिनसे बिना झोलक गाउँक लर्कनसंग स्कुल जाइ लागल । डुइचार डिन पाछे मंगल रामदासके लग झोला, सिलोट ओ गौखर किन्डेलिस ।

समय बिट्टे गैल । रामदास मेहनटके साठ स्कुल पहर्र््टी गैल । मंगल फेन डुख कर्के भुख्ले रैह्के फेन अपन छावाहे परहाइल । रामदास फेन डस्वा मजा नम्बर लानके पास हुइल । ओ क्याम्पस पर्हक लग सदरमुकाम धनगढी जाइ पर्ना हुइलक ओंरसे इहिसे आघे परहाइ नैसेकम कैह्के मंगल अपन छावक ठन कहल ।

रामदास फेन बाबक् बाटेम कुछ नैकहठ । काहे कि अट्रा डुख कस्ट कैके जौन शिक्षा डेहल बाबा, आब एकर सडुपयोग महि कर्ना बा कैह्के मनमे साेंचटि चुपचाप रहिजाइठ ।

समय अपन डगर निरन्टर बिट्टि जाइठ । रामदास अपन गाउँमे परोढ पर्हैना मौका पाजाइठ ओ गाउँमे मस्टरवा कैह्के चिन्हे लग्ठिस । एकडिन मंगल रामदासके भोज कैना बात अपन गोसिन्याँसे चलाइठ । ओ, कुछ डिन बाड रामदासके भोज फग्नीसे होजैठिस । मंगल के परिवार बह्रजैठिस ।

समय बिट्टि जाइठ । रामदासके फेन लर्का बच्चा हुइठिस ओ सारा घरक जिम्मा मंगल रामदासहे सौंपडेहठ ।

रामदास भारि समस्यामे डेखा परठ । मनो हिम्मत नैहारठ ओ घर जसिक टसिक चलाइठ ।

एकडिन रामदास फग्नीहे कहल, अरि गाउँमे किल काम कर्के घरक समस्या नैचलि । लर्का बच्चा परहैना घर डुवार चलैना बा । ओहेक मारे महिं कुछ डिन बाहेर लागक परि । टब जाके गुजारा हुइ । इ सब बाट सुन्के फग्नी कहल गाउँमे काम नैकर्बो टे कहाँ जैबो ?

रामदास कहल, सबजे इन्डिया जैठ मै फेन चल्जिम ।

फग्नी कलि, टँु चल्जिबो टे मै कसिक घर चलैम ओ रहम ?

रामदास सम्झाइल, जस्टे सबजे रठैं ओस्टके टे काहुन ।

अट्रा सल्लाह कैके डुइचार डिन बाड रामदास लागल इन्डिया कमाइ ।

अपन घर परिवारके खुसि खोजे घर परिवार छोर्के रामदास हुइल गाउँघरसे डुर । राट डिन काम, डेंहक पस्ना सुखाइ नैपैना, राटिक निंड डिनेक भुख मेटाइ नैपैना । डुखसे जुझ्टि, भुखसे लर्टि समस्या हटैना सपना पुरा कैना लक्ष्य लेके परडेस लागल रामदास ।

हरेक महिनक प्रैसा घरे पठैटि रहठ रामदास । फिर भि समस्यक समाढान नैहुइठिस र आउर टे समस्या बहर्टि जैठिस ।

रामदासहे स्कुल पह्राइक लग लेहल मंगलके रिन डुइ सौ से बहर्के बीस हजार पुग्गैलिस । इ सब डेख्के सुन्के असिन लागठ गरिब मनैन्के जिन्गि कुछ जिन्गि नैहो जसिन ।
यहोंर फग्नी गिटेम् मनक् बट्ठा सुस्करठ ।

कहाँ जाके ओराइट गरिबन्के डुखक सग्रा ।
कबसम रहेक परि अकेलि हेर्के अस्रक डग्रा ।
सुखडुखके बख्रा बराबर लगाइ नैजानल कि का,
लम्मा करल जिन्गिक डग्रा विधाताफेँ हरेक अँख्रा ।

दिपक चौधरी ‘असीम’
कैलारी–२ बसौटी, कैलाली

भेंरह्वा रामदास

दिपक चौधरी ‘असीम’