पट्ठरहे खुशी पारक लाग फुला चह्राइक् परठ

वसन्त चौधरी
२ जेष्ठ २०७८, आईतवार
पट्ठरहे खुशी पारक लाग फुला चह्राइक् परठ

पट्ठरहे खुशी पारक लाग फुला चह्राइक् परठ ।
ना बोलठ् ना चलठ टबफें शिर झुकाइक् परठ ।

स्वार्थी समाज स्वार्थी संसार अस्टही बा यहाँ,
केकरो चोटमे अपन मन काहे रुवाइक् परठ् ।

कबु मिलन कबु बिछोर यी कैसिन रीत हो इ,
कसम खाके जोरल नाँट फेन छुटाइक् परठ् ।

मिलन बिछोर हुइना यी भाग्यके खेल हो हेरो,
समय आइठ् टो खाइल कसम टुटाइक् परठ् ।

यहाँ सिर्हन्नी भिजगैल आँखीक् आँस सुखगैल,
टुहिन बिदाइ करबेर हिम्मतफे जुटाइक् परठ् ।
वसन्त चौधरी
शुक्लाफाँटा- ३ जोन्हाँपुर, कंचनपुर

पट्ठरहे खुशी पारक लाग फुला चह्राइक् परठ

वसन्त चौधरी

शुक्लाफाँटा- ३ जोन्हाँपुर, कंचनपुर