गजल
प्रदेशसे घरे कब जैना हो दिन गन्टि रठुँ ।
नै खाजाइठ सोच्के मारे भात सन्टि रठुँ
काहो टिहुवार काहो रमाइलो पटे नैहो,
फोटुम् मुस्कान डेख्ठै मै दुख खन्टि रठुँ ।
सोच्ठंै कमाइटा यि महिनम् पैसा पठाइ,
घरेम् समस्या परल बा मैफे जन्टि रठुँ ।
बटैठैं नोकरके नौ काम करही परठ हुँ,
उहे सोच्के अरहाइल काम मै मन्टि रठुँ ।
घरेसे फोन कर्के पुछ्ठैं काम कैसिन बा,
मजा बा कटि ढेबरमे मुस्कान नन्टि रठुँ ।
सलिन चौधरी
घोडाघोडी–८ दिपनगर कैलाली