रसाइल करम चुह्गइल
बुडी बुडी सन्डहिया आइल बा कहट सुनके भिट्टरसे बुह्रिया निकरठ् । टब डेखठ, उँकवारीम् लुग्गक् मोटरी । मानो सँचमुच उ कौनो सन्डहिया हो । टोर घर कहाँ हो ? कहाँ जाइटे बाबु ? बुह्रिया पुछठ् । मै हस् पापीहे आझटक् यी समाजमे सोरही लगाके बलुइया मनै जियल बटाँ । सोंचके रोशनीक् आँखी मन्से आँश गिरे लग्ठीस् ।
रोशनी रोइटी रोइटी जनाइठ् दिदी मोर घरडुवार कुछ नैहो । मै टे जिन्गीक् सही डगर छोरके बहुत दुर आके भुलाइल यात्री हुँ । जे सय घरके डवारी डवारी भिख मँग्गी बन्के नेंगटुँ । लकिन अपन सही घर चिन्हके फेन जाइ नैसेकठँु ।
उ सारा कहानी बट्वइटी जाइठ–‘दिदी जब मै १७ बरसके रहुँ टे मोर भोज हुइल । डुठो लर्का फेन जन्मलाँ । एक बरसके बाद मोर खशीके रंगीबिरंगी जिन्गीसे भगवान बहुत भारी अन्याय कैलाँ । माँगक् सेन्डुर हाँठक् लाल काइल चुरिया फुटगैल । महिन अपन बाँहोमे लेके स्वर्गके सुखके अनुभूति डेहुइया मोर जीवन संघरिया नैरहगैलाँ । अट्रा कहिके रोशनी फेनसे जोर जोरसे रोइ लागठ् । टब बुह्रिया बाबु जिन रो कहठ टे आँश पोछटी उ सँुकसुँक करटी बट्वाइ लागठ् । हुँकार परलोक गैलोपर मनमे अट्ना भारी पीडा लेले जीवनके चित्कारहे मनभिट्टर डुबाके दिन गुजरटी रहुँ । करट करट छावा ७ बरस ओ छाइ ४ बरसके होगैलाँ । जीवनके आधार उहे लर्कन मानके भगनवँक् उ अन्यायके पीडा खटियाइल् खटराहस् होरख्ले रहे ।
एक दिन ओहकान संघरिया प्रकाश मोर घर सुवर खोजे आइल । उहीहे मिझ्नी बनाके खवा पिवाके पठैलुँ । टबसे मोर मन भिट्टर एक पुरुषके अभाव रहलहस् महसुस हुइ लागल । मने मने कोरा जिन्गीक् कल्पनामे डुबके एकठो रंगीन जीवनके पूmलरिया बनाइ लग्नु मै । प्रकाश फेन कुछ ज्याडे मोर घर आइ लागल । आब टे उही मै अपन घर एक दुइ रात बैठाके पठाइ लग्नु । आउर ओकर ओ मोर बीचमे जिन्गीक् उ रंगीन पूmलरियामे पुग्ना सिरही फेन बनगैल । टब हमार उपर डुनियाँ शंका कैके लंका जराइ लागल । लकिन उ शंका नैरहे । सँच बात रहे । आब टे मै अपन निजि स्वर्गके टन जियल डाइक् टुवर लर्का बनैना फेन तयार रहुँ ।
यी बात मोर भैया पटा पाइल । टब महिन खोब सम्झाइल । ‘दिदी टैँ काकरे अइसिन कर्ठे । यी भैनेनके टे कुछ ख्याल कर । एक टे बाबक् मैयाँ कैसिन रहठ जाने नैपैलाँ यी लर्का । टिहुँपर टंै छोरके जइबे टे यी लर्कनके हालत का हुइहिन् ? हाँ, कि लर्का पर्का नैरटाँ, घरेम् जग्गा जमिन नैरहट टे डोसर बात रहे । सम्पत्ति फेन टुहरिनके जिन्गीभर खाइ पुग्ना बावै । आउर भैने फेन टे भारी होचुक्लाँ । अइसिन समयमे डुनियाँ कौन नजरसे हेरी । ठीक बावै, टैं टे चलजैबे लकिन लर्का यी समाजमे का इज्जत लेके मुह डेखैही । का यी टोर लर्का नैहुँइट् ? का टोरमे रना डाइक् मैयाँ ममता नैहोवै ? कि टोर लर्का डाइक् ममताके छाँहीमे पलके समाजमे इज्जतके साथ कपार ठार्ह कैके नेंगिट ।’
अस्टेके भैया सम्झैटी गैल महिन । लकिन मै उ सब ठिक भावमे सुनाइल कहानीहस् सुन्टी गैलुँ, टरे मुन्टी लगाके । भैया आघे कहटी गैल । ‘दिदी मै हाँठ जोरटँु टैं मजासे लर्कनहे पह्रा । शिक्षित करा । यी लर्कन कब्बो भाटुक् कमी महसुस हुइ जिन डे । आउर सत्यके साथ यी लर्कन जलम डेके बह्रा पह्राके शिक्षित कराके भविष्य सुखी बनाडेहना अपन कर्तव्य पुरा कर । अपन सतित्व बँचाके भाटुक् सतित्व पर बैठ् दिदी, बेठ । टैँ टे उल्टे उहे सतित्व गवाइक् टन एक ओर दुइ लर्कनके जिन्गी अंढरिया रातमे छोरके डोसर ओर प्रकशवक् जनेवक् खुशी अछोरे जाइटे । सौटिनियाँ बने जाइटे ।’ भैया सम्झाके गैल ।
टब मै मने मने सोचे लग्नुँ । का हो यी समाजके नियम ? विधवा भर डोसर भोज कैके जीवनके वास्तविक सुख लेहे नैपैना ? लकिन पुरुष भर जन्नी मुटी किल बाजा गाजाके साथ अविर पटाका उरैटी डोसर भोज करे पैना । ओ हम्रे जन्नीक् जात भर विधवा हुइलेसे जिन्गी भर रंगी बिरंगीसे दुर होके डोसर भोजके नाउँ टक लेहे नैमिल्ना ? अत्रा भारी अन्याय मै नैसहम् । ओ एकर विरोधमे मै उदाहरण बन्के डेखैम् ।
अस्टके अनेक बात मनमे खेलैटी मै प्रकाशके संगे उर्हर जैना पक्का कैलुँ । एक दिन रातके जब प्रकाश मोर घर आइल, टब रातके ड्ुनु लर्कन बहुत भारी धोखा डेके खुद जलम डेना डाइसे पैलाँ । शायद यिहीसे भारी धोखा जिन्गीम् कौनो फेन नैरहिहिन् ।
जब मै प्रकाशके घर गैलुँ टे, उ पहिलेक् बर्की जनेवाँहे एक्को मजा नैमाने लागल । काकरे कि उ जनेवाँ महिनसे कुछ छिपल रहे । प्रकाश महिन अपन प्यार डेके मोर जवानीसे खेल्टी रहल । मै फेन खुशी रहुँ । उ पाके जो मोर सबसे भारी प्यास रहे । जब डु बरस बिटल । उ महिनसे ढिरे ढिरे दुर होके डोसर बठिनियाँसे खेले लागल । जब मै पटा पैलुँ टे, कोइ हालतमे उही नैलेहे डेम कलुँ । टब प्रकशवा महिन पिटे लागल कि टैँ फेन टे केकरो सौटा बन्के ओकर सुख अछोरे आइल रहिस् कलेसे टोर उप्पर फेन सौटा ठप्लेसे का हुइ ? खास बात टैं टे सुखाइ लागल फूलाहस बुह्राइ फेन लग्ले । टुहिन डेख्के महिन मजा फेन नैलागठ । टैं टे यी घरम्से निकरले ठिक बावै ।
ओकर बारम्बार उहे व्यवहार सहे नैसेक्के एक दिन घरम्से निकर गैलुँ दिदी, एक लक्ष्य विहिन यात्रीहस् । आब भरखर बुझ्लुँ दिदी । भैयक् कहल बात वास्तविकतामे उ मोर जीवन ओ जवानीसे खेल्लक् बहुत भारी धोखा रहे धोखा …।
जिन्गीक् वास्तविकता ओ सुख संघारक् टन प्रकशवक् बाँहोमे बाँन्ढके अपन जिन्गीक् जौन फुटल करम रसैले रहुँ उ चुह्गैल दिदी, चुह्गैल ।
अट्रा कहिके रोशनी महाँ लम्मा साँस फेरके टरे कपार करालेहठ् । टब बुह्रिया कहठ्–‘बाबु टंै अपन जिन्गीक् वास्तविकतासे बहुत दुर जाके महाँ भारी गल्टी करले । मोर फेन टे एकठो छावा जल्मल टे अपने बिट्गैलाँ । लकिन मै ओहकान सतित्व पर बैठ्के अपन छावाहे बरा दुःख कैके पह्रैलुँ, बह्रैलुँ । आझ मोर छावा आँखी अस्पतालके डाक्टर बनल बावै । ओहैं आँखी विमारीनके सेवा कैके अपन कर्तव्य पुरा कर्टा । यी घर ओक्रे सफलताके प्रतिक हो । बस उहे छावक् सफलता डेख्के कबु कबु अपन बुह्रवासे सपनामे छावक् सफलताके बात बट्वाइहस् लागठ । अट्रे कहटी कहटी बुह्रियक् बोल ढोढरा जैठिस् । आँखी रसा जैठिस् । मनेमने चिटाइटा अपन हुँकिहिन । अपन हुँकिहिन् । रोशनी बुह्रियक् मुह हेरटी रहिजाइठ् । अस्टके रोशनीक् जीवन रसाइल करम चुह्गैलिस् । रसाइल करम चुह्गइल ।
सागर कुस्मी ‘संगत’
कैलाली