डाइ ! मैं बुक्कि लेके आगइलुँ

छविलाल कोपिला
१० असार २०७८, बिहीबार
डाइ ! मैं बुक्कि लेके आगइलुँ

डाइ ! मैं बुक्कि लेके आगइलुँ
फुलमटिया ५ बरसके हुइल् । उ गाउँक् स्कुलिम पर्हठ् । आझ फेन ओकर स्कुल जैना जुन हुगइलिस् । स्कुल जैना जुन ओकर डाइ, सुग्घरके सँप्रा डेठिस् । आझ फेन मुँरि चोंचके झुल्वा, फराक फेन घलाडेलिस् । उ जोगनियाँ हस बिल्गाइ लागल् । ओसिक टे फुलमटिया अस्टक् नन्हें रोज डिन सुग्घुर रहना मन पराइठ ओ ओकर डाइ फेन अस्टके सँप्रा डेठिस् ओ घोट्टइलके लह्वाडेठिस् । आझ उहिहे डोसर मेर लाग्टिस् । ओकर कपन्डामे लगाइल टेल मगमग–मगमग मँह्कटिस् ।

यिहिसे पहिले ओकर कपन्डम असिन मँह्कना टेल कब्बो नै लगाइल रहिस् । उहेसे फेन उहिहे कसिन कसिन लागटहिस् । उ आपन डाइसे पुँछल्–‘डाइ मोर कपारिक का मँह्कटा ?’

डाइ कलिस्–‘बुक्कि बास हो फुलु ।’ ओकर डाइ मैयाँ कैले फुलमटियैहे फुलु कैह्के फेन बोल्कर्ठिस् ।

‘बुक्कि कसिक मोर कपन्डम आइल ?’ उ जानक चाहल् ।

‘यि टेलमे मिलाके लगैबो टे मँह्कठ् । आझ मैं टोहाँर कपन्डक उहे टेल लगाडेले बटुँ ।’

‘डाइ ! बुक्कि, टेलमे कसिक आइल् ?’

‘कुछ डिन टेलेमे बुक्कि बिलोर्बाे टे बुक्किक बास टेलेम आइठ् फुलु ।’ डाइ मँह्कना टेल बनैना सिखैठिस् ।

‘टब डाइ ! यि कहाँ मिलठ् ?’

‘उ डम्मर्वामे मिलठ् ।’ लग्गेक डम्मर्वा डेखैटि ।

‘टब टे मैं आझ टुरे जइम ना डाइ ।’

‘छोट लर्का ओट्रा डुर नै जइठाँ ।’

‘का करे डाइ ।’

‘उ डम्मर्वा महाँ ठार्ह बा, वहाँ बाघ, भालु बैठ्ठाँ, जोंक लग्ठाँ, काँटा गरठ् उहेसे नैजैना हो ।’ डाइ सम्झैटि कठिस् ।

‘नाइ मैं टे बुक्कि टुरे चल्जइम् ।’

‘बघवा काटि । नैजइठाँ फुलु ।’ डाइ डुर्वइठिस् ।

फुलमटियक डाइ डुर्वइलेसे फेन ओकर बुक्कि टुरे जैना सौक नैहेरइठिस् । उ जसिक फेन बुक्कि टुरके नन्नाँ सोँचठ् ।

एक डुइ डिन परसे सनिच्चर आइठ् । फुलमटियक स्कुलिम छुट्टि हुइठिस् । ओकर मनमे बुक्कि फुला टुरे जैना अभिन मन टुटल नैरहिस् । उ अन्गुट्टि कुहिहे बिना जनाइल घरसे निक्रठ् ।

उ डम्मर्वा हेरल् । महाँ ठार्ह । टब्बो हिम्मट नैहारल् । उ मनैनके नेंग्लक डगरक सर्ने सर्ने डम्मर्वा पुगल् । महाँ उँचइया डेखके उ एक बेर उँप्पर हेरल् ओ उँचियक खोजल् ।

गोर बिछुलके घिरघिर, घिरघिर टरे पुग्गइल् । गोरक् ठेहुन खुलुक गैलिस् । रकट निकरे लग्लिस् । गोरम् लागल ढुर झराइल् ओ ठुक लगाइल् । अभिन रकट नैठँम्ह्लिस् । उ भुइयाँ मनिक ढुर झोंकल निक्टलकमे ओ फेन उठल ओ उँचियाइ लागल् । डम्मर्वापर चौर्हल् टे पट्निपटानके घर डेखल् । कट्रा सुग्घुर । टम्हें घुस्मुर्लक चोट फेन बिस्रा डारल ।

मनो, डम्मर्वा सुनकाल रहे । कहुँ कहुँ चिरै बोलिँट । का, का जाट हुँइट् भुँइयाँमे खर्फराँइट् । ओकर मन जुन उहे बुक्किक् फुलामे किल रहिस् । अपन टारमे नेंगटा । टब्बेहें उ बैरिक् झम्रामे बाझठ् । बैरिक् काँटा जहोंर टहोंर बकोट डेठिस् । काँटा सर्टि उ फेनसे परगा नमाइठ् ।

कुछ डुर पुगल टे गिडार बोलट सुनठ् । ओकर मन ढसाकसे डरैठिस् । मनो बुक्कि टुरके जसिक फेन नानम् कैह्के उ अभिन हिम्मट नै हारठ् । ठोरिक्के नेंगठ टे बघवा गुँजरठ् । ओकर जिउ फेन ढसाकसे कैठिस् । उ पौलि रोकके गुँजलक ओर हेरठ् । डोसर डम्मर्वक् पार्ह हो कैह्के फेन परगा नापल ।

एक घचिक परसे गोर खुज्याइ हस् लग्ठिस् । उ अपन गोर हेरठ् । जोक्वा चप्ट्याइल रठिस् । उ डरके मारे ओट्ठहें घिघियइटि ढर्रामे गोर घिसोरे लागठ् । अपन गोर हेरठ् । जोक्वा छुट रख्ले रहठ् । रकट भर बहटि रठिस् । उ हटर पटर उठठ् ओ फेन उँचियाइठ् ।

एक घचिकमे भुरेभइल् बुक्कि फुलल् डेखठ् । उ बुक्कि डेख्के डौरट् पुगठ् । पुग्टि किल मगमग–मगमग मँह्के लग्ठिस् । उ यिहे हो बुक्कि कैह्के फेन जानठ् ।

उ मनभरके फुला टुरठ् ओ फोहैटि घरेओर लागठ् । घुमेबेर गिडार बोल्लक्, बघवा गुजर्लक्, जोंक्वा लग्गक फेन बिस्रा डारठ् । उ फोहैटि डौरठ् ।

यहोंर छाइ कहाँ चल्गइल कैह्के फुलमटियक् डाइ खोब खोज्ठिस् । रानपरोप, साँढि–कोना सक्कुओर खोजके फेन नैभेटैठिस् । यहोंर पुछ्ठिस्, ओहोंर पुछ्ठिस् टब्बो नैभेटैठिस् ओ खोजट्–खोजट् जब डम्मर्वाओर जाइठ् टे फुलमटियाहे आइट डेखठ् । फुलमटिया फेन डाइहे डेखठ् ।

फोहैटि–‘डाइ ! यिह् मैं बुक्कि लेके आगइलुँ ।’

कोनम् लेटि–‘बाघ, भालनसे चोँठ्वा पैना हस् कहाँ जैठो मोर छाइ । आब असिके अक्केलि जिन जइहो ना ।’

फुलमटिया अपन नानल् बुक्किक् मुट्ठा डेटि–‘डाइ ! यि फुला ।’

डाइ बुक्किक फुला पकर्टि–‘चोलो आब घरे जाइ ।’

डुनु जाने घरेओर लग्ठाँ । फुलमटिया आघे–आघे कुड्गटि आइठ्, डाइ पाछे–पाछे नेंग्टि अइठिस् ।
छविलाल कोपिला
लमही–५ मजगाँवाँ डेउखर दांग

डाइ ! मैं बुक्कि लेके आगइलुँ

छविलाल कोपिला