‘साहित्य मनैंनके जिन्गीक् समुन्डरके पानी हो’

लाहुराम चौधरी
१४ असार २०७८, सोमबार
‘साहित्य मनैंनके जिन्गीक् समुन्डरके पानी हो’

साहित्य मनैंनके जिन्गीक् समुन्डरके पानी हो’

कैलाली जिल्लाके भजनी नगरपालिका वडा नम्बर ९ पहलवान गाउँके साहित्यकार लाहुराम चौधरी, थारु साहित्यकार मध्ये एक हुइँट । बाबा तेजराम चौधरी ओ डाइ माघीदेवी चौधरीके कोखसे जन्मल २०४० साल पुस महिनाके ४ गते इ धर्तीमे गोरा टेकलैं । उहाँ भूलाइल डगर उपन्यास, बुट्ना खिस्सा, सात सहेली खिस्सा, फुलरिया गजल संग्रह, छिर्कल ओजरिया गजल मुक्तक संग्रह, सताउँछ यादले मुक्तक संग्रह, मनके बह संयुक्त मुक्तक संग्रह फेन प्राकासित हुइल बटिन । थारु साहित्यिक क्षेत्रमे नाम ओ दाम कमाइल लेखकके रुपमे स्थापित हुइल बटैं । ओस्टेके हरचाली साहित््ियक त्रैमासिक, निसराउ साप्ताहिक पत्रिका लगायत टमान पत्रिकाके आजीवन सदस्य फेन हुइँट् । इहे क्रममे निसराउ साप्ताहिक पत्रिकाके प्रधान सम्पादक सागर कुश्मीसे करल छोटमिठ बातचित यहाँ प्रस्तुत कैल बा ।

१.अप्ने लेखन क्षेत्र ओर कहियासे लगली ? लिख्ना आशिर्वाद कहाँसे पैली ?
खासे पता नैहुइलेसे फेन २०५६ साल ओरहस् लागठ । उ समय रहे, मन्डरहुवा नाच हेरे गइल बेलामे सायरीसे डोसरहे चलैती चलैटी, सायरीसे झगरा करटी करटी साहित्य ओर लागलहस् पटा चलठ । ठोर बहुत टो अप्नही लिख्ना प्रयास करनु, लिख्नु फेन । मनो बिसेस करके अक्षरके आकार डेहुइया बिजुलिया गाउँक् डाडु काशीराम चौधरीहे सम्झही परठ । हुँकिनसे साहित्यके बारेम सिख्नु ।

२.अप्नेक बाल्यकाल कैसिक बिटल बटा डिना ? कब्बु नैबिस्राइ सेक्ना जिन्गीक्े सबसे यादगार पल का बा ?
मै छोट रहँु । डाइ बाबक् हाल ‘करिया अक्षर भैंस बराबर’ छाइ छावा छडर बडर, मै सबसे छोट कलेसे छोट्कवा रहुँ, अब्बा हुँ फेन । पाँच बरसमे मोर डाइ बाबा महिन छेगरहुवा बना डेनैं । संघरियनसंगे स्कूल जैना कहुँ टो डाइ बाबा कहंै ‘पर्हा पण्डित कौने काम हर जोटो धानेधान’ चुपचाप ढेंकिक् पुँछीटिर चुपा जाउ । सब संघरियन पर्हे जाइट् डेखके महिन फेन सौक लागे मनो जाइ नैसेकुँ । सरस्वतीक पुजाके दिन मै भागके प्रसाद खाइ स्कूल चलजैठुँ । बहुत मजा लागठ । लावा विद्यार्थी कहटी मस्टरुवन महिन स्याबासी डेहठैं । घरे पुग्टीकिल डाइ ठपरा मुक्काले स्याबासी डेहठंै ।
घरेसे भाग भाग हुइलेसे फेन स्कूल जाइठ तीन चार महिना होजाइठ । स्कूलसे किताब फेन मिलल रहठ । बैसाखके ४ गते, कक्षामे राम बहादुर चौधरी सर अइठंै । होमवर्क डेखाउ कहठंै, प्रश्नके उत्तर नैजानके खाली डेखाडेठुँ कि कसके डुनु गालेम् झापर मरठंै । पिठिम् गमागम मारके मोर कापी बाहेर फेंक डेहठंै ओ थारु भासामे खोब गरयैठैं । सायद मोर जिन्गीम् कबु नैभुले सेक्ना यादगार पल ओहेहस् लागठ । स्कुल कतिकिल समझ लेठँु ।

३.अब्बेसम सक्कु मिलाके सक्कु कैठो सम पोस्टा प्रकासन कैसेक्ली ?
खासे ढेर टो नैहो ठोरठार खेलेहस् पोस्टा टो प्रकासन कैले बटुँ मनो कामसे फुर्सत नैहोके छपाइल पोस्टा घरही रहिगइल । बहुत टो लिखल डायरीमे किल सिमित बा । समय मिली कलेसे समय समयमे निकरटी रहम । मोर प्रकासित पोस्टा फूलरिया (गजल संग्रह २०६६), भूलाईल डगर (उपन्यास २०६९), बुट्ना (खिस्सा २०७१), छिर्कल ओजरिया (गजल मुक्तक संग्रह २०७४), सात सहेली (खिस्सा २०७४), सताउँछ यादले (संयुक्त मुक्तक संग्रह २०७४), मनके बह (संयुक्त मुक्तक संग्रह २०७५) । एकठो उपन्यास अइना तयारीम् बा ।
४.साहित्यिक क्षेत्रमे लागके का पैली ओ का गुमैली ?
खाके फेन पस्टैना नैखाके फेन पस्टैना, करलेसे मनमे दुबिधा किल हुइठ । कुछ चिजके आस नैकरलेसे हो जाइठ । सब दिन काम बन्टी रहि कलेसे बिगरल बेलामे काम सपरना बहुत मुस्किल होजाइठ । कुछ पाइक लग कुछ गुमाइक परठ । साहित्य विधा कब्बु नैओरैना विधा हो । जट्ना गहिरमे जाउ ओत्रे गहिर मिल्टी रहठ । डगरा टमान बा । डगरमे नेंगे जाने परठ । टब किल कुछ मिलठ । मै यहाँसम पुग्नु यहे मोर लाग बरवार बात हो । इहे अपन नाउँ चिन्हैना मौका पैनु । गुमाइलसह टे कुछ नैलागठ ।

५.अप्ने खास कैके कौन कौन विधामे कलम चलैठि ? कैसिन रचना मन परठ ?
लगभग सक्कु विधामे कलम टो चलैठुँ मनो बिसेस करके गजल, मुक्तक, खिस्सा, कथा, कविता, सायरी, उपन्यास हल्का फुल्का हाइकु फेन लिख्ठुँ ।

६.अझकल अप्नेक गाउँ ठाउँ ओरिक थारु साहित्यके अवस्था कैसिन बा ?
कहे परल मन खोलके आब । एकदम कमजोर बा, एहोर थारु साहित्यके अवस्था । थारु भासा जे फेन बोले जन्ठंै मनो उहीहे लिख्ना बहुत कर्रा हुइलक ओरसे केउ फेन कलम नैचलैठैं । कोइ टो लिखल फेन पर्हे नैजन्ठैं । मै अक्केली बटुँ भजनीमे । जत्रा सेकटुँ अपन ओरसे लिखटी बटुँ । सम्बन्धित संघ सस्था एहोंर आके कार्यक्रम कैना जरुरी बा ।

७.थारु भासा साहित्यसे थारु समाजहे कैसिक आघे बर्हाइ सेक्जाइ ?
कहलेसे कहे नैमिलठ नैटो पुस्टामे आगी लागठ कहठंै सायद सँच हो । साहित्यमे रुची रलेसे किल नाही, इच्छा, तन, मन, धन सब हुइना जरुरी बा । सँच कहँु कि आझसम हमार गाउँ समाजमे साहित्यके कौनो फेन कार्यक्रम नैहुइल हो । सहयोग कर्ना केउ फेन तयारे नैहुइठंै । आझकल डिजे, आइटम डान्स, डिस्को डान्स हुइ कलेसे हाइ हाइ करठंै । साहित्यिक कार्यक्रम कलेसे बाइ बाइ कहठैं । टबे लचार हुइलहस् लागठ हमार थारु समाजसे । अइना दिनमे सक्कुहुनके सहयोग साठ मिलि कलेसे जरुर कुछ सकारात्मक परिवर्तन हुइ ।

८.एक्ठो सफल लेखक बनक लाग कत्रा संघर्ष करे परठ ?
कहनम् ओ करनम् फरक टो रहबे करठ । हर जोत्ना होए, चाहे फर्हुवा चलैना होए, चाहे डुकान चलैना होए, चाहे लिख्ना या कुछ फेन करलेसे संघर्ष टो करहिक परठ । नैटो कहाँ पुगे सेकजाइ । मै टो भरखर सिख्नौटी वाला लेखक हुइटुँ । महिन खासे पटा नैहुइलक ओरसे लिख्ना जारी बा मनो सफल लेखक बनक लाग समयसंगे चले जाने परल । तन मन धनहे फेन हेरे सेके परल जैसिन लागठ ।

९.अझकलके युबन्हे साहित्यमे कलम चलाइक लाग का कैसिन योजना बनैलेसे मजा हुइ ?
घर चलैना रहे चाहे साइकल चलैना रहे । जुगार टो लगैहिक परठ । मनो अकेली होके कुछ बनठ नाइ । एक टो फुर्सत फेन नैरहठ । टबु फेन सक्कुहुनके लाग हुइलेसे हरेक बरस कुछ ना कुछ पोस्टा निकरटी रहम । काहे झुठ बोल्ना, अभिनसम् टो अझकलके युबन्हे साहित्यमे कलम चल्वइम कहिके कौनो योजना नैबनैले हुइटुँ । आझुक् लरका काल्हीक साहित्यकार, लेखक जरुर होइँ, मनो सोझे कलम चलैना डुरके बात हो । सोंच टो बरवार बा । सेकम कलेसे साहित्यिक बार्षिक मुखपत्र ओजरिया पत्रिका निकरना लगभग तयारे बा । जौन युवा हुक्रनके लाग साहित्यके खुराक बनेसेकी ।

१०.मनैंनके जिन्गीमे साहित्यहे कैसिक परिभाषित कर्ठी ?
साहित्य मनैंनके जिन्गीक समुन्डरके पानी हो । पिलेसे प्यास बुझैना, लहैलेसे, हाँठमुह ढोइलेसे साफ करैना, नैजन्लेसे कुछ नै । जट्ना अध्ययन करलेसे कबु नैओरैना विधा साहित्य हो ।

११.ओरोनीमे कुछ छुटल बात बा कि कहे पर्ना ?
रहे, मनो लिखके मन पुरा नैहुइसेकी । समयहे ख्याल करटी हमार परगा पत्रिकाहे ढेरसे ढेर ढन्यवाद बा । ओ लगातार साहित्यके डिया बरटी रहे । सबके घरघर पुगे । तेल पानी डारके जिवइटी रहब कहटी डेवारीके सुभकामना सक्कु जनहन । धन्यवाद ।

लाहुराम चौधरी

‘साहित्य मनैंनके जिन्गीक् समुन्डरके पानी हो’

लाहुराम चौधरी