गोट्यार

अंकर अन्जान सहयात्री
१५ असार २०७८, मंगलवार
गोट्यार

गोट्यार
टोर आँखि फुट्गैल रहे रे । कि जर्जर आँढर होगैल रहिस् ? अट्राभारि मेंर्वा नाइ डेख्ले । सक्कु उँइरा बिगार डेहले । भुरहान मझ्ला अपन छुट्की भैवाहे डम्कैटि रहे । छोट्कवा फेन अपन डाडक् मुहेंमुहें लरटहे । टब्बेहें मैं ठभाकसे ओइने ठन पुग्गैनु । काहे झगरा करटो कैह्के पुछ्नु । डुनुजे अपन बात सुनैनैं । बात रहे, खेटुवामें पानी चारक् लाग् मेंर्वक् गर्ठा (गहरा) कट्लक् ।

यि डाडुभैया कुछ दिन आघे घर फुट्नैं । घर फुट्नासे पहिले ओइनके घर स्वर्गसे सुन्डर रहिन । ओइनके चालचलन डेख्के सबजे लल्च्याँइ । आझ डाडुभैया अप्नेअप्ने लरट डेख्के महिन ओइनके मिलल् घर ओ महिनेहे सम्झैलक् बात याड आइल ।

घर अल्गैनासे पहिले डाडुभैया महिन खोब सम्झाइँ । ‘हेरि भाइ हम्रे डाडुभैया अट्रा मिलके रठि कि, हम्रे कबु नाइ घर अल्गैबि । अगर अल्गाफें जाब कलेसे एकडोसरहे अपन सेकलसम् सघाब । सुखडुखमें साठ डेबि । जन्नी टे अस्टे हुइटै, सट्टर घरेक बिटिया नाइ मिल्ठैं । लकिन हम्रे मिलके रहब । काकरे कि हम्रे टे अक्के खुनके मनैं हुइटि ।’

लकिन आझ एक्ठो गर्ठक् लाग मारकाट करटैं । टबे कठैं गोट्यार कबु नाइ हुइसेक्ठैं अपन, गिर्गिट अपन रंग फेरेहस् रंग फेर लेठैं । बरु परोसि काम लाग जैहिँ । गोट्यार कबु नाइ काम लगहिँ । ‘गोट्यार ओ हट्यार’ अक्के हुइटैं ।
अंकर अन्जान सहयात्री
जानकी ५ जबलपुर कैलाली

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अंकर अन्जान सहयात्री