७ आश्विन २०८०, आईतवार
थारु अनलाइन रेडियो
मुक्तक
कुछ लिखुँ कैह्के कलम उठैठुँ कलम रूक जाइठ् ।मनके पोक्री दिलसे खोलुँ कठँु मनमे नुक जाइठ् ।
बहुट बा, इच्छा चाहना यी जिन्गीम् कुछ कर्ना,मै सपना डेख्टी रहि जैठुँ बहुट कुछ झुक जाइठ् ।
रामचरण चौधरी ‘अजरइल’टीकापुर १ कैलाली