गजल
हुइटुँ थारु कैह्के अपने आप पर गर्व लागठ् ।
बजट जब मन्ड्रा टो यि जिउ ओहरी भागठ् ।
डेखैठैं बुडीबुडु पुरान गहना नहंगा फरिया जब,
घाल्के बुडीहे बिटल दिन याद करैना रहर जागठ् ।
हेरैटी जाइटा हमार थारू पहिचान कैना का हो,
होगिल् बेजान हमार कला सँस्कृति बन्के कागट् ।
बा सपसे सोहावान हमार भेषभुषा निहारके हेरो,
भुलाके सप्कुछ थारु नैहुँ कैह्के कोइ काहे ठागठ् ।
मन्टी मजा हमार रितीरिवाज मनैटी टरटिहुवार,
थारू बन्के भगन्वाँसे मन मोर यिहे मागठ् ।
प्रतिक्षा चौधरी
जानकी ५ पठरहिया कैलाली