अच्छर–स्तम्भ

छविलाल कोपिला
१९ श्रावण २०७८, मंगलवार
अच्छर–स्तम्भ

कविता
अच्छर–स्तम्भ

हम्रे मनभरके
आरु फुलल् सपना बिछैटी
समय किचुलके, समय नप्टी बटी
काँटा सवाँरके सुगम यात्राके संकल्पमे
सिर्जनाके फूला
इन्दे्रणी–सपनक् बौनी उप्पर
ठर्हियाके अच्छर‘स्तम्भ’ ठह्र्यौटी बटी ।

हम्रे, अन्ढार चिंठके, ओज्रार खोजटी
ओहोंर गपसे ओज्रार लिलके
अन्ढार साम्राज्य कैटी बा
ओ नैतिकता माटिमे खिस्मोरके
अप्ने खोंखुर बन्टि बा
यहोंर
इतिहास नोंछके कुछ करिया हाँठ
वर्तमान उप्पर करिया पोट्टी
खिट्रा हाँसी हँस्टी बटाँ
सपनक् भिट्टर अज्गर साँप पालके
बिष–भ्रूण हुर्कैटी बटाँ
ओ टिर्छी इसारा कर्टी
समाजहे ‘ब्ल्याक–होल’मे ढकेल्टी बटाँ ।

हम्रे, मौटसे जिट्ना, समयसे युद्ध लर्टी बटी
मुले, कब्बो मौटसे जिटे नैसेक्ना हम्रे
समयक उप्पर रीस ओ प्रतिशोध कैटी
बम मर्ठी, क्षेप्यास्त्र सोझर्ठी,
अन्त्यमे समयके टेक्नी जब टुटठ्
हम्रे मौटके पाउँमे गिर्ठी ।

सपनक् फुलवारीमे
जगमग–जगमग फुलल् फूलाहे
जब रिसोटके किचुल्ठाँ
अपवित्र पौलीन
स्वाभिमान निरीह हुके हेर्टि रहठ्
यहोंर आँशके टलुवामे डुबके
उत्पीडित जीवन ओ कुहिरासे उट्मुटाके
जिटी बा वर्तमान
डँडुर घाम खोज्टी ।

शिशिर खल्हाके, बसन्त उचियाइठ्,
जब उचियाइठ् उ
यहोंर फूला हाँसठ्
पून्वाँसी मुस्कुराइठ्
ओ हिर्डाक घुर्घुटिक भिट्टरसे मन फेन खुसाइठ्
असिके, उठठ्
सिर्जनाके अच्छर–‘स्तम्भ’ ।

छविलाल कोपिला
लमही ६ मजगाँवाँ डेउखर दांग

अच्छर–स्तम्भ

छविलाल कोपिला