अपन घर परिवारसे दुर रहना, प्रदेशी हुँ मै

मख्खन थारू
३१ श्रावण २०७८, आईतवार
अपन घर परिवारसे दुर रहना, प्रदेशी हुँ मै

गजल

अपन घर परिवारसे दुर रहना, प्रदेशी हुँ मै ।
चाहे जसिन दुख, पिर सहना, प्रदेशी हुँ मै ।

गाउँ ठाउँ घर परिवार सम्झके रोइठ् मन,
ओहे आँशक् सागरमे बहना, प्रदेशी हुँ मै ।

अपन हाँसी खुशीके बलिदानी डेसेक्नु मै,
घर परिवारके खुशी चहना, प्रदेशी हुँ मै ।

खुन पसिनाके लडिया बहाडेनु प्रदेशमे,
मेहनत ओ परिश्रमके गहना, प्रदेशी हुँ मै ।

प्रदेशमे किल रहिके उराठ होगैल जिन्गी,
अपन प्यारीहे मैयाँसे डहना, प्रदेशी हुँ मै ।

मख्खन थारू
भजनी ४ कैलाली

अपन घर परिवारसे दुर रहना, प्रदेशी हुँ मै

मख्खन थारू