मोर पस्नाके मोल नैहो

इन्दु थारु
२ भाद्र २०७८, बुधबार
मोर पस्नाके मोल नैहो

कविता
मोर पस्नाके मोल नैहो

मोर पस्नाके मोल नैहो
मोर रकटके मोल नैहो
काहे कि
यि पस्ना यि रकट
सक्कु सक्कु मलिक्वक बेगारी हो ।

कइयाँकुचिल अंढरिया रातमे
मोर आंखि निडैनासे पहिले
मोर पन्जरेक् ढिपढिप डिया बुटजाइठ
काहे कि
ढेब्रीक् टेलक फे मलिक्वा मोल लगैले बा ।
जोगनियाँ आइठ अपन पुँछी बरटी
ओकर झिमिकझिमिक बत्तीमे, मै डेख्ठुँ
शहरमे मलिक्वक् घर जगजग ओजरार बा
ओ सोच्ठुँ मलिक्वक् बसमे रहट टे
जोगनियँक् ओजरारके फें मोल लगैने रहे ।

मोर खँरिया, ढिक्री, रोटी
गेंगटा, घोघी, खुर्मा, फुलौरी
कुठ्ली खाली नाहोए सोंचके, पेट नैभरठुँ मजासे
काहे कि
कलुवा मिझ्नी बेरीक् मलिक्वा मोल लगैले बा
भुखले पेट किल नैहो आब
भुखाइल हड्डीमे छटपइटी, मै डेख्ठँु
मलिक्वा रोज रोज रात्रीभोज करठ
ओ सोंच्ठँु मलिक्वक् बसमे रहट टे
मोर लेना साँसके फें मोल लगैने रहे ।

पुस माघेक् जारमे
भुइयम् पैंरक् गड्डा
उप्पर कैयौं ठाउँ फाटल जार नैबटैना कम्रा
काहे कि
मोर निनके पंmे मलिक्वा मोल लगैले बा ।
हाली बिहान होए, घाम लागे
घाम टापम् कना बटिया हेरटी, मै डेख्ठँु
डंडुर हिटरमे मलिक्वा गुड्री फेकाके सुटल बा
ओ सोंच्ठुँ मलिक्वक् बसमे रहट टे
दिनक् घाम टप्लक् फें मोल लगैने रहे ।

यि माटी मोर आजिआजा बुडिबुडुक् बनाइल हो
मलिक्वा डुरुवाके मोर डाइबाबनसे छिनल हो
यि माटी महि चाहल बा
काहे कि
जियटसम् छुटुमुटु झाेंप्री बनाइक लाग
मु जैम टे यिहे माटिम गारक् लाग
मोर उचाइ बराबरके चाहल बा ।
यि माटी मोर कहिके डाबी करक लाग
लाल कागजके पुर्जा चाहल बा
ओकर, मलिक्वा महा महंगा मोल लगैले बा ।

नैहो, मोर पस्नाके मोल नैहो
नैहो, मोर रगतके मोल नैहो
काहे कि
यि पस्ना यि रकट
सक्कु सक्कु मलिक्वक् बेगारी हो ।

इन्दु थारु
कैलाली

मोर पस्नाके मोल नैहो

इन्दु थारु