कविता
जन्नी
कुइ कठ जन्नी कलक घिउ हुइ ट
जारम् जम्ठ घामम् टहक्ठ
कुइ कठ जन्नी कलक जिउ हुइ ट
संगसंग रम्ठ मैयाँले बहक्ठ ।
कुइ कठ जन्नी कलक सुइ हुइ ट
बिना पट्टक च्वास्ससे गस्कठ
जन्नी कलक ट बन्ढुकिक गोली हुइ ट
बिना पट्ट्क ढ्वाम्मसे पट्कठ ।
जन्नीक् कलक बात निमन्बो ट कटि
बिना पट्टक भुनभुनैटी ठुस्कठ
मजा बातम्फें जोबाक लगैलो कटि
घुर्की डेखैटी चिप्पसे लहेर फस्कठ ।
लेकिन मै कठुँ जन्नी कलक चलाइ जन्लसे
मैगर मैयाँ कर्टि मुस्की मर्टि मुस्कठ
घरक् बात घरम् मिलाइ जन्लसे
प्रगतिक डगरम परिवारह उपर उकस्ठ ।
मानबहादुर चौधरी ‘पन्ना’
वीरेन्द्र २ लौबस्टा सुर्खेत