अर्पण

संगम चौधरी
१७ भाद्र २०७८, बिहीबार
अर्पण

कथा
अर्पण

वैशाख जेठके जरेहस लग्ना घाम रहठ । बयाल ओ ढुर बराबर भ्वाँइ भ्वाँइ उरे हस चलठ । गल्ली मनिक डुब्बा घाँस फेन सुखाके चुरचुर होरहठ । टाटुल भौगरहस ढुर रहठ । ओहे जरेहस लग्ना घामेम ओहे टाटुल भौगरहस ढुरिमे अपन पैला चपचप ढर्टी नेगल करठिन कुमारी । टाटुल ढुरिम नेंगे नैसक्के सुखाइल घाँसे घाँसे नेंगे खोजिन । सुख्खा ढर्टी, टाटुल बयालके संगे ढुर फेन ओहे मेर उरठ । ढुरे किल कपार, सुखाइल सुखाइल ढेबर उ फेन सुखाके फाटल रहिन कुमारीक् । जाने कै डिनके भुखाइल रहिन कुमारी । मन मरले भुखले पेट पैंठल रठिन । केकरो साठ ओ बसेराके खोजीमे निकरल बेसाहारा यात्री रहि । कहाँ पुग्ना हो कोइ पटा नैरहिन । ढुरे किल सरीर, कपार फेन ढुरे किल रहिन कुमारीक् । डेख्नामे बौरहि हो कनाहस । मने कुमारी बौरहिया नैरहिन । कुमारी डगरके किनार रहल छोटमोट झंगली टिर बैठके घुमघुमके इन्द्रके ओर हेर्टि रहिन । जेकर टेकर मुहमहे सुन मिलठ एकठो बोरहि आइल बा, एकठो बौरहि बा । इन्द्र अपन घरक अंगनामेसे कुमारीहे हेर्टि रहिंट । कुमारीहे डेख्के इन्द्रहे डया लग्ठिन ओ अपन पैला कुमारी बैठलक् ठाउँ ओर सर्ठंै । कुमारी एक अउरे इन्द्रहे हेर्टि रठि । आँखीमसे आँस गिरटहिन । इन्द्र कुमारीक लग्गे जाके हुकिनसे बोल्ना प्रयास कर्ठैं । इन्द्र कठैं सुनि टे… कुमारी इन्द्रके अनुहार हेर्टि कलिन । हजुर । जब कुमारी अट्रा मजासे बोल्ली इन्द्रहे लग्लिन यि बौरहि हुइ नैसेकही मनै खाली बौरहि कहिके हल्ला फैलैले बटैं । मजै मनैन सबजे बौरहि कलेसे किहि मजा लागि । विचारी कुमारी हुँकार मनक पिरा बिना बुझले सबजे बौरहि बटाडेना । कट्रा डुखल हुइहिन हुँकार मन । मनैन हे बिगर्ना समाज हो सँपरैना फेन समाज हो । विचारी कुमारीहे समाजके लजरमे बौरहि रहि जे जस्टे सुने ओस्टे डेखे लागे । हुइना फेन हो जस्टे सुन्ठैं मनै ओस्टे डेखे लग्ठंै । मने सँच्चा बाट काहो जाने नैचहठंै केकरो केकरो डुख पिराके भाव बुझना नैचहठैं उल्टा फटरंग उरैना काम करठंै । कुमारीके फेन अपने मन हृडयके मनैके कारन ढोखासे यि परिस्थिति बनैले रहिन ।

कुमारीके नरम, मधुर, डुखि आवाजसे इन्द्रहे डया लागे लग्ठिन । कुमारीक् बारेम जन्नास लग्ठिन । इन्द्र कुमारीके ठन बैठके हुँकार पिरा बुझना सुरु कर्ठैं । एक घचिक टे उ मने मुन्टि लगाके सुस्कर सुस्कर रोइली । नाउँ ठेगाना घर डुवार पुछेबेर । कुमारी रोइने बोल्ने कर्ठि कहाँ बटाउ अपन घर जबकी घर डुवार सारा उजरगैल । कहाँसम बटाडिउँ अपन जिन्गीक सफर जब कि मोर डगरके अन्ट नैहो । कसिक बटाउँ अपन हाल खबर जबकी घृणा बडनाम ओ ठुकाइके कमि नैहो । कसिक सुनाउँ अपन फुटल हृडयके सहे नैसेक्ना असर । मनक भित्रे भित्रे चिल्लाइ पुग्ठुँ । कसिके सुनाउँ अपन आँसके कहानी जोन एकएक आँसक् बुँडामे मोर मनक् पिरा छुपल बा । यि जिन्गी यात्रामे कोइ नैहो मोर जिन्गीक पीरा सुनडेहुइया । डाडा आझ अप्नेहे डेख्के असिन लागटा कोइ बा मोर मनक बाट् बुझुइया । सबजे महि डेख्के डुरेसे खरक जैठैं । ओइन्के हेराइ घृणासे भरल रठिन । बौरहि हो कहिके कोइ मोर लग्गे नैआइठ । ना टे कोइ मजासे बोलठ ना टे कोइ खैना पुछठ । कुक्कुर जस्टे सम्झठंै मने डाडा मै पागल नैहुँ । मोर हालट डेख्के बौरहिया कठैं सबजे उहे सम्झठैं । कसिक कहुँ मै पागल नैहुँ । मोर बाट कोइ सुन्ना नैचाहठ । पागलक बाट का सुन्ना कैह्के अपन डगर लाग्जैठैं । कुमारीके बाटसे इन्द्रके आँखी रसाजैठिन । मन पघल जैठिन । कुमारी अपन मनक बाट आघे सुनैटि जैठि । डाडा महि करल व्यवहारसे मै रोइ लग्ठुँ टे मनै सम्झिट यि पुरा बैरहिया हो । डाडा मै अप्न आपसे ढोखा खाइल बटँु । मै अप्ने आपहे लुटैनु । मै एक जहन भरोसा कर्नु । अप्ने आपहे अर्पण कर्नु । मने उ स्वार्ठी मोर जिन्गिसे खेलल । उ मोर जिन्गिहे टहस नहस पार डेहल । मै जिन्गिमे भारि लक्ष्य बोक्ले रहुँ । मने मोर सारा कुछ खटम करडेहल । कुमारी अपन जिन्गिके कहानी सुनैना सुरु कर्ठि । इन्द्र हुँकार डुख डर्ड भरल आवाज सुन्टि रठंै ।

डाडा मै भारि लक्ष्य बोक्के नेंगटुँ । अपन डाइबाबाके नामी छाइ बनके डेखैम । अपन डाइबाबा, गाउँ ठाउँ ओ डेसके नाउँ उठैम । जिन्गिमे कुछ करके डेखैना मोर लक्ष्य रहे । पह्राइमे खेलकुडमे बहुट रुचि रहे मोर । साइकिलके यात्रा करके स्कुल जाइ परे । हर खेलकुडमे भाग लेके लिउँ । पह्राइमे खेल कुछमे सबसे आघे रहुँ । सबजे प्रशंसा करिंट । बहुटजे संघरियाके सोरि जोरलैं । कट्राजे जिवन संघरियाके लाग प्रस्टाव ढरलैं । मने मै अपन लक्ष्य पुरा नैहुइटसम संघरिया बाहेक कौनो उत्तर नैडेनु ।

प्रेम मोर बरे मिल्ना संघरिया रहिंट । मोर हर काममे साठ डेना । कैयोचो टे प्रेम फेन महिसे जीवन संघरियाके प्रस्टाव ढर्लैं मने मै केवल संघरियाके नाटासे हेरुँ ओ जीवन जोरियाके लाग मनाहि कर्टि गैनु । मने ढिरढिरे प्रेम प्रटि मैयाँ लटपटैटि गैल । प्रेमके साठ सहयोग हरडम मिल्टि गैल । प्रेम बिना जिन्गि अढुरा लागे लागल । सुनसान लागे, नेग्लक, बट्ओइलक बानी अक्केलि रहे नैसेक्जाए । बहुट आइठ महि जिन्गिमे साठ डेम कहुइया । लेकिन किहुहे फेन मै अर्पण नै कर्नु । बहुट जे मोर पर व्यक्तिगत रिस ढार्के मोर बडनाम कर्ना प्रयास कर्लैं । महिसे प्रेमके नाटक कर्के फसैना प्रयास कर्लैं । मने मै प्रेमहे मै अपन मन डेसेक्ले रहुँ । प्रेमके एकएक शब्ड मोर कानेम गुन्जे ओ मन छुजाए । प्रेमके उ शब्ड कुमारी यि ज्यान टोहाँर मैयाँमे अर्पण करडेम । चाहे मै टोहाँर हुइ नापाउँ । जट्टिसेसे कुमारी यि जिन्गि भर टोहाँर गुलाम बनडेम चाहे टोहाँर हुइ नापाउँ । जिन्गि भर टोहाँर सेवा कैके बिटाडेम । महि अपन डिलमे ठाउँ नैडेलेसे फेन । एकपल महि समझ डेलेसे पुगजाइ । प्रेमके एकएक शब्डसे मोर मन छुजाए । पटा नैपैनु कब कब अपन मन डेसेकले रहुँ । यी सब बाट प्रेमसे छुपैले रहुँ कि मे प्रेमहे चाहे लागल रहुँ ।

प्रेम डिवसके डिन । उ डिन प्रेम जोरी अपन मैयाँ एक डोसरसे साँटिक साँटा कर्ठैं । उ डिन हम्रे फेन भेट कर्ना चहली । उहे बेला मै अपन चोखा मैयाँ अपन जिन्गि प्रेमहे अर्पण करे पुग्नु । बहुट खुसीक् डिन रहे । हमार लाग यि डुनियाँ बहुट सुन्डर बनगैल रहे । बहुट खुसीके डिन रहे उ बेर । हम्रे एक डोसरसे बहुट खुसी रहि । काम काज पह्राइ चल्टी रहे । प्लस टु के परीक्षा डेसेकले रहुँ । प्रेमहे मै अप्ने आबहे अर्पण कर सेकले रहुँ । जिन्गि भर साठ नैछोर्ना बाचा रहे । प्रेमहे अप्ने मनै सम्झले रहुँ ।

एक डिन अचानक मोर डुर्घटना हुइल । कपारिम चोट लागल जेकर कारण मोर सम्झना शक्तिमे असर पुगल । महि कुछ पटा नैहो अचानक गारीमे लर्नु । अट्रे किल पटा बा । जब अस्पटालमे मोर आवाज खुलल । मै बेहोसमे बोलुँ । का बोल्नु कुछ पटा नैहो । किहिसे कसिक बाट करुँ कुछ पटा नैहो । सबजे सोंचे लग्लैं यि पागल होगैल हुन । मोर कुछ होस नैरहगैल रहे । उहे बेला प्रेमहे काका कनु कुछ पटा नैहो । महिना दिन बाड ठोरठोर होस आइ लागल । टब प्रेमके याड आइल ओ प्रेमहे खोजे लग्नु । मने मोर उ शब्डसे प्रेम महिसे बहुट डुर होगैल रहिंट । जोन हमार नाटा रहे उ टुट् सेकल रहे । बेहोसमे बोलल शब्डसे प्रेमके डिलमे चोट लगाइ पुगल रहुँ । प्रेमहे मै अस्विकार कर्नु हुँ । मै खुड नाटा टुर्नु हुँ । मोर कारण प्रेम महिसे डुर होसेकले रहिंट । जब प्रेमसे बिटाइल पल, उ मैयाँ महि टरपाइ लागल टे प्रेमसे भेंट कर्ना चहनु मने प्रेम उ नाटासे नाहि केवल संघरियाके नाटासे भेट कर्ना चहलैं । प्रेम जिन्गिमे कोइ औरे जीवन संघरिया आगैल रहिन । एकठो सुग्घुर परिवार रहिन । यि सब सुनके मोर सारा मन टुट्गैल । रोइनु चिल्लैनु । अपन जिन्गिहे ढिक्कर्नु । अपन बिटल पलहे समझके रोइनु । असिन लागे महि जिन्गि असिन ढोखा डेहल कि भाग्य अपन बुझे नैसेक्नु । समय असिक बडलगैल कि कुछ सोंचे नैसेक्नु । कुछ महिना बाड पटा चलल कि मोर पेटमे प्रेमके बच्चा बा । यि बाट जानके मोर जिन्गि सारा उजरल सम्झनु । मोर गल्टी कहुँ कि भाग्य । मोर गल्टी कहुँ कि भाग्य या प्रेमके गल्टी कहुँ । मैयाँ मोर जिन्गिसे छल करल । मै अपन सारा डिलसे प्रेमहे अपन मान सेकले रहुँ । अप्ने आपहे अर्पण करडेनु । जिन्गि भर साठ नैछुट्ना बाचा रहे । मने पल भरमे जिन्गि बडलगैल । पेटमे हमार मैयाँके चिन्हाँ हुर्कटि गैल । मै निर्डोस बच्चाहे अपन गल्टीके कारण हट्या कर्ना नैचहनु । संसार डेखैना चहनु । हुँकार बच्चा, हुँकिन अर्पण करडेम मै प्रेमके हुइ नैपैलेसे फेन उ बच्चा जरुर बाबक घरेम हक पाइ कैह्के प्रेमके बच्चाहे जन्म डेना निर्णय कर्नु । डाइबाबाके घरेम रहके पेटके बच्चाहे हुर्कैनु । जन्म डेनु । बच्चा सुन्डर रहे । प्रेमके लाग छावा जन्माडेनु । बच्चाहे अपन छाटीक् डूढ पिवाके ममटाके पहिल मैयाँ डेनु । मै अपन जिन्गिके यात्राहे सम्झनु मोर आघेपाछे कोइ नैरहे । सबजे बौरहि नाउँसे जाने लग्लै्ं । यी बाटसे महि अप्ने आपहे समाजसे घृणा लागे लागल । अप्ने आपहे कौन डुनियाँमे लैजाउँ । कहाँ जाके जिउँ कैसिक रहुँ यि स्वार्ठी समाजमे कैह्के राट आँसके संग निडाउँ । प्रेमके डिलमे मोर लग ठाउँ नैरहिन । कारण हुँकार एकठो जीवन संघरिया रहिन । महि कुछ समझ नैआए । बच्चाके भविष्य हेरुँ या अपन । प्रेमके साठ खोजु कलेसे उहाँ मोर कौनो अढिकार नैरहे ।

एक राटमे अपन मुटुक् टुक्रा पहिल मैयँक् चिन्हाँ प्रेमके बच्चाहे हँुकिन अर्पण कैके निकरजैम । अपन जिन्गिक खोजमे जहाँ पुगाइ जिन्गिक् डगर अपन यात्रा सुरु करम । अगर मिलजाइ कौनो घर ओ केक्रो साहारा उहि अपन जिन्गिक बसेरा बनैम कैह्के सोंच बनैनु ओ अपन डाइबाबनके घरक डुवार मसे अपन पैला निकर्नु । कोनम बच्चा लेके अपन छाटिम चप्टाके आँखिमसे आँस नैरुकटहे अपन मुटुक् टुक्राहे अपन छाटिमसे छुटाके फेकाइलहस प्रेमके घरक डुवारमे छोरके जाइटहुँ । डाइबाबा के हो कुछ पटा नैरहल बच्चाहे प्रेमहे अर्पण करके प्रेमके जिन्गिसे सडाके लाग डुर जाइटहँु । सेक नैसेकके निर्डोस अन्जान बच्चाहे सुनसान राटमे प्रेमके घरक डुवारके आघे छोेर्के एकठो चिठ्ठी लिख्के उहाँसे निकर गैनु । चाहके फेन प्रेमके हुइ नैपैनु । नैचाहके फेन मोर मुटुक टुक्रा निर्डोस बच्चाहे छोरके नेंगे परल । कहटि कुमारी इन्द्रके अनुहारमे हेर्टि रहि । आँखीमे आँस भरके पल्कामसे टपटप गिर टहिन । कोइ नैबुझले रहे कुमारीके मनक पिरा । नाटे कोइ पुछले रहे हुँकार घर डुवार । ना कोइ जाने चहले रहे हुँकार जिन्गिके असर । केवल हाँस टहे कुमारीहे डेख्के समाज । घृणा करटहे ठुक टहे । बौरहिके नाउँ डेले रहे । यि सब सहके कुमारी अपन जिन्गिक यात्रामे निक्रल रठि । केक्रो सहाराके खोजीमे । एकठो जिन्गिके बसेरा घरके खोजीमे निक्रल रठि । कुमारी सुस्कर सुस्कर रोइठी ओ आँस पोछके उठके जाइलग्ठी । उहेबोल इन्द्र अपन हाँठ नफाके कुमारीके उ आँससे भिजल हाँठ पकरके रोक्लंै । इन्द्रके आँखीमे आँख मिलाके मैयाँ भरल लजरले हेर्लि कुमारी । इन्द्र कठैं कुमारी मै डेम टुहिन साठ । टुहिन अपन डिलमे बास डेम । जहाँसम चलि मोर सास । कुमारी टुँ राजी बटो कलेसे चलो मोरसंग कैह्के इन्द्र कलैं । कुमारी ढिरेसे कपार हिलैली ओ इन्द्रके संग हुँकार घर जैना टयार हुइलि । असिके इन्द्र ओ कुमारी एक डोसरहे साठ डेना बाचा कैके, सक्कु जे छावा कुल एक डोसरहे अप्ने आपहे अर्पण करडेठैं । ओराइल ।

संगम चौधरी
पुनर्वास २ कंचनपुर

अर्पण

संगम चौधरी