बालकविता
अँट्वारी
बर्खा बुंडिक बाड आइल अँट्वारी हहराके ।
चोलो भैया डर खाइ उठो हलि झरफराके ।।
आजापाजन्के पालासे मनाइटि यि टिहुवार ।
टिना टावन खोब फरल बा बारि फुलुवार ।।
डाडा पकाइल खुर्मा, हलुवा ओ अन्डिक रोटी ।
काका अग्यारि डेके काटल कैंटि खिरक् चोंटि ।।
बुडु खेटुवक् गहरामे लगाइल ढर्हिया खोंघिया ।
बिहानके चरंगि सेढरि मच्छी बझ्नै डु डिलिया ।।
मिझ्नीजुन सक्कुजे पुजा कैके फरहार कैली ।
भुँखाइल जिउ हमरे केरा अम्रुट खोब खैली ।।
अग्रासन डेहे गैल ढकिया छिटुवा भरके बुडु ।
संगेसंगे मैफें चलडेनु मने रहुँ चुनुमुनु ।।
उ दिन बेरी खाखुके अनगुट्टि गैलि सुट ।
पटा नैपैनु भिन्सारे जुन कट्टुम डर्नु मुट ।।
कल्वा खाके छुट्कि फुइ डेहल बिडाइ ।
लेउ अँट्वारी मजासे जाउ फें अइहो हँसाइ ।।
रचना मिति २०६९/५/३/१
सागर कुस्मी