थारु जातिनके अँट्वारी पर्व : एक चर्चा

छविलाल कोपिला
२७ भाद्र २०७८, आईतवार
थारु जातिनके अँट्वारी पर्व : एक चर्चा

थारु जातिनके अँट्वारी पर्व : एक चर्चा

अँट्वारी, थारू समुदायके माघ पाछेक डोसर भारी टिहुवार मानजाइठ । यीे टिहुवारमे खास कैके ठारु लोग निराहार व्रत रहिके मनैठैं । यद्यपि स्वेच्छासे कुछ महिला फेन व्रत रहल पाजाइठ । दीर्घायू, सुस्वास्थ्य एवम् सुखमय जीवनके कामना सहित मनैना अँट्वारी भदौ महिनामे परठ । मने कौनो साल असोजमे फेन परे सेकठ । जा जैसिन रलेसेफेन अँट्वारी ढेरहस थारू महिलनके टिहुवार अस्टिम्की बाड डोसर अँट्वार अथवा कुश अमाँवस (कुशे औंशी) बाडके पहिल अँटवार अँट्वारी मन्ना चलन बा । मने अँट्वारीके विषयमे टमान मतमतान्तर फेन हुइटि आइल बा । ठाउँ अनुसार चालचलनमे विविधता बा ओ एकर ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक पृष्ठभूमिके बारेमे फेन टमान धारणा अइटि आइल बा । ओहेकमारे पाछेक समय यी टिहुवार निश्चित तिथि, मिति हुइ पर्ना बात थारू समुदायके बौद्धिक वर्ग लोग बहसके विषय फेन बन्टि आइल बा ।

अँट्वारी, कुशे औंसीके पहिल अँट्वार ‘बर्का अँट्वारी’के रुपमे मानजाइठ कलेसे केउकेउ ओकर बाडके चार सहित पाँच अँटवार फेन ‘अँट्वारी’ व्रत रठैं । अइसिके ‘पाँच अँट्वारी’ बाड डसिया आइठ । अथवा कुशे औंसी ओ डसियाके बीचमे अइना पाँच अँट्वारहे अँट्वारी माने सेकजाइठ । अइसिके पाँच अँट्वारी व्रत रना चलनसे फेन कुश अमावसके पहिल अँट्वारहे अँट्वारी मन्ना चलनके प्रमाण बलगर डेख्जाइठ ।

कुछ मनैंनके धारणा हिन्दु नारीनके हरितालिका तीज बाडके अँट्वारहे अँट्वारी मन्ना चलन फेन बा । मने यीे ओट्रा सान्दर्भिक नैडेखाइठ । यदि तीज बाडके अँट्वारहे मन्ना होे कलेसे ‘पाँच अँट्वारी’ व्रत रहुइयनके अँट्वारी प्रभावित हुइठ । डोसर बात थारु समुदायमे तीजके प्रभाव फेन डटके पाछेसे परल बिल्गाइठ । थारू वस्तीमे आझके जस्टे मिश्रित जातजातिनके बसाइ नैरहे । थारू समुदायके एकलौटी बसाइ रहे । अपने कला, संस्कृति ओ सामाजिक मान्यता भिट्टर रमैना थारू समुदाय, अन्य समुदायके टिहुवारहे आधार बनाके अपन टिहुवारके निर्धारण कर्र्ना विषय फेन नैहुइठ । अझकल हस टमान जातजातिनके मिश्रित बसाइ ओ सबजे एक डोसरके कला, संस्कृतिहे स्वीकारी सेकल अवस्थामे यी बात उठ्ना स्वभाविक हुइलेसे फेन वास्तविकता भर नैहो ।

ओसिक टे कुश अमावस बाड पहिल अँट्वार प्रायः तीज पाछे परठ । यी एउटा संयोग किल हो । यी फेन तीज बाड अँट्वारहे मन्ना बातके बढावा डेहे सेकठ । मने यी सत्य नैहोे ओ हरडम अस्टे फेन नैरहि । कबुकाल्ह टे तीजके दिन अँट्वार परठ । अझकल इहे तर्कके भ्रममे परके फरक फरक अँट्वार अँट्वारी मन्ना समस्या डेख पर्टि बा । यी पाँच अँटवारी मनुइयनके व्रत प्रायः प्रभावित पारठ । कौनो कौनो साल पित्तरपक्ष, मलमास या समय अनुकूल नैहुइलेसे (गाउँमे हैजा लगायतके रोगके प्रकोप ढेर बिल्गैलेसे वा दैविक प्रकोपके कारण) समय हेरके अँट्वारी टिहुवार मन्ना चलन फेन बा । अइसिक कैलेसे पाँच अँट्वारी व्रत रहुइयन सब अँट्वार व्रत रहे नैसेक्ठैं ओ अँँटवारी फेन फरक फरक मितिमे मनैना बाध्यात्मक समस्या बिल्गाइठ ।

रुपन्देहीके साहित्कार बमबहादुर थारू ‘रुपन्देहीके थारू समाज ओ संस्कृति’ कना अपन पोस्टामे कुश अमावसके आठौं दिनके बाड अँट्वारहे बर्का अँट्वारी मन्ना बात उल्लेख कैले बटैं । उहाँ ‘पाँच अँट्वारी’के विषयमे भर कौनो बात उल्लेख कैले नैहुइँट् । ओसिक टे रुपन्देही, नवलपरासी, चितवन लगायतके पुरुबके कुछ जिल्लामे मनैना विधि प्रक्रिया पश्चिमा जिल्लासे फरक बा । मने, कपिलवस्तु, दाङ डेउखर, बाँके, बर्दिया, कैलाली, सुर्खेत ओ कंचनपुरके थारूनमे वैचारिक धारणा फरक फरक हुइलेसे फेन विधि प्रक्रियामे भर एकरुपता बा ।

प्रकृति पुजक थारू समुदायमे खास कैके यी टिहुवार सूर्यके पूजा कैके मनाजाइठ । अँट्वारहे रविबार फेन कहजाइठ । रवि कलक सूर्य (सुरज) अथवा अग्नी । जब भयावह कालरात्रिमे सूर्यके उदय हुइले । ओकर बाड यी संसार ओजरार हुइल कना किम्बदन्ती बा । सूर्य अन्ढार फारके ओजरार कराइठ । जिहिसे मनै किल नाही यी पृथ्वीमे रहुइयन हरेक प्राणीनहे सजिल हुइठ । प्रकृतिमे विश्वास कैना थारू समुदाय, सूर्य ओजरारके प्रतीक हुइलेक ओरसे एकर पूजा ओजरारलाताके रुपमे कैइल हुइँट् ।

डोसर मिथक महाभारत कथासंग जारल बा । पाँच पाण्डव मध्ये सबसे बलगर भेवाँ (भीम) रहिंट । जब कौरव ओ पाण्डवके लराइ हुइल । ओहे समयमे भीम रोटी पकाइटहिंट । लराइ चरमोत्कर्षमे पुगल ओरसे उहाँ रोटी पकैटि पकैटि टावामे छोरके लराइमे गैलैं । जब लराइसे लौटलैं टे उहाँ महा डटके भुँखाइल रहिंट । टावामे छोरके गैल एक पाँजर किल पाकल रोटी खाके पेट भरैलैं । अँट्वारीमे अक्केकरे रोटी (एक पाँजर किल पकाइल रोटी) पकैना चलन बा । अइसिके अक्केकरे रोटी भीमहे पुज्जाइठ कना किम्बदन्ती बा । ओस्टके भीम, थारू राजा दंगीशरणहे लराइमे सघाइल ओ सबसे बलगर पुरुष भीम हुइलेक ओरसे उहाँ जस्टे बलगर हुइना संकल्पके साथ पुरुष हुँकारे पूजा कैके अँट्वारी व्रत रहना विचार फेन जनमानसमे बा । अइसिके अँट्वारीके बारेमे अध्ययन कैके वैचारिक एकरुपता रहल नैपाजाइठ । ठाउँ अनुसार फरक फरक विचार, चालचलन ओ प्रक्रिया पाजाइठ ।

अँट्वारी, व्रत रहिके मनैना टिहुवार हुइलक ओरसे एमने फेन ‘डटकट्टन’ (दर) खैना चलन बा । दर खाइक लाग शनिच्चर दिनभरि मच्छी मर्र्ना ओ आउर टिना टावनके जुगार केजाइठ । मच्छीके सुखौरा (सुकठी) ढेरहस पहिलिहि तयार कैल रहठ । अँट्वारीमे मच्छीके सुखौरा विशेष मानजाइठ । मने औरे कौनो चीजके सिकार भर नैरहठ । सागमे पुँइ अनिवार्य रहठ । भिन्डी, टोरैं, ठुसा (मास जस्टे एक प्रकारके दाल बाली, झिलिङ्गी, सिल्टुङ) लगायतके टिना रहठ । ‘डटकट्टन’ व्रत रहुइयन मुर्घा बोल्नासे पहिले खाइ परठ । यदि खैनासे पहिले मुर्घा बोलगैल कलेसे ‘डटकट्टन’ खाइ नैमिलठ । खैलेसे भर उ व्रत बैठे नैपाइठ । उहि डुठेरु मन्ना चलन बा ।

अँट्वार अथवा अँट्वारीके दिन व्रत रहुइयनके खाना भन्सामे पाकल नैरहठ । ओइने बिहन्नी लहाके बहरी (घरके प्रवेशद्वारके पहिल कोठा) या अँगनामे गेयक् गोबरसे लिपपोत कैजाइठ । लिपपोत कैके ‘कोरे आगी’ (भन्सामे पहिले प्रयोेग नैहुइल आगी, चोखा आगी) मे रोटी पकाजाइठ । पुरान आगी आझ अपवित्र मानजाइठ । ओहेकमारे गन्याँरी कठुवा या फोर्सा कठुवा घोटके बराइल चोखा आगी प्रयोग कैजाइठ । रोटी सूर्यके प्रतिकात्मक परिकारके रुपमे लेजाइठ । यी टिहुवारमे रोटी अनिवार्य रहठ । औरे खैना चाज भर सहायक रहठ । अँट्वारीमे अन्डी ओ गोहुँके कैके, दुइ मेरके रोटी रहठ कलेसे पाकल अम्रुट (अम्बा, बेलौटी), केरा, तरुल, भेली मिठाइ मिलाइल मोर्साके भूजा ओ मिठाइपानी फेन रहठ । पहिल दिन नोन, बेसार, मर्चा, मच्छी, सिकार भर आझुक दिन खाइ नैमिलठ ।

रोटी पकाके तयार हुइठ टे लहाके बिहानके लिपपोत करल ठाउँमे पिर्का या कौनो कठुवाके चिजमे संगे बैठके अपन प्रक्रिया आघे बरहैठैं । खैनासे पहिले अगयारी (अग्यारी) डेना चलन बा । निश्चित ठाउँमे गैयक गोबरसे फेनसे लिपके ओम्ने आगी ढारजाइठ । ओहे आगीमे सर्री धूप, नौनी आो खाइक लाग तयार करल अन्डीके रोटी, गोहुँके रोटी, पक्की, काँक्रो, बेलौटी, केरा, तरुल, भेली मिठाइ, मिलाइल मोर्साके भूजा ओ मिठाइपानी एकएकचुटि सबचीज एककेमे मिलाके आगीम चर्हाजाइठ । अइसिके आगीमे चर्हाइल कामहे ‘अगयारी’ डेहल कहिजाइठ ।

सूर्य आगीके मुख्य श्रोत हो । सूर्य अपनही अग्नी हो । ओहेमारे सबसे पहिले अग्नी (आगी)हे अथवा सूर्यहे प्रसादके रुपमे अगयारी डेना चलन आइल हो । अगयारी डेके तीन चो डाहिन ओ तीन चो बाँउ ओरसे पानीलेके पर्छना चलन बा । कोइ–कोइ पाँच या सात फेरा फेन पर्छठैं । ओकर बाड अपन चेली–बेटीनके लाग पहुराके रुपमे ‘अग्रासन’ छुट्यइना चलन बा । अथवा चेली बेटीनहे डेहक लाग अल्गे भाँरामे निकारके किल खैना चलन बा । यी काम डुपहरके हुइठ । औरे व्रत जस्टे अँट्वारीमे दिनभर निराहार नैबैठजाइठ । डुपहरके पूजा कैके खैना चलन बा । यी क्रम दिन नैबुरट सम चलठ । दिन बुरट टबसे खैना बद्यन होजाइठ ।

औरे दिन सोम्मार, ‘फर्हार’ कैजाइठ । फर्हार नैहुइठसम् पानीफें नैपिके निराहार रहे परठ । फर्हार अँट्वारीके अन्तिम पूजा होे । यी दिन व्रतालु लोग बिहन्नीसे खानपिनके तयारीमे जुटल रठैं । घरके आउर जाने फेन सहयोग करठैं । आझके खानामे खास कैके भात, खँरिया, फुलौरी, पुँइ मिलाइल ठुसा, सुखौरा मच्छी, चिचरा, टोरैंयाँ, डुलरि लगायत विजोर संख्यामे टिना पकाइल रहठ । मच्छीके सुखौरा विशेष मानजाइठ मने सिकार भर नैरहठ । फर्हार कैके किल सिकार खाइ मिलठ ।

फर्हार, सब पकवान तयार होके शुरु हुइठ । व्रतालु लोग आघेक दिन जस्टे आझ फेन लहाके अगयारी डेके अपन चेलीबेटीनके लाग ‘अग्रासन’ निकरठैं । अग्रासन धातु वा प्लाष्टिकके भाँरामे नैनिकरठैं । अग्रासन बिशेषताः नम्ह्रैन (मालु), कमल या केराके पट्टामे निकारजाइठ । अँट्वारी अइनासे कुछ दिन पहिले पट्टा टुरके नानल रहठ । प्रायः अग्रासन पट्टा से बनाइल डोना टेपरीमे निकारजाइठ । उ नैहुइलेसे विकल्पके रुपमे कमलके पट्टा या केराके पट्टा प्रयोेग हुइल पाजाइठ । अइसिके प्रक्रियागत रुपमे सब काम पूरा कैके किल व्रतालु लोग अन्न ग्रहण करठैं ।

औरे औरे टिहुवारमे जस्टे अँट्वारीमे अपन चेलीबेटीनहे घरे बलैना चलन नैहो । ब्रतालु लोग निकारल पहुरा ‘अग्रासन’ ओइनके घर डेहे जैना चलन बा । अग्रासन डेहे प्रायः डाडा भैया डेहे जैठैं । डाडा भैया नैरलेसे औरेजे जैठैं । चेलीन फेन अग्रासन डेहे अउइयनहे मानसम्मान करठैं । सम्मानार्थ जाँर, डारु, सिकार खवाजाइठ । अतिथि सत्कारके लाग थारु समुदायमे जाँर डारु बरा मानजाइठ । ओहेमारे जाँर डारु खुवैलेसे सन्तुष्ट ओ मान करल महसुस हुइठ ।

यी टिहुवारमे भातृत्वप्रेम ओ सद्भावके टिहुवारके रुपमे फेन लेजाइठ । लम्मा समयसम अपन लैहेर जाइ नैपाइल चेलीबेटीनके यी टिहुवार अपन डाडा भैयन ओ परिवारसंग सुखदुखके बात साटिकसाटा करठैं । अइसिके एक्के ठाउँमे बैठके सुखदुःखके बात ओ खानपिनसे एकापसमे विश्वास ओ आत्मीयता बरहाइठ । पारिवारिक सम्बन्ध फेन सुमधूर बनाइठ । मने एकर कुछ गलत पक्ष फेन बा । सम्मानके नाममे अत्याधिक डारु पिना ओ पिवइना परम्परा समय सापेक्षित नैडेख्जाइठ । ओहेमारे अनावश्यक झगरा, पानीमे डुबके मौट, सडक दुर्घटना लगायत टमान घटना हुइल बिल्गाइठ । एकर न्यूनीकरणमे ध्यान डेना जरुरी बिल्गाइठ । अग्रासनके नाउँमे बासी खाना, खानामे रंगके प्रयोेग, अनावश्यक खर्च, कौनो साल अपन चेलीबेटीनहे अग्रासन नैडेहे सेक्लेसे चेलीनके नकारात्मक सोचाइ ओ एकापसमे मनमुटाव हुइल पाजाइठ । ओहेमारे टिहुवार, सबजे मर्म अनसार मनाइ परठ । समय अनसार परिमार्जन कैके अपन मौलिकतामे सबजे सकहुन खुसी होए कना हिसाबमे मनाइ सेकेपरठ । अँट्वारी सबके शुभ रहे ।

छविलाल कोपिला
लमही २ मजगाउँ डेउखर दांग

थारु जातिनके अँट्वारी पर्व : एक चर्चा

छविलाल कोपिला