अँट्वारीमे डिडिक् घलाइल डौनक् माला ओ उज्जर टिका

सोम डेमनडौरा
४ आश्विन २०७८, सोमबार
अँट्वारीमे डिडिक् घलाइल डौनक् माला ओ उज्जर टिका

अँट्वारीमे डिडिक् घलाइल डौनक् माला ओ उज्जर टिका

थारु समुदायके चोखा टिहुवार अँट्वारीमे मै मोर बर्कि डिडि शान्ती चौधरीसे २०७८ सालके अँट्वारीमे डौना, लोंगारा फुलक माला ओ चाउरक् पिठक् टिका लगा डेहक लाग अर्जि करले रहुँ । अँट्वारीके बरटमे डिडिबहिनियन लाग निकारल अग्रासन (फलफूल, रोटी, टिनाटावन ओ भात) सोम्मारके लेके डेहे गैनु । मोर कहल अन्सार डिडि डौना ओ लोंगारा फुलक् मगमग मगमग बास अइना माला बना गुँठके ढैले रहे । बहुट मैयाँसे माला ओ टिका घलाइल । मै महाँ खुस हुइनु । टब सिकार, मच्छी, डाल, अँचार ओ मेरमेरिक टिनासे मिझनि खवाइल ।

अग्रासन डेके अइटिकिल मै टुरुन्टे टिका ओ माला घालल एकठो फोटु सामाजिक सञ्जालमे पोष्ट करनु । भिडियो फेन लाइभ करनु । टमानजे मजा अभ्यासके सुरुवाट कहिके कमेन्ट करलैं कलेसे कुछ लोग भर संस्कृति बिगारल ओ टिहुवार बह्राइल कना प्रतिक्रिया डेलैं । मै एक दिनसम कुछ प्रतिक्रिया नैडेनु । बिफेक रोज एक स्ट्याटस् शेयर करनु । उ प्रतिक्रियाके भर सहमति ढेर आइल । कुछ फोन फेन आइल, मै जवाफ डेनुँ ।

कुछ प्रतिक्रिया अइसिन आइल, ‘यी कहाँक् चलन हो ? डौनक् माला टे डसियामे डेंउटन चह्राके किल लगाजाइठ ।’ ‘अप्ने लावा चलनके सुरुवाट करलि । मने अइसिक डिडिबहिनियनसे टिका लगैना थारु चलनमे नैहो ।’ ‘जोन थारु संस्कृति ओ परम्परामे नैहो, हम्रे छलफल करे परठ ओ अइसिन अभ्यास हटाइ परठ । चाख लग्ना बाट टे का बा कलेसे सोमजी कैसिक अभ्यासमे नन्लैं, उहाँ टे हमार समुदायमे थारु संस्कृतिके संरक्षण ओ वकालतके लाग अभियन्टा हुइटैं । उहाँ फेसबुकमे पोष्ट करल यी स्ट्याटससे मै चिन्तित हुइल बटुँ ।’ ‘भाइ टिका लगैना चलन बा ओ डाडु ? ढेर टे नैहुँइल, संस्कृति बचाइटि कि बिगारटि ? मै अलमला गइनु ।’

ओ कुछ अइसिन प्रतिक्रिया फेन बा, ‘भाइटिहार ओ अँट्वारी ओस्टे सम्बन्धमे आधारित हो । मानव सांस्कृतिक विकासक्रममे फरक परिवेश ओ संघर्ष सामना करटि आइल ओरसे फरक फरक परम्परा विकास हुइलेसे फेन मूलरूपसे उहिनसे सुखदुख भावना, जीवनके अनुभूति सायद समान हुइना हो । भाइटिहार ओ अँट्वारीके मूल मर्मसे मिल्ना केवल संयोग नैहोके अस्टे समान मानवीय संवेगके द्योतक हो जस्टे लागल ।’ ‘समय सापेक्ष परिवर्तनके नाउँमे अपन संस्कार ओ परम्पराहे मरे भर नैडेहे परठ, भाइ । टोहान संस्कार जोगैना कामके मै एकडम सम्मान करठुँ । यी संस्कार भिट्टर खोज करना हो कलेसे टमान वैज्ञानिक कारण फेन बा । जिहिनहे जोगाइ सेकलेसे काल्हके दिनमे पक्के ओकर हुइ । हमार संस्कार ओ संस्कृतिहे विदेशी नाउँमे ढरकाके फेर सिखेपर्ना अवस्था नानजाइटा ।’ ‘थारू रहे कि बाहुन, तामाङ रहे कि मुसलमान, लिम्बु रहे कि मगर, क्षेत्रि रहे कि पासवान, मनै टे मनै हो । ओकर परम्परा, रीतिरिवाज निरन्तर विकासशील हुइठ । एकर विकासक्रममे, १.परस्पर सांस्कृतिक आदानप्रदान ओ २.परिवेशजन्य आवश्यकताबोध वा साझा अनुभूतिके प्रमुख भूमिका रहठ । राजनीतिसे समुदाय समुदायबीच विभाजन ओ दूरी तथा प्रकृतिसे एकत्व ओ निकटता बह्रलमे काल्हके परम्परा जस्टेक टस्टे आझ नैहो । आझके परम्परा काल्ह अस्टे रहना सम्भव नैहो । यी बडलि बडलटि रहि ।’

का हो टे अँट्वारी ?

थारु समुदायके एक चोखा टिहुवार हो अँट्वारी । यि टिहुवारहे बर्का अँट्वारी फेन कहिजाइठ । अँट्वार (आइतबार) के दिन मनैना हुइल ओरसे यी टिहुवारहे अँट्वारी या बर्का अँट्वारी कहिजाइठ ।
अस्टिम्कीके पाछेक पहिल पूर्णिमाके दिन मनैना यि टिहुवारमे खास कैके बर्किमार (महाभारत) के पात्र भीम ओ आगीक पूजा कैजाइठ । प्रायः ठारु (पुरुष) अँट्वारके दिन बरट बैठ्के साँझके भिवाँ (भीम) के लाग एक्केओर किल पकाइल रोटी छुट्याके अग्नी पूजा कैजाइठ । डिडिबहिनियनके लाग रोटी ओ फलफूल (अग्रासन) छुट्याके फरहार कैजाइठ । यि टिहुवारमे रोटी पकाइक लाग चोखा आगी (गन्यारी काठसे निकारल आगी) चाहठ ।

यि टिहुवारमे खास कैके बर्किमार (महाभारत मने कुछ फरक) के पात्र भिवाँ (भीम) के पूजा कैजाइठ । सुरुके रोटी उहाँक् लाग छुट्याजाइठ । जोन एकओरसे किल पकाजाइठ । काहे पूजा कैजाइठ कना सम्बन्धमे कुछलोग राजा डंगीशरणके पालामे सहयोग मागे आइलमे भिवाँ रोटी पकैटि पकैटि सहयोग करे गैल कथा जोरठैं । मने, कुछ जानकार लोग महाभारत काल ओ डंगीशरणकालके इतिहासके फरक परल ओरसे मिथक बटैठैं । भिवाँ जब फेन कर्तव्य परायण, महिलामैत्री, सोझ ओ बलवान रहिंट कना बाट बर्किमारमे उल्लेख रहल विश्लेषण करठैं संस्कृतिके विश्लेषक लोग । उहाँक् व्यवहार थारु जातसंग मिल्ना बटैठैं । यद्यपि यि टिहुवारके ऐतिहासिक पक्षमे अभिन गहन खोज अनुसन्धान हुइना बाँकी बा ।

अट्वारीमे टीका ओ माला काहे ?

विश्वमे दिन प्रतिदिन परिवर्तन हुइटा । डिजिटल प्रविधि ओ बसाइ स्थानान्तरणके कारण एक समुदायके मनै औरे समुदायमे घुलमिल हुइटैं । एक औरेबीच भोजसे लेके सामुहिक क्रियाकलाप ओ टिहुवार मनाइटैं । एकसे औरेक संस्कृति ओ संस्कार ग्रहण करटैं । अइसिन अवस्थामे जोन संस्कृति मनैन्हे सहज लागठ या कहि आकर्षक रहठ ओहे संस्कृति सहजिलेसे अपनैना या अभ्यास करठैं । यि मानवीय गुण हो । यिहिनहे नाकारो फेन कहे नैसेकजाइ । संस्कृति मानवसे अभ्यास करल या कहि बनाइल सामाजिक काम हो । कालान्तरमे अभ्यास हुइटि संस्कृति ओ संस्कारके रुपमे स्थापित हुइल । आधुनिकीकरणके कारण या कहि मनैन्मे आइल चेतनासे कुछ संस्कृति अन्तर्गत अभ्यास हुइल क्रियाकलाप लोप फेन हुइल बा कलेसे कुछ लावा ढंगसे आघे बह्रल बा ।

थारु समुदाय एक आदिवासी जनजाति समुदाय हो । यि समुदाय संस्कृति अन्तर्गत खानपान, भेषभुषा, टरटिहुवार, स्वागत सत्कारमे, नाचगानमे महाँ धनी समुदाय हो । मने, शासकीय स्वरुप ओ डिजिटल प्रविधिके कारण यी समुदायसे मन्ना अर्गानिक ओ मौलिक संस्कृति धरापमे परल बा । जस्टे, गुरिया, अँट्वारी, अस्टिम्की, हरडहुवा, हरेरी टिहुवार मनैना मनैनके संख्या घटल अवस्था बा । थारु समुदायमे प्रचलित नाच ओ गीत फेन लोप हुइटि रहल अवस्था बा । थारु समुदायके एकठा टिहुवार माघहे किल राष्ट्रियकरण करल ओरसे यि टिहुवार साझा टिहुवारके रुपमे स्थापित हुइ लागल बा ।

टिहुवार लोप हुइना या मनै मनाइ छोरनाके ढेर कारण हुइ सेकठ । उ मध्येमे कुछ मुख्य बाट का हो कलेसे टिहुवारके ऐतिहासिकता, धार्मिक, साँस्कृतिक ओ सामाजिक महत्वके बारेमे समुदाय जानकार नैरलेसे ढिरेसे छोरटि जैठैं । हम्रे लावा पुस्टाहे कौनो फेन टिहुवारके यि आयामहे बुझाइ नैसेकब कलेसे उहाँ लोग मनाइ छोरडिहि । अस्टेक औरे प्रमुख पक्ष हो सरकार तथा शासकीय स्वरुप । सरकारसे कौनो फेन समुदायके टिहुवारहे संरक्षण ओ संवद्र्धनके नीति लेनासे विलय करना नीति लेहल कलेसे स्वभाविकरुपमे संकटमे परठ । थारु समुदायके टिहुवारमे सार्वजनिक बिदा नैहुइठ । अँट्वारीमे बलटल प्रदेश तथा स्थानीय सरकार एक दिनके बिदा डेले बा । सरकारी ओ निजी विद्यालय टिहुवारके डोसर दिनसे परीक्षा सुरु करठैं । टबेमारे उ समुदाय खुलके या घर जाके टिहुवार मनाइ नैसेक्के ढिरेसे मनैना अभ्यासके अन्त्य हुइठ । औरे पक्ष कलेक हम्रे अपन टिहुवारसे औरेक मजा डेख्ना सोचाइ बा । टबेमारे औरेक लेना ओ अपन छोरल पाजाइठ ।

अन्य समुदाय अपन टिहुवारहे आकर्षक, डिजिटलाइज ओ फेन्सी बनाइ सिखलैं, मने हम्रे सेकट नैहुइटि । जस्टे कि क्रिसमस–डेमे झकिझकाउ बत्ती बरना ओ स्यान्टाक्लाउजके अभ्याससे लर्कापर्कनहे आकर्षित करठ । टिहुवारमे रंगिबिरंगि टिका, बत्ती बरना ओ भैली खेल्ना कैजाइठ । तीजमे एक महिना आघेसे दर भात खैना, टमान रेडियोमे एक महिना आघेसे गीत बजाइ लग्ना, नच्ना ओ नाच प्रतियोगिताके आयोजना कैजाइठ । मने, हमार अस्टिम्कीके ना गीत बजठ रेडियोमे ना कुछ ओ नाचे मिल्ना गीत बा । अँट्वारीमे टे आउर गाना बजाना कुछ नैहो । ओहेहो एक मैयाँ ओ सद्भावके पक्ष डिडिबहिनियनहे अग्रासन डेहे जैना । यि कारणसे अपन टिहुवार अँट्वारीहे कुछ आकर्षण थपे परठ कना मै यि बरस अपन डिडिसे चाउरके उज्जर टिका ओ डौना लोंग्गारक माला घल्नु ।

का संस्कृति बिगरनु टे मै ?

मै संस्कृति बिगरनु, सपरनु एकर जवाफ अबबिहि डेहे परना या खोजे परना अवस्था नैडेख्ठँु मै । अँट्वारीमे माला ओ टिका लगाइल प्रभाव कुछ बरस पाछे आइ । मने मोर कुछ अपन विचार बा । हम्रे थारु अन्य समुदायके टिहुवारहे कैसिक अपन बनैलि या अपनैलि टे ? एकर समीक्षा करना आवश्यक बा । यि कहेबेर उ टिहुवार ना मनाउँ कहे खोजल नैहो । मनाइ छोरो कहे खोजल फेन नैहो । टिहुवार मनैना कि नैमनैना कनामे हरेकके अधिकार ओ रहरके बाट हुइ । मने जे अपनहे यी संस्कृति बिगारल, संस्कृति बह्राइल, संस्कृतिमे विकृति थपल कहल उहाँ लोगनहे मोर प्रश्न हो । तीज, तिहारमे भाइटीका, क्रिसमस–डे, बर्थ–डे, गुड फ्राइडे, डसियामे लाल टीका, ताजिया, कर्वा चौथ हमार नैरहे । टबफेन गर्वसाथ मनाइ लग्ली । यि टिहुवार तथा पूजाहे अपनैलेसे संस्कृति थपल कि घटल टे ? ग्लोबलाइजेशन एक सद्भावके उत्तर डिइ । मने, पहिचान ओ अप्नेन्के प्रतिक्रियाके हिसाब ओ विचारसे टे परसंस्कृति ग्रहण हो । अप्नेन्के यि अभ्यास ओ विचारसे यि टिहुवार लरल । यि टिहुवार मनाइबेर अप्नेन्के कुछ नैबोल्लि टे ?

खर्चके हिसाबसे तीज ओ भाइटीकाहे विश्लेषण करलेसे अँट्वारी ओ अस्टिमकी कैयौं गुणा कम बा । पस्चिमा डंगौरा थारु समुदायमे अपन डिडिबहिनियनहे महाँ आदर सम्मान, मैयाँ जुटैना दुईठो टिहुवार बा । उ हो, अँट्वारी ओ माघ । अँट्वारीमे अग्रासन डेजाइठ कलेसे माघमे निसराउ । जब हम्रे डिडिबहिनियनहे सम्मान ओ मैयाँ प्रकट करना, शुभासिर्वाद लेना डेना दुई दुई ठो टिहुवार बा कलेसे फेर भाइटिका लगैना आवश्यक बा टे ? मै इ लाइनसे प्रश्न करल हो । अन्यथा अर्थ ना लागे ।

हाँ अट्रा मैयाँ, सद्भावपूर्ण बेलामे डिडिबहिनियनसंग डौना लोंग्गाराके मगमगैना माला ओ चाउरके पिठक् टिका लगैनाहे विकृति नैहो संस्कृतिमे समृद्धि थपि । अन्य समुदाय फेन आकर्षित हुइ । अँट्वारी टिहुवार सबके साझा टिहुवार बनैनामे सहयोग मिलि ।

कुछमे बुझाइके कमी फेन बा । डौना ओ लोंग्गारा डसियाके डेबी डेंउटाहे चह्राके किल लगाइ मिलठ । उ नैहो । बेबरी (महाँ सुगन्धित ओ शक्तिशाली ओ चोखा) किल थारुनके डेबी डेंउटाहे डसियामे चह्राजाइठ । यि फूला चह्राइबेरिक एक सम्ह्रौटि गीत फेन बा ।

बेबुरी बिना एक झमकी उरावैं, बिना बुन्डा टुहाँर पाउँ
धनपति धन रे कुबेर टोर नाउँ, हिरडा बइस मोर डेहो र सिखा
भगमोटि सरन लिहबुँ टोर नाउँ, डेबी ढरम डेबी बन्धन बा ।

अइसिक यि गीत उच्चारण संगे डसियामे थारुनके डेबी डेउटनहे बेबरी चह्राजाइठ । डौना ओ लोंगारा फेन महाँ बासनाडार ओ सुगन्धित रहठ । मने, यि दुईहे नाचगान हुइल बेला मालाके रुपमे प्रयोग कैजाइठ । यि दुई फूला ओ वनस्पतिहे डसियामे पूजा करेपरि कहिके अस्रा लागे नैपरठ । यि जरिबुटि फेन हो । एकर बोट रहल ठाउँमे किरा फेन लागे नैसेक्ठैं ।

अँट्वारीके समयमे यि सुगन्धित डौना ओ लोंगारा लहलह फुलल रहठ । एकर माला बनैना कौनो मेरिक मेहनत ओ खर्च नैहो । यि माला गलामे आइठ कलेसे मनैन्मे रहल उदासिनता ओस्टे फेन डुर भागठ । सुबाससे मनमे ओ जिउमे ताजगी आइठ । स्फूर्ति आइठ । ढेबरमे मुस्कुराहत आइठ ।
यिहे मारे, मोर अर्जि का हो कलेसे अग्रासन डेके लौटेबेर मट्वार, हिल्टि नैकि, उज्जर टिका ओ डौना लोंगारक सुबास फैलटि आइ । अँट्वारीहे आउर परिमार्जित, आकर्षक ओ मैयाँसे भरल बनाके सबके साझा टिहुवार बनाइ ।

सोम डेमनडौरा
(लेखक जंग्रार साहित्यिक बखेरीके केन्द्रीय अध्यक्ष हुइटैं ।)

अँट्वारीमे डिडिक् घलाइल डौनक् माला ओ उज्जर टिका

सोम डेमनडौरा