वर्षौ से सुटल समाज, उठैना बा डाई

अंकर ‘अन्जान सहयात्री
१ कार्तिक २०७८, सोमबार
वर्षौ से सुटल समाज, उठैना बा डाई

गजल


आगिक लहर महिन अब, बुटैना बा डाई ।
वर्षौ से सुटल समाज, उठैना बा डाई ।

माटिक गग्री–मातिक करुवा, सिसा जस्ते फुटाइहस्,
अन्धविश्वास परम्परा, फुटैना बा डाई ।

रङगी–चङगी गगनचम्बी, महलमे सुटल नेतन,
तान–तानके झोप्रामे, सुतैना बा डाई ।

छोटेसे लालन–पालन, करके महिन पालल् खर्च,
एक–एक कर्के अब, जुटैना बा डाई ।

मारपित गारीभुवा, हिलाकिचा सहटी,
सारा जिन्गी तोहाँर नाउँमे, लुटैना बा डाई ।

   अंकर ‘अन्जान सहयात्री’
  –पथरैया–४ जबलपुर कैलाली
वर्षौ से सुटल समाज, उठैना बा डाई

अंकर ‘अन्जान सहयात्री

पथरैया–४ जबलपुर कैलाली