अपनेन हे काहे लागल

श्याम गोइजिहार
१ कार्तिक २०७८, सोमबार
अपनेन हे काहे लागल

कविता


हमरे टो जिनक आधार मंगली,अपन हुइनक ऐहसास मंगली,
टो अपनेन हे काहे लागल अपनेनके घरसंसार मंगली ।

यी देश जटरा अपनेनक ओटरै हमार फे, अपन प्रतिनिधित्व मंगली,
टो अपनेन हे काहे लागल साम्प्रदायिक हुइली ।

हमरे टो सोझ धर्तीपुत्र हर जुलम चुपचाप सहली, बठ्ठा जब डेखैली,
टो अपनेन हे काहे लागल बबाल मचैली ।

राष्ट्र, राष्ट्रिताप्रति हमार फे बा सम्मान, अपन भाषा अपन भेष लगैली,
टो अपनेन हे काहे लागल जातीय हइली ?

नेपाली हुइ हमरे,सबके सम्मान सबके पहिचान सबके अधिकार मंगली,
टो अपनेन हे काहे लागल देश विभाजनके बात बरली ?

श्याम गोइजिहार

साँगा, काभ्रे

अपनेन हे काहे लागल

श्याम गोइजिहार

साँगा, काभ्रे