कविता
हमरे टो जिनक आधार मंगली,अपन हुइनक ऐहसास मंगली,
टो अपनेन हे काहे लागल अपनेनके घरसंसार मंगली ।
यी देश जटरा अपनेनक ओटरै हमार फे, अपन प्रतिनिधित्व मंगली,
टो अपनेन हे काहे लागल साम्प्रदायिक हुइली ।
हमरे टो सोझ धर्तीपुत्र हर जुलम चुपचाप सहली, बठ्ठा जब डेखैली,
टो अपनेन हे काहे लागल बबाल मचैली ।
राष्ट्र, राष्ट्रिताप्रति हमार फे बा सम्मान, अपन भाषा अपन भेष लगैली,
टो अपनेन हे काहे लागल जातीय हइली ?
नेपाली हुइ हमरे,सबके सम्मान सबके पहिचान सबके अधिकार मंगली,
टो अपनेन हे काहे लागल देश विभाजनके बात बरली ?
श्याम गोइजिहार
साँगा, काभ्रे