साहित्य एक्थो समाजके हमार पहिचान हो(गजल )

रामचरण कुश्मी चौधरी ‘एकल यात्री’
९ कार्तिक २०७८, मंगलवार
साहित्य एक्थो समाजके हमार पहिचान हो(गजल )

साहित्य एक्थो समाजके हमार पहिचान हो ।
 लोक,संस्कृति पुर्खन्के बलिदान हो ।।

टुटल झोपरीमे रलेसेफे गीत अपन गइथुँ मै ।
अपन भाषा बचैइना मोरिक यी साहदान हो ।।

छटपतैथुँ पुर्खन्के संस्कृति बचाइक लग ।
संस्कृतिम ार थारुन्के स्वाभिमान हो ।।

थारु पहिचान हेरैती बा आजकाल अङ्गना मन्से ।
अपन संसकृति सक्कुजे बाचय पइना सान हो ।।

जागी थारु युवा सक्कुजे हम्रे पाछे काहे बति ।
ऊ गौतम बुद्घफें हमारे थारु सन्तान हो ।। 

 रामचरण कुश्मी चौधरी ‘एकल यात्री’

साहित्य एक्थो समाजके हमार पहिचान हो(गजल )

रामचरण कुश्मी चौधरी ‘एकल यात्री’