मनके परि

संगम चौधरी
१६ मंसिर २०७८, बिहीबार
मनके परि

एकठो पन्छि रोज सांझके एकठो रुखुवक हंगिया मे बसेरा लेहे आइन । ओ उहे हंगियाहे उकुवार लेके निडैना करिन । मिठ निन , सुग्घुर सपनामे राट कटैना करिन । अन्गुत्ति उठके बरे सुहावन रहानमे गिट गुनगुनाइन । सुन्टि सुहावन बोलि रहिन उ पन्छिक । उ पन्छिक गिट से  औरे बसेरा लेहल पन्छि फेन रमाइट । संगे–संगे ओइनेफेन चिरबिर चिरबिर करटि अपन डैना पखना फरफरैटि बिहान हुइना अस्राम् बैठिंट् । ओजरार हुइट टे सब पन्छि घुमे ओ अहराके लाग छिटिक् जैठैं ।

एक राट उ पन्छि बसेरा लेहे नै अइलिन , उ कहाँ गैलिन , का हुइलिन कुछ पटा नैचलठ् । रोज राटभर पन्छिसे बिटाइल हंगिया , उ पन्छिके अस्रामे राटभर छट्पटाके रहिजाए । बर्सौसे बसेरा लेहे अइना ओ अपन डंडुर उकुवारमे लेके निडैना पन्छि छोरके गैलकमे उ हंगिया , अपन पट्मसे आँसक बुँडा हस टप्प टप्प पानीक बुंडा चुहाए । उ रुखुवामे बसेरा लेहुइया पन्छि ओइने फेन उहे पन्छिक बसेरा लेना हंगियाओर हेरके कवाइल रहिंठ् । रोज के राट अस्टके कटेलग्लिन ओइनके । अन्गुट्टि से सुन्टि सुहावन गिटगैना पन्छि बिना , उ रुखुवा सुनसान होगैल रहे । बिचारा हंगिया उ पन्छिक मैयाँ मे टरपटि रहल , उ पन्छिहे का पटा उ हंगिया  महि कत्रा मैयाँ करठ् कना । कबुकाल उ पन्छि राटभर अपन मनक पिर आँसेम् बहैना करिन ओ आँसेले हँगियक् कुछ भाग भिजाडिन । पन्छिक पिर डेख्के हंगिया मनक भिट्टरसे छटपटाके रहजाए , मने कुछ करे नैसेके ना बोले सेके । पन्छि डिनभर अहरक खोजिम जाइन मने कबुकाल भुँख्ले आइपरनि । उहे भुँख्ले पेट राटभर रहजाइन । कठैं भुँखसे भारि औरे दुःख नै हो । बिचारि पन्छि डिनभर अहराके खोजिम रहलमे बहुठ जे आँखि लगाइन । सिकारिनके डरले भागे परना । एक दुई गुडा खाके पेट भर्ना आसमे जाइन , मने उहे खाइ नैपैना । 

कत्रा स्वार्थि मनै आनक् जिउक् लाग जाल फैलैना । अपन फाइडाके लाग आनक् जिन्गिक खेलवार कर्ठैं । उ पन्छिक् सत्रुनके चपेटाम् परके बच्ना बेहाल होगेल रहिन । उ भुँख्ले पेट आइन ओ सोकिट् हुइटि उहे हंगियामे चपटके निडैना चाहिन । मने कैसिक निन परिन भुँख्ले पेट । हंगिया इ सब डेख्के सहे नैसेके । जब आँधि बौखा आइलागे ओ पानी बरसेलागे टे बिचारि पन्छिक डसा का हुइट रहल हुहिन । कत्रा दुख पिर हुइट रहल हुहिन । मनै उज्रल घर डुवारके भारि बयान कर्ठैं । फलानक घर अइसिन ओइसिन । टुटल भिटा उज्रल केवार बटिस , कसिक आनक् छाइ पालेसेकि कहिके । मने उ उज्रल घरडुवारिक् छाइ केकर आसकरि , केकर घर जाके जुनि कटैहिन । उ पन्छिके घर कलक उहे रुखुवा , सुट्ना कलक उहे हंगिया , छपरा कलक उहे झालापाटा रहिन । जब आँधि बौखा आइलग्लेसे उहे हंगियाहे कसके पकरके रहिजाइन । एकओर रुखुवाके हंगीया टुट्नाहस कर्ना , झरझर झरझर पानी बर्सना । उ पानिले भिजके लटपट होके जारेले सिंकुर जाइन । पठ्रा पनि बरसे टे आउर कसिन लागट् रहल हुहिन बिचारि हे । मने जसिन बिपट अइलेसे उ हंगीया हे नैछोरिन , हंगियाफेन अपन ओरसे हुँकिन  बचैना कोसिस करे । अपन पट्टाले पानिहे छेक्ना कोसिस करे । आँधि पानी ओ पठ्रा के प्रहारसे पन्छि घब्ब्रा जाइन । रुखुवा कुछ हंगिया टुट्के घैहल होरहठ् । टबफेन पन्छिहे बचैना कोसिस कर्ले रहठ् । एकओर रुखुवा ओ पन्छिक डसा डेख्के फोहैना ओइनके कमि नैरठिन । कब उ पन्छि गिरिटे सिकार खाब कहिके टोंटा बओइले रठैं ।

हमार समाजमे फेन आनक् डसा डेखके भलाहि नैखैना ओइनके संख्या कम बा कहे नैपरि , बिरकुल कम बा । उन्नटि करठ् डेख्के गोर टन्ना चलन हटल नैहो । गाँउक हिट ओ भलाइके लाग सोंच्ना भलमन्सा , अगुवनके इज्जट मान कम बा । दुःखि गरिब ओइनके ख्याले नैहो । अपन भेस , भासा , कला,संस्कृटि बचैना ओइनहे साथ सहयोग करल नै डेख्जाइठ् । समाज मे स्वार्थिपन , दुश्मनि ,  झैंझगर , के कारन मनैनहे जिन्गिम् आँधि पानिसे संघर्स करेहंस जिए परल बा । उ हंगियामे पन्छिके बसेरा कत्रा सुहावन । ओराइल ।

संगम चौधरी

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