यी रातमे हरपल तोहार यादमे मै डुब्टी बटु ।
कबुँना सोचहो औरेक, तोहाँर छृप्टी बटुँ ।।
परयास करती बतु ,तोहार संग जिन्गी बितैना ।
तबे ते तोहार लग्गे,भौरा बन्के घुम्टी बटुँ ।।
हाँसल मुह देखके , दिलके बात काहे नै बुझ्लो ।
तुहीन का पता ,भित्रेभित्रे पागलहँस घुम्टी बटु ।।
एकल यी जिन्गीमे , साथ पाइल रहु तुहीन से ।
दुःख ओ सुखके , उ लरम हाठ चुम्टी बटु ।।
मोर चाहना अत्रा बा कि तुहीनसे मैया लगैना ।
तबे ते गजल लिखके,मन के बात सुन्टी बटु ।।
-राम चरन कुस्मी चौधरी( एकल यात्री )