घुम्ना बहाना मे भेंट

संगम चौधरी
२५ पुष २०७८, आईतवार
घुम्ना बहाना मे भेंट


मंसिर २०७८ साल २४ ओ २५ गतेक् बाट हो ।
मोहराइन वइवसप्ट के हमार बगाल पहुनी खाई निक्रल रही । कम्पनिक् प्रबन्धक् राम सर के आयोजना मे सक्कु बगाल सल्हा पारके दुइ दिन एक रात के लाग निकरल रही । उ दिन ओ रातिक घुमघाम करलक् ओ रमैलक् उ सब आँखिक पल्का मे झलरमलर झुलगैल ओ डिल डिमागमे चपट गैल । जोन चिज महीहे साँसट कराइ लागल । कसिक मनहे हलुक् कराउ, बहलाउँ कसिके इ बन्डिडिनके मैया छुटाउ कहिके धेर जहनसे सल्हा लेनु मने छुताई नै सेक्नु । गुरुवन से आछटपाती फेन हेरैनु मनै मोहनी नै छुटल । अन्तमे मोर बोकल आटहे बेल्से पुग्नु । ज्या परी परी कहिके कापी कलम उठाके ओ आनेइनके बयानकरे भिरडेनु ।


चौबिस गटेक् राट हो । घुम्ना बहाना मे बन्डिडिन् हेर्नासक् मारे मनेम् छट्पटी लागल रहे । मनेम् खोब खेले कसिन हुइ उ ठाँउ ओ कसिन हुहिं मोर बनडिडिन् के । कब विहान हुइ टे जाब कना अस्रम, राटसम निडेनै परल ओ अनुगुट्टि टिन बजे ओर निन् खुल्गैल, पठरिम् सुटल ओज्रार हुइना अस्रम् पलारनु । करिब छे बजे ओर मै गारीवाला संघरिया हे फोन लगैनु ओ कनु मै आब तयार हुइटुँ टुँ कब हुइटो ? हम्रहिन सात बजे अफिस ठन  रुक्ना रहे । अस्तके ओरै संघरियन फेन फोन लगैनु , गारी निक्रेलागल टयार हुइलो कि नाइ कहिके । सक्कु संघर्यन खुशिक् मारे हडबडाइल हस लागल । मै टे अपन का बटाउ साँझके संघरिया फोन करके बतैले रहिठ अब्बा भरखर पहलमानपुर ओर एक्ठो जन्नी मनया हे गारी मारडेहल बा । जाने काल गारी चलठ कि नाई , नै चली ते जाइ नै पाप । हम्रे गारीवाला संघरिया से एक घचिक समस्याके बारेम् बाट करली ओ विहान धनगढी पुग्के पटा चली, जा हुइहुइ कहिके फोन ढर्ली । इ बाटसे मोर मनेम छट्पती लग्गैल, आप कसिन करना हो । घुमे जैना बगालहे जनाउँ कि नाई हुगैल । जनाउ टे सबके मन फिक्कल होजाई नै जनाउले मनेम् उकुसमुकुस हुइना । मै ज्या परीपरी विहान पटा चली कहिके चिम्ठा गैनु । मने बिहान सम उ बाट मनेम् बेचैन करैटी रहल । बिहान के जब अफिस पुग्ली ते उहाँ २० जहनके बगाल देख्नु ओ सब जहन खुसि देख्के असिन लागल अप हमार यात्रा सुरु हुइल हो कोइ रोके नैसेकी । हमे्र सब जे चिया पिके, हहरैटी रमैटी गारीमे बैठलि ओ हमार शुभ यात्रा सुरु होगैल ।


करिब आठ बजल रहल हुई धनगढी से सूरु हुइती अतरिया से सोझे चिसापानी सोझरली । यात्राके करममे गारिक् भित्तर गिट के टे बाटे का करना हो बाजा से जोर से टे मुहक गित बोले । कबु कबु ते बाजा फेन हारजाए, मुहेलेके गाइल गिटले गारी मन्के । संघरीया मुकेश के मुसकान ओ गिट से साराबगाल के ध्यान ओहारे खिचलेहे । गारी छोट हुइक् ओरसे हुइ नाचे नै बन्ना , टहुँ पर ढुकुरके पुठ्ठा हिलैना मे पाछे नै परिठ मुकेश सर । ओहोर ऐश्वर्य मिस , अमृता मिस , ओइने फेन मुकेश संघरिया से कम नै हुइना , ठेहुनी गरौवर भिर जाइठ । मने एक दुइ संघरियनके समस्या ओस्ते रहे गारिम बैठ्लेसे घुम्री लग्ना । मने हमार बगाल जोस्साइ पलिरलैं । करिब दश बजे ओर चिसापानी मे बासी खैना ठाँउ पुग्के , फोटु खचैना , बाँसी खैना काम हुइलस । जब हम्रे चिसापानी पुग्ली टे लावा लावा संघरियन् से घुमेबेर बरे मजालागल । चिसापानीक् पुलेम, संघरियन स्टाइल पार पारके , करिया चस्मा लगाके फोटु खिचाइठ देख्ना उहे गारिम् बाजैटि रहल गितके याद आगैल । कालो चस्मा लाउहै मैयाँ बिसाल बजारको, नगर सूरता मैया दुई चार हजार को । करिया चस्मक बरे नाउ उटठ् । चिसापानीक रमझम पाछे , बर्दियक आरक्ष के आनन्द लेटी गैली जहाँ, चित्तर, बनसुवर , मजोर, गोहवाु ओ मेर मेरिरक जनावर देख्ती गैली । बर्दिया हुइटी हम्रे बाँके छिरगैली । जहाँ हमार लाग कलुवा बनैले रहिठ । कम्पनिक् हाकिम सर जनेले टे रहिठ, कोहलपुर चौराहा से उत्तर गाभर भ्यालि कना ठाँउ मे थारु होमस्टे मे कलुवा खैना बा । गाभर भ्यालिक थारु होमस्टे देख्ना ओ रमैना मेरिक ठाँउ बा टे सुन्ले रहु मने जातिक बरे सुघुर बा । भरखरिक् बैस भरल छैलि हस देख्टि मन खुस हो जैना ।


हमार बगाल उ ठाउँ देख्के बरे खुसी हुइल । जब हमार स्वागत करक् लाग घरगोसिन्या सुनिता दहित भित्तर से निक्रलिन टे जात्तिक मै महाजोर झसकनु, काहेकी उ घरगोसिन्या ओरे कोइनाई चरचिट ओ सुपरहिट मोडेल सुनिता दहित रहिन । जब उ मोडेल सुनिता हे डेख्नु टे मै कवा गैनु । इ मैं किहिहे डेखटुँ कहिके, मै खुशिक् मारे पचाक् से कहमर्नु इ टे सुनिता दहित हुइन् । मै सोच्नु घरगोसिन्या अत्रा सुघुर टे थारु होमस्टे काहे नै सुघघुर रहि । जस्टे घरगोसिनया ओस्टे घर सुघघुर ।


घर गोसिन्या हमार स्वागत करके फेनसे कलुवा के तयारी ओर लग्गैलिन । कुछ बेर हम्रे घुम्ना ओ फोटु खिचैना मे भुलगैली । कोइ फोटु खिचाए ते कोइ टिकटोक बनाए । एक घचिक पाछे कुलुवा खाइ बलैलै । जब हम्रे कलुवा खाई बैठ्ली टे अद्रिक – अद्रिक तिना आद्ये ढडेैलैे । आमिल आमिल अबरक अंचार,देख्तीकिल मुह रसागैल मोरिक् । ओहोर लोक्कल मुर्घिक सिकार, झिंगा मच्छीक् टिना ,घोघिक टिना, मुसक् पकुवा, सुरिक सिकार, चत्कार चतनी, उपरटेरी मिर्चा खैलक् समझके टे अभिनसम् कपारिम झत्का लागठ , विरकुल उपरटेरी मिर्चा मोर टँरम् से झलरमरल आँस निकार देहल । आझ सम फेन मिर्चा महि उहेदिनिक् याद कराडेहठ् ।


बरे दुख के बाट टे एक ठो बा ।  कलुवा खाके एक घचिक घरगोन्यिासे गफ लगैम सोच्ले रहु मने , मौकै नै पैनु । काहेकी हम्रहिन नेपालगंज पुगे पर्नारहे । हडबड हडबड कर्ती घरगोसिन्या सुनिता दहित से बिदा बारी लेके निक्रेपरल । करिब टिन बजे ओर हम्र   नेपालगंजके सुन्दर हेप्पि वोल्र्ड प्रबेश कर्ली, जहाँ प्रकृती के सुन्दर्ता मे रमाइ मिलल् । जातिके उ ठाँउ बहुत सुन्दर बा । उहाँ फेन हमार बगाल सुट करे भिर देलै । कोइ नाचे टे कोइ फोटु खिचाए । साँझ होगैल रहे मने उ ठाँउमे रमैनास लगती रहे, दुखके बाट टे हम्रहिन बसेरा लेहे जैना जरुरी रहे, तबे मारे बसेरा खोजे नेपालगंजके बजार ओर सोझरडेलि । झुसमुस अंधार होगैल रहे, बजार खेल्ना खोब मजा जुन हुइलक मारे हमे्र सल्हापारके चार पाँच जे बजार घुमे चल्देली । राटिक् करिब नौ बजे ओरिक् बाट हो, बेरि खाके सक्कु बगाल सँगे नच्ना मौका मिलल् । बिहान बागेश्वरि मन्दिर घुमे जैना हुइलस् , उहाँ फेन धर्मिजन ओइनके बगालेम् घुमगैेल । करिब बिहानिक् नौ बजे ओर बर्दिया कोठियाघाट पुलहुइती जोन पुल १०१५ मि० नम्मा बा । उहे पुल हुइटि टिकापुरिक पार्क पुग्ना रहे । कबु बिस्राइ नै सेक्ना उ पल, हम्रै सोझारी काट्के पार्कओर सोझर डेलि । नेगल डगर टे नै रहे मने गुगल के देखाइल डगर रहे । गुगल हम्रहिन असिन डगर देखा देहल कि जम्मा धुरेधुर । कहुँ गारि हे ढकेले परे टे कहुँ उटरके डगर बनाइ परे । एकओर  हाँसिक् बाट रहे टे एक ओर दुःखके ।


हम्रे मनैन हे पुछटि जसिकतासिक टिकापुर पुग्गैली, उहाँ गैली टे मनै नैअंटाइटहिठ् । एक टे सनिच्चर के रोज परल, बाजासे पार्क ठरकल रहे, असिन लागल कि कोइ डुलहिक् घर बराटी आइलटै, जातिसे कना हो कलेसे, भोजहा घरहस लागे । डुलही कलेसे उहे पार्क रहिन् । सबजे उहे सुघरकी डुलही हे हरेक मारे कोइ बस ते कोइ टेकटर, कोइ कार, हाइस मे आके भोज मनाइटहिठ । लौलि डुलही कोरोनाके मारे हुइ किहुइसे भेट नै करेपाके ओ हेरे नै अइलक् ओरसे पट्पटा गैल रहिन । कोइ फेन झक्याके हेरे नै आइन, डुल्ही हे संपरैना, ओ भोज मनैना के टे डुरके बाट रहे । मने लकउडनके पाछे भोज मनुया बगाल अंटाइट नैरहिठ । हम्रे फेन एक घचिक रमैली ओ फोटु खिचैलि । ओहोर जोसीपुर के बनडिडि अस्रम बैठल रहिन् कब अहिन बन डाडा कहिके । थारु फुडल्यान्ड रिसोर्ट मे भेट करना बाचा रहे हमार । लौली बनडिडि धेउर दिन अस्रम बैठल रहिन  । एक घचिक पाछे हमार गारि ओहोरे सोझर डेहल । झुसमुस साँझ हागैल रहे । ठिक्के बनडिडि से भेट कर्ना मजा जुन रहे । जब उहा पुग्लिटे लौलि बनडिडिक् घर अंगना फुलै फुलाले सजाइल, चारुओर बिजलि लागल रहिन, उहे फुलक् बिच्चे उ मुस्कि मरटि बैठल रहिन । पालिक पाला  सबजे हुँकार सँग फोटु खिचैलि । कुछ घण्टा उहे फुलरिया मे घुमगैल ओ रमागैल । दुखके बाट टे उ बनडिडिक् अंगनम्से निकरनास मने नै लाग्टहे । मने का कर्ना, मिलन पाछे बिछोड् जरुर बा कहेहस उ लौलि बनडिडिसे बिडा लेके  आइ परल । अभिन फेन उ ढिक्रि, घोँघिक् टिना, मुसक् पकुवा, झिंगा मच्छिक् टिना,सुरिक् सिकार उहे डिनिक् सम्झना कराडेहठ् । ओराइल ।

घुम्ना बहाना मे भेंट

संगम चौधरी