कट्ना सुग्घर बटो नेपाल डाइ

भिम कुश्मी
४ माघ २०७९, बुधबार
कट्ना सुग्घर बटो नेपाल डाइ

कविता
कटना सुग्घर बटो नेपाल डाइ

उत्तर पाँजर ढौरागिन पहरवा ढकढक उज्जर ।
चाँदिक गहनासे भरपुर बा तलतल टल्केहस ।।
सबदिन हँस्टि रना टोहाँर ओजरार मुहार ।
संसार आइठ टुहिन हेरे बरवार बा टोहाँर जस ।।

बिच भागमे पानीक मुल संगे सिट्टर बयाल ।
लालगुराँस फुलल झोतिम फुल्ना कसल हस ।। सगरमाथा सबसे ढेंग संसारके आघे ठर्हियाल ।
सारा दुनियाँ चिन्हल टुहिन भेटना करठ आस ।।

डख्खिन पाँजर बरवार तराई फँटुवा प्यारा ।
हरियार बन्वाँ चिरैचुरंगनके बनल घरबास ।।
लडिया कुलुवा बहटी कन्चन पानीक धारा ।
फँटुवम जगमगाइल बहुरङ्गि फुला फुललहस ।।

यार्सागुम्बा मेरमेराइक बिरुवा जरिबुटिक धनी ।
भाग्यवानी टोहाँर जलमाइल नेपाली छावाछाइ ।।
सारा संसार ओजरार करना विधुतके खानी ।
हिमाल पहार तराई सुग्घर बटो नेपाल डाइ ।।

भिम कुश्मी
सिकलसेल नेपाल
धनगढी कैलाली

कट्ना सुग्घर बटो नेपाल डाइ

भिम कुश्मी