क्रान्तिसे आइल समानता

बाँधु हरडिउला
२ फाल्गुन २०७९, मंगलवार
क्रान्तिसे आइल समानता


एक सत्य कथा
क्रान्तिसे आइल समानता

लगभग २०४२/०४३ साल ओरिक बात हो । भर्खर मोर जलम हुइल रहे । ओहेबेर मोर बुडु खोजराम डँगौरा अपन सन्तानके लाग २० बिघा नम्बरी जमिन खैलार गाउँमे जोर सेक्ले रहिंट । समय जमिनदारी प्रथाके रहे । ओहेबेला खैलार गाउँमे बैजनाथ महतौं, धनौरामे मल्ल ओ कुँरी गाउँमे खेमराज सिंह जमिनदारी करिंट । ओहे मन्से सबसे जेडा तानाशाह, गुण्डागर्डी, शोषण, अत्याचार खेमराज करिंट । गाउँमे नेंगे परिन टे कि नाङ्गा जीपमे कि घोरुवकमे किल नेंगिट । उ हाँठम् हरदम टुटु या बाराबोर बन्ढुक लेले रहिंट । दैनिक रुपमे सिकार खेल्ना ओहकान कामे रहे ।

ओहेबेर भर्खर खेतीपातीके विकास हुइटी रहे । खास कैके सिजनमे एकबालीके किल विशेष ध्यान डेजाए उ फेन धानके किल । बियार लगैना चलन नैरहे । बुवारो विधिसे खेती होए । जम्मा धान बुवारो छिटके ओरवाँइट ओ २० बिघा जमिन घरमे २० जाने किल मने भुँखाही होए उ बेला, आधुनिक खेती करे नैजानके । ओहेबेर भुखाही टर्ना एक ठो किल उपाय रहे बनुवाँमे खेले जैना या टे औरेक घरम् कमैयाँ लागके कमैना । मने मोर घर परिवार शिकार खेल्ना उपाय रोजल । उ समय घरघर बन्ढुक, बमगोला, इन्डियाके खुल्ला सिमाना, कौनो छेकबार नाइ, ना टे सोधपुछ ।

समय करोट फेरटी हमार घरक आँजर पाँजर बगिया तयार हुइटी गैल । बगिया मनिक रुखवा दिन दिने बर्हटी गैल । उ समय खैलार, धनौरा ओ कुँरी गाउँ मन्से सबसे सोहावन ओ भारी बगिया हमारे रहे । ओहे बगियामे अत्याचारी खेमराजके लजर पर्लिस ।  ओहेबेला हमार घरक् गरढुरिया मोर बाबाडाइ भोजलाल डँगौरा ओ गंगीया थरुनी रहिंट ।

ओहेबेर, एक दिनके बात हो । खेमराज बिहन्नी घोरुवकमे सवार कैटी बाराबोर लेके हमार घर पुगल ओ बाबाहे कहल, “रे भोजलाल, मोर महल बन्वइना बा रे ।  ५०/६० हजार इँटटा पकाइकलग टोर बगियक कठुवा किल पुगि रे । कै पैंसा लेबे रे ।” बाबा तुरुन्ते जवाफ डेलैं, “नै बेंचम मलिकवा ।” टब जाके खेमराज घोरुवकमे चहुँरल । चहुँरेबेर २०० रुपिया भुँइयामे गिराइल ओ कहल, “रे भोजलल्वा, मोर पैंसा गिरगिल रे, पुगा टे ।”  हतार हतारमे बाबा पैंसा उठैलैं  ओ ओहेबेला फेन खेमराज कहल “ले आब यिहे हो टोर बगियक मोल । आब आघे बोल्बे टे यी बाराबोर डेखटे ।” अट्रा कहिके घोरुवा कुडैटी अपन डगर लागल । बाबक् मुह बन्द होगैलिन । डोसर दिन ओकर सारा कमैयाँ, भत्तावाला बिहन्नीसे बगिया कट्ना सुरु कैडेलैं । जेकर सम्पत्ति उ चुँइ कैके फेन बोले नै पाइल । सारा बगिया सखाप होगैल ।

उसताका नेपालम्र कम्युनिष्ट आन्दोलन मचल रहे । २०४६ सालके जनमत संग्रहके बाद संविधान निर्माणमे असन्तुष्ट हुइल ओर्से प्रचण्ड ओ बाबुराम २०५१ साला फागुन १ गतेके दिनसे औपचारिक रुपमे जनयुद्ध लर्ना घोषणा सहित संसद भवन त्याग कैले रहिंट । समयके चक्रसंगे मै फेन जवान हुइटी गैलुँ । ओहोंर जनयुद्धके आँधीबेरी मच्गैल ।  तानाशाह विरुद्ध, शोषक विरुद्ध, अत्याचारी विरुद्ध, जमिनदार विरुद्ध, सामन्त विरुद्ध, जातियताके विरुद्ध, हमार हस सर्वहारा निमुखाके लाग ।

अस्टेके मै फेन ढिरेढिरे ब्रेक लगैटी कक्षा ८ पुग्नु । ओहेबेला एकरात माओवादीनके एक ठो भारी बगाल खेमराजके घरमे छापा मारल । उहिहे भौतिक कार्वाही कर्लिस, घरके सारा खजाना कब्जा कर्लिस । तत पश्चात उपचारके क्रममे एक शोषक, एक गुण्डा, एक अत्याचारी जमिनदारके जुग बड्लल । ओकर वाद बाँकी शोषक ओइने रातिरात शहरओर भग्लैं ।

गाउँ आइँट टे “रे फलाना” शब्दके सत्तामे, “हो फलाना”,  तँ को तिमी, तिमीके ठाउँमे तपाईं जैसिन शब्दके प्रयोग कर्ना बाध्य हुइलैं सब सामन्त लोग । माओवादीके जनअदालत सामाजिक राज चलैना क्रम चलल । आन्दोलन एक सामान्य अनपढ व्यक्ति फेन निडर हुइलैं । सामाजिक सोंचके रुपान्तरणमे कायापलत परिवर्तन ओहेबेर जनयुद्ध नानल ।

ओहेमारे, भल्हीँ हमरे आर्थिक, धार्मिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक  ओ भाषिक रुपमे एक सम्मान समृद्ध नैहुइबी टब फेन बोली ओ सामाजिक व्यवहारके दृष्टिसे समानताके मध्यमार्गी डगरामे नानके ठर्हियाइल अनुभूती १० वर्षे शसस्त्र जनयुद्ध कर्लक ओर्से फागुन १ गते के दिन “जनयुद्ध दिवस” मोर लाग सम्झना लायकके दिन हो ।
बाँधु हरडिउला
भजनी-४ खैलार, कैलाली

क्रान्तिसे आइल समानता

बाँधु हरडिउला

लेखक कैलालीके खैलार गाउँमे रहल राष्ट्रिय माविमे मास्टर बटैं ।