गजल

सागर कुस्मी "संगत"
१५ फाल्गुन २०८०, मंगलवार
गजल

गजल
आझ टुहिन समझके आँश बहाइटुँ यहाँ ।
याद भरल अक्षरसे पन्ना सजाइटुँ यहाँ ।

जिउ छट्पटाइठ इ सिरिफ टुहिन समझ्के,
मनके पिडा डबाके जिनगी कटाइटुँ यहाँ ।

कबु हँस्ठु कबु रुइठुँ कबुकबु गैठुँ फेन मै,
हिरडा जराके फुटल मन नचाइटुँ यहाँ ।

जिनगी कैसिक बहल कुछ पटे नैचलल,
खाल्ह उँच जिन्गीक पलरा कराइटुँ यहाँ ।

भाग्यमे अस्टे लिखल रहल हुइ सायद,
टब टे बिछोडमे मै जिन्गी चलाइटुँ यहाँ ।
सागर कुस्मी

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सागर कुस्मी "संगत"