लावा डग्गर पत्रिका थारु साहित्यके ढुरि खुँटा
सन्तोष दहित
सब्से पहिला ट लावा डग्गर त्रैमासिक पोष्टा ५० औं अंकम पुग्लक् अवसरम मैगर शुभकामना डिहटुँ । यी अरबर डग्गरम फें सम्हुल डग्गर बनैटि स्वर्ण अकंके रुपम प्रकाशित हुइ लग्लकम बहुट खुशि लागल बा ।
२०६६ माघ महिनासे प्रकाशनके सुरुवाट हुइलक् लावा डग्गर निरन्तर रुपम प्रकाशन हुइटी यिहाँसम् पुग्ना कलक् आपन्हे बराभारी उपलब्धी हो । खास कैख लावा डग्गरह डोरैटी १३ वर्षसम् नेतृत्व कर्टि अइलक् लावा डग्गरके पाइलट कहि या प्रधान सम्पादक छविलाल कोपिलाह दाङके जम्मे प्रगन्नासे शुभकामना बा ।
ओस्टक काठमाण्डौंमसे सौकेंरसे लावा डग्गरह सहि ट्रयाकम नेङ्गैना व लावा डग्गरके लौव ट्रयाक् खोल्ना काम कर्टि अइलक् थारु साहित्यके ढुरिक खुँटा एवं लावा डग्गरके अतिथि सम्पादक डा. कृष्णराज सर्वहारीह फें दाङके भुगोलसे लस्गर शुभकामना बा ओ लावा डग्गरम जोर्गिलक सक्कु मैगर कबिला, लेखक, पाठकहुकनफे दाङ–बुह्रनाकेके जम्मे भुगोलसे बधाइ एवं मैगर शुभकामना बा ।
पाछक समयम छापा मिडिया ओल्टार हुइटि रहल ब्याला लावा डग्गर झनझन पौह्रटी बा । देउखरसे दाङ हुइटी बुह्रान (बाँके बर्दिया, कैलाली, कञ्चनपुर, सर्खेत) सम फैलल् बा । जाट्टिसे कना हो कलसे लावा डग्गर आपन छुट्ट पहिचान व इतिहास कायम कर्ल बा कलसे थारु भाषा व साहित्यके लाग बराभारी चट्टान बनल बा ।
विशेष कैख लावा डगर थारु भाषा, साहित्यके अगुवाइ कर्टि थारु मानक भाषा बनैनाम फें ओत्र भूमिका खेल्टी आइल बा । और पोष्टासे लावा डग्गर आपन लिख्ना साँचा (शैली) व शब्दम फें फरकपन डिहल बा । इतिहास विट्ख्वारबेर थारु भाषा, साहित्य, कला संस्कृतिके संरक्षणके लाग मेरमेह्रिक ठाउँमसे दुइ बिस से ढ्यार थारु पोष्टा निक्रल पाजैठा । यदपी उ पोष्टा ह्यारबेर लेखकहुक्र जस्ट लिख्ख डेल ओस्टह ओस्टह छापल पाजैठा । सम्पादनम ओत्रा मेहनत व लगाब नै डेखपरठ । तर, लावा डग्गरम ओसिन नै मिलट । लावा डग्गरके सम्पादन पक्षम बहुट फरक व आपन साँचा (शैली) बाटिस् ।
खासकैख लावा डग्गरके सम्पादनम व्यन्जन व वर्णम आपन छुट्ट मौलिक शैली व पहिचान बनैल बा । जस्ट थारु ठेट शब्द लिख्ना ट आपन ठाउँम पलि बा उहम हमार मुहमसे जस्ट उच्चारण कर्ठि ओस्ट लिख्ना अभ्यास कैगिल पाजैठा । आगन्तुक शब्दह फें हमार थारु टोनम अइलक् उच्चारण अनुसार लावा डग्गरम लिख्ना अभ्यास बा । यी कत्रा सत्य हो कना विषयम बहसके विषय ट पलि बा लेकिन आपन शैली लावा डग्गर बा नकि और थारु भाषक पोष्टाम निपाजाइठ् ।
जस्ट हमार थारुनके छुट्ट मौलिक पहिचान, भास (सभ्याता), इतिहास बा ओस्टह लावा डग्गरम छुट्ट पहिचान बा । खास कैख २०७३ साउनम आदिवासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठानके सहजिकरणम घोराहीम डंगौरा थारु भाषाक बर्ण पहिचानके कार्याशाला गोष्ठी कैगिल रह । उ कार्यशाला गोष्ठीमसे थारु भाषाके ४२ ठो शब्दके वर्ण पहिचान कैगिल रह । टबहसे लावा डग्गर उह ४२ ठो थारु वर्ण शब्दके आधारम आपन लिख्ना शैली बनैल बा ।
ज्या रलसेफें लावा डग्गरके थारु भाषा, साहित्यके विकास कर्नाम बराभारी भूमिका बाटिस् । हुइना ट थारु भाषा, साहित्यके जग बसैना पहिला पोष्टा गोचाली हो । जौन २०२८ सालम प्रकाशन हुइल रह । थारु भाषा, साहित्यकेल निहोख थारु भाषाके छापा मिडियाके हिसावले हेर्ना हो कलसे सब्से पहिला गोचाली पोष्टा जो हो । तर, उ निरन्तरता पाइ निसक्याल । यदपी गोचाली पोष्टा थारुन्हक् भाषा, साहित्यकेल निहोख थारु समुदायह झकझकैना, जगजगैना व उठैना काम बहुट करल बा । चाहे उ भाषा साहित्यके बात ह्वाए चाहे थारु समुदायक राजनीतिक, साँस्कृतिक व सामाजिक एजेण्डा उठैना बातम पहिला मिडिया गोचाली पोष्टा हो ।
वाकरपाछ थारु भाषा, साहित्यके विकास संगसंग थारु स्रष्टा, स्तम्भकारहुकन जुर्मुरैना काम लावा डग्गर फें हो । भाषा, साहित्य मार्फत थारु समुदायके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, साँस्कृतिक मुद्दाह उठैना काम फें लावा डग्गरके ओत्रह भूमिका बाटिस । ओस्टक लावा डग्गर प्रकाशन संगसंग एक जिल्लासे और जिल्लाके स्तम्भकार व स्रष्टाहुकन जोर्ना काम फें लावा डग्गर कर्टि आइल बा । पाछक समयम हरेक वर्ष हुइटी अइलक् थारु साहित्यक् म्यालाके जग बसैना व याकर नेतृत्व कर्ना फे लावा डग्गर जो हो । उहओर्से लावा डग्गर थारु भाषा, साहित्य छापाठेसे सामाजिक संजालम समेत डँटक बहस करैना एक्ठो बल्गर खुँटा हो ।
अन्तम यी डिजिटल जमानम लावा डग्गरह फें डिजिटल बनाइ पर्ना जरुर बा । जे लावा डग्गरके हार्ड कपि पाइ निस्याकल हो उ लावा डग्गरके वेवसाइट या अनलाइनम आपन मोवाइलमसे लावा डग्गरह बिट्ख्वार स्याक या पह्र सेकि । उहओर्से यी बातह मध्यनजर कैख लावा डग्गर झटसे झट अनलाइनके डग्गर ख्वाल कना म्वाँर शुभकामना बा ।