लावा डग्गर पत्रिका थारु साहित्यके ढुरि खुँटा

सन्तोष दहित
१२ चैत्र २०७९, आईतवार
लावा डग्गर पत्रिका थारु साहित्यके ढुरि खुँटा

लावा डग्गर पत्रिका थारु साहित्यके ढुरि खुँटा
सन्तोष दहित

सब्से पहिला ट लावा डग्गर त्रैमासिक पोष्टा ५० औं अंकम पुग्लक् अवसरम मैगर शुभकामना डिहटुँ । यी अरबर डग्गरम फें सम्हुल डग्गर बनैटि स्वर्ण अकंके रुपम प्रकाशित हुइ लग्लकम बहुट खुशि लागल बा ।

२०६६ माघ महिनासे प्रकाशनके सुरुवाट हुइलक् लावा डग्गर निरन्तर रुपम प्रकाशन हुइटी यिहाँसम् पुग्ना कलक् आपन्हे बराभारी उपलब्धी हो । खास कैख लावा डग्गरह डोरैटी १३ वर्षसम् नेतृत्व कर्टि अइलक् लावा डग्गरके पाइलट कहि या प्रधान सम्पादक छविलाल कोपिलाह दाङके जम्मे प्रगन्नासे शुभकामना बा ।

ओस्टक काठमाण्डौंमसे सौकेंरसे लावा डग्गरह सहि ट्रयाकम नेङ्गैना व लावा डग्गरके लौव ट्रयाक् खोल्ना काम कर्टि अइलक् थारु साहित्यके ढुरिक खुँटा एवं लावा डग्गरके अतिथि सम्पादक डा. कृष्णराज सर्वहारीह फें दाङके भुगोलसे लस्गर शुभकामना बा ओ लावा डग्गरम जोर्गिलक सक्कु मैगर कबिला, लेखक, पाठकहुकनफे दाङ–बुह्रनाकेके जम्मे भुगोलसे बधाइ एवं मैगर शुभकामना बा ।

पाछक समयम छापा मिडिया ओल्टार हुइटि रहल ब्याला लावा डग्गर झनझन पौह्रटी बा । देउखरसे दाङ हुइटी बुह्रान (बाँके बर्दिया, कैलाली, कञ्चनपुर, सर्खेत) सम फैलल् बा । जाट्टिसे कना हो कलसे लावा डग्गर आपन छुट्ट पहिचान व इतिहास कायम कर्ल बा कलसे थारु भाषा व साहित्यके लाग बराभारी चट्टान बनल बा ।

विशेष कैख लावा डगर थारु भाषा, साहित्यके अगुवाइ कर्टि थारु मानक भाषा बनैनाम फें ओत्र भूमिका खेल्टी आइल बा । और पोष्टासे लावा डग्गर आपन लिख्ना साँचा (शैली) व शब्दम फें फरकपन डिहल बा । इतिहास विट्ख्वारबेर थारु भाषा, साहित्य, कला संस्कृतिके संरक्षणके लाग मेरमेह्रिक ठाउँमसे दुइ बिस से ढ्यार थारु पोष्टा निक्रल पाजैठा । यदपी उ पोष्टा ह्यारबेर लेखकहुक्र जस्ट लिख्ख डेल ओस्टह ओस्टह छापल पाजैठा । सम्पादनम ओत्रा मेहनत व लगाब नै डेखपरठ । तर, लावा डग्गरम ओसिन नै मिलट । लावा डग्गरके सम्पादन पक्षम बहुट फरक व आपन साँचा (शैली) बाटिस् ।

खासकैख लावा डग्गरके सम्पादनम व्यन्जन व वर्णम आपन छुट्ट मौलिक शैली व पहिचान बनैल बा । जस्ट थारु ठेट शब्द लिख्ना ट आपन ठाउँम पलि बा उहम हमार मुहमसे जस्ट उच्चारण कर्ठि ओस्ट लिख्ना अभ्यास कैगिल पाजैठा । आगन्तुक शब्दह फें हमार थारु टोनम अइलक् उच्चारण अनुसार लावा डग्गरम लिख्ना अभ्यास बा । यी कत्रा सत्य हो कना विषयम बहसके विषय ट पलि बा लेकिन आपन शैली लावा डग्गर बा नकि और थारु भाषक पोष्टाम निपाजाइठ् ।

जस्ट हमार थारुनके छुट्ट मौलिक पहिचान, भास (सभ्याता), इतिहास बा ओस्टह लावा डग्गरम छुट्ट पहिचान बा । खास कैख २०७३ साउनम आदिवासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठानके सहजिकरणम घोराहीम डंगौरा थारु भाषाक बर्ण पहिचानके कार्याशाला गोष्ठी कैगिल रह । उ कार्यशाला गोष्ठीमसे थारु भाषाके ४२ ठो शब्दके वर्ण पहिचान कैगिल रह । टबहसे लावा डग्गर उह ४२ ठो थारु वर्ण शब्दके आधारम आपन लिख्ना शैली बनैल बा ।

ज्या रलसेफें लावा डग्गरके थारु भाषा, साहित्यके विकास कर्नाम बराभारी भूमिका बाटिस् । हुइना ट थारु भाषा, साहित्यके जग बसैना पहिला पोष्टा गोचाली हो । जौन २०२८ सालम प्रकाशन हुइल रह । थारु भाषा, साहित्यकेल निहोख थारु भाषाके छापा मिडियाके हिसावले हेर्ना हो कलसे सब्से पहिला गोचाली पोष्टा जो हो । तर, उ निरन्तरता पाइ निसक्याल । यदपी गोचाली पोष्टा थारुन्हक् भाषा, साहित्यकेल निहोख थारु समुदायह झकझकैना, जगजगैना व उठैना काम बहुट करल बा । चाहे उ भाषा साहित्यके बात ह्वाए चाहे थारु समुदायक राजनीतिक, साँस्कृतिक व सामाजिक एजेण्डा उठैना बातम पहिला मिडिया गोचाली पोष्टा हो ।

वाकरपाछ थारु भाषा, साहित्यके विकास संगसंग थारु स्रष्टा, स्तम्भकारहुकन जुर्मुरैना काम लावा डग्गर फें हो । भाषा, साहित्य मार्फत थारु समुदायके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, साँस्कृतिक मुद्दाह उठैना काम फें लावा डग्गरके ओत्रह भूमिका बाटिस । ओस्टक लावा डग्गर प्रकाशन संगसंग एक जिल्लासे और जिल्लाके स्तम्भकार व स्रष्टाहुकन जोर्ना काम फें लावा डग्गर कर्टि आइल बा । पाछक समयम हरेक वर्ष हुइटी अइलक् थारु साहित्यक् म्यालाके जग बसैना व याकर नेतृत्व कर्ना फे लावा डग्गर जो हो । उहओर्से लावा डग्गर थारु भाषा, साहित्य छापाठेसे सामाजिक संजालम समेत डँटक बहस करैना एक्ठो बल्गर खुँटा हो ।

अन्तम यी डिजिटल जमानम लावा डग्गरह फें डिजिटल बनाइ पर्ना जरुर बा । जे लावा डग्गरके हार्ड कपि पाइ निस्याकल हो उ लावा डग्गरके वेवसाइट या अनलाइनम आपन मोवाइलमसे लावा डग्गरह बिट्ख्वार स्याक या पह्र सेकि । उहओर्से यी बातह मध्यनजर कैख लावा डग्गर झटसे झट अनलाइनके डग्गर ख्वाल कना म्वाँर शुभकामना बा ।

लावा डग्गर पत्रिका थारु साहित्यके ढुरि खुँटा

सन्तोष दहित