हावा हुरी आगी ओ पानी से डराए ना पर

लब्लिन क्यानभास
१४ चैत्र २०७९, मंगलवार
हावा हुरी आगी ओ पानी से डराए ना पर


गजल
बहर = रजज मुसम्मन सालिम
[२२१२  २२१२  २२१२  २२१२ ]

हावा हुरी आगी व पानी से डराए ना पर ।
टेक्के दुठो लाउम जिन्गी हे तराए ना पर ।

बेली चमेली बाबरीया अप्सरा सारा टुँ ह,
आकाशके जोन्ह्या ह धर्ती मै झराए ना पर ।

सारा खुशीके मूल हो म्वा जिन्दगीके सार टुँ,
मै भुल्क फें टोहाँर हिर्डा ऊ जराए ना पर ।

फूला चह्राके फें भगन्वा हे बनठ् पूजा पुज,
मन् शान्तिके ला नै हिंसा हत्या कराए ना पर ।

एक्के सरो झुल्वा लागाए पाउ, पानी केल् पिए,
यी देश छोर्के अन्त ड्यारा जो सराए ना पर ।
लब्लिन क्यानभास
घोराही दाङ

हावा हुरी आगी ओ पानी से डराए ना पर

लब्लिन क्यानभास