‘थारु भासा संस्कृति हमार पुर्खनके डेहल सम्पत्ति हो’

निर्मल चौधरी
२७ चैत्र २०७९, सोमबार
‘थारु भासा संस्कृति हमार पुर्खनके डेहल सम्पत्ति हो’

‘थारु भासा संस्कृति हमार पुर्खनके डेहल सम्पत्ति हो’

कैलाली जिल्लाके जानकी गाउँपालिका वडा नम्बर ५ अमौरी गाउँके साहित्यकार निर्मल चौधरी युवा साहित्यकार मध्ये एक हुइटैं । बाबा सोंग्रा थारु ओ डाइ लक्ष्मणिया देवी थारुके कोखसे २०५१ साल जेठ महिनाके १ गते जन्मल इ धर्तीमे पैला टेक्नै । उहाँक् डुटिया संयुक्ट मुक्टक संग्रह, ओ टेम्ह्री संयुक्ट गजल संग्रह प्रकासन हुइल बटिन । थारु साहित्यिक क्षेत्रमे सक्रिय लेखकके रुपमे डेख परल बटैं । ओस्टेके हरचाली साहित्यिक त्रैमासिक, निसराउ साप्ताहिक लगायत टमान पत्रिकाके आजिवन सदस्य फेन हुइटैं । इहे क्रममे सागर कुस्मीसे करल छोटमिठ बातचित यहाँ प्रस्तुत कैल बा ।

१.अपने साहित्य लेखन ओर कहियासे लग्ली ? लिख्ना आशिर्वाद कहाँसे पैली ?
साहित्यिक क्षेत्रमे मै करिब अस्टे २०७४ साल ओरसे लग्नु । जब मै ९ कक्षामे पर्हुँ टो पथरैया गाविस मे बाल अधिकार सम्बन्धी तालिम रहे । वहाँ मोरिक भेंट जानकी गाउँपालिका ४ जबलपुरके संघरीया अंकर अन्जान सहयात्रीसे हुइल । उ तालिमके दौरान महिन वहाँके मैगर मिठ रचना सुन्ना अवसर मिलल । ओहे तालिमसे मै प्रभावित हुइनु । टबसे गजल मुक्तक लिखे भिरनु । मोर गुरु सागर कुस्मी डाजु हुइँट् । अस्टेके सोसियल मिडिया फेसबुकके माध्यमसे मोर मित्रता मै टोहाँर डंगुवा भाटु कना राम कुमार डाडुसे हुइल । वहाँके मैगर मिठ रचना पहर्के महिन ढेर उर्जा मिलल । महिनफें कलम चलैना मन लागे लागल ओ लिख्नाफें सुरु करडेनु । ढिरेढिरे लिखट लिखट ओ संघरियनके टिटमिठ प्रतिक्रियासे कपकप साहित्यकार हुइनु पटै नैचलल ।

२.अप्नेक बाल्यकाल कैसिक बिटल बटा डिना ? कब्बु नै बिस्राई सेक्ना जिन्गीक् सबसे यादगार पल का बा ?
गरीब घरसे हुइलेसेफें मोरिक बाल्यकाल ठिकठिके बिटल । खैना लगैना जा जा चाहल कबु मागेक नाइ परल । डाइ बाबा भगवानके रुप कठैं सँच बात हो । जप मै छोट रहुँ घरेक् रुपिया बेढक् चोराउँ । डाइ खोब सम्झाए । कहे रुपिया ना चोराइस् छावा बानी बिगर जाइठ । पाछे चोर बन्बे । रुपिया कमैना कट्रा कर्रा रहठ । टोर बाबा मरमर कमाइठ । केकर लग हो, सप टोरे लग टो हो काहुन । पाछे जवान हुइबे टो अपनही पटा पैबे । रुपया कमाइ बेर कैसिन लागठ टैं फें कमुइया जात हुइस कहिके । काम करेबेर जपजप महिन हैरान लागठ, टब टब मै डाइक् ओहे बात सम्झठुँ । ओहे बात जो मोर जिन्गीक् सबसे यादगार पल हो ।

३.अब्बेसम सक्कु मिलाके सक्कु कैठो सम पोस्टा प्रकासन कैसेक्ली ?
अब्बेसम टो मोर खाली डुटिया संयुक्त मुक्टक संग्रह ओ टेम्ह्री संयुक्त गजल संग्रह किल प्रकाशन हुइल बा । मोर एकल गजल संग्रह अइना तयारीमे बा । जौन बहुट हाली आइ ।

४.साहित्यिक क्षेत्रमे लागके का पैली ओ का गुमैली ?
साहित्यिक क्षेत्रमे लागके जिन्गीके बारेमे बहुट कुछ सिखे मिलल महिन । बहुट खुसी बटँु । मन टो कहठ साहित्यहे जिन्गी जिना अधारे बनालिउँ । साहित्यके माध्यमसे अपन मनमे रहल विचार भावना पीर, व्यथा, रीस, डाहा अपन थारु भाषा कला संस्कृति पहिरनके बारेमे दुनियाहे बटाइ मिलल । सँचमे कहुँ कलेसे मनमे बहुट सुकुन मिलठ । अपन मनमे रहल पीर, व्यथ, खुसी संघरिया ओइनसे बाँटे मिलठ । मन हल्लुक लागठ । इ क्षेत्रमे लागके अभिन सम महिन कुछ गुमाइल हस नाइ लागठ ओ इहे कामना बा कि पाछेफें कुछ अइसिन महसुस ना होए कहिके ।

५.अप्ने खास कैके कौन कौन बिधामे कलम चलैठि ? कैसिन रचना मन परठ ?
अभिनसम टो मै खास कर्के गजल ओ मुक्तक विधामे किल कलम चलैले बटुँ । बीचमे कविताफें लिख्ना प्रयास कर्ले रहुँ कारणवश नाइ लिख पैनु मने आप कविताफें लिखे भिरल बटुँ ओ संगेसंगे थारु गीत संगीतमे लग्ना योजना बनैले बटुँ । महिनहे मैंयाँ प्रेम, देशभक्ति, राजनीति सम्बन्धि ओ अपन थारु भाषा कला संस्कृति सम्बन्धी सब मेराइक रचना मन परठ ।

६.अझ्कल अप्नेक गाउँ ठाउँ ओर थारु साहित्यके अवस्था कैसिन बा ?
हमार गाउँ ठाउँके साहित्यिक अवस्था बहुट पछगुरल बा । सप अपन अपन कामकाजमे लागल बटैं । जे पहिले साहित्यिक क्षेत्रमे कलम चलाए, अझकल ओइनेफें अन्टे व्यस्त बटैं । हमार अब्बेक् जौन युवा पिढी बटैं, सप बाहेर बाहेर बटैं ओ जौन घरे बटैं ओइनहे साहित्यके बारेमे पटा नाइ हुइन, ओइन तालिम डेहुइयाफें कोइ नाइ हुइटैं । समय ओ परिस्थिति अनुसार सप पैसा कमैनामे लागल बटैं ।

७.थारु भासा साहित्यसे थारु समाजहे कैसिक आघे बर्हाइ सेक्जाइ ?
थारु भासा साहित्यके माध्यमसे थारु भासा संस्कृति हमार पुर्खनके डेहल सम्पत्ति हो । एकर बिना हमार अस्तित्व नाई हो । जिलेक कुछ अर्थ नाइ हो । इहिन लगाइ परल बचाइ परल । हमार अइना वाला सन्तति हुंक्रे फें डेखे ओ बुझे पाइ परल । वर्षमे टरटिहुवार खाली एकचो आइठ लाज नाइ मानके फें अपन थारु पहिरन लगाइ परल । गाउँ बस्तीहे चैनार कराइ परल । पुर्खेसे चल्टी आइल परम्परा रीतिरिवाजहे निरन्तर रुपमे पालना करे परल ।

८.एकठो सफल लेखक बनक् लाग कत्रा संघर्ष करे परठ ?
एकठो सफल लेखक बनेक लाग बहुट संघर्ष करेक परठ । जस्टे कि एक घरमुलीहे अपन घरबार चलाइक लाग कट्रा मेहनत करेक परठ सक्हुन पटै हुइ । सफल लेखक बन्ना कलेक टिनामे नोन कट्रा डारेक परठ, कट्रा तेल डरलेसे ठीक हुइ, कट्रा का डर्बो टो मीठ हुइ ओस्टेके लेखक बनेक लागफें बहुट मेहनत करेक परठ । कौन शब्द कहाँ लगाइक परठ, छोट ओ मीठ शब्द खोजेक परठ । लेखन क्षेत्रमे लागल सक्हुन उछलके आघे बर्हे परठ । छोट ओ मीठ शब्दसे हरेक मनैनके दिलमे प्रहार करेक परठ । गाउँ समाजके मनैनके बात सुनेक परठ, सहेक परठ । ओइनके पीर व्यथा बुझेक परठ । प्राकृतिक अवस्था बुझेक परठ । लिखेक लग शब्दै नैमिलठ । शब्द खोजेक लाग बहुट गहिराइमे डुबेक परठ । अपन अमूल्य समय ओ लगानी लगाके बलटल किताब निकर्बो कोइ पर्ह नाइ डेहठ । यहाँ टक कि संघरियाफें साथ नाइ डेठैं । लैजिहीं टो फें ओस्टे लब्डैले रठैं । गाउँ ठाउँके मनै गलत नजरसे हेरठैं । अइसिन क्षेत्रमे लागके का कर्बो का पैबो कना सवाल करठैं । हर सवालके जवाफ डेहक परठ । करल मेहनत खेरा गैल जैसिन महसुस हुइठ कबुकबु ।

९.अझकलके युवनहे साहित्यमे कलम चलाइक लाग का कैसिन योजना बनैले बटी ?
अझकलके युवनहे साहित्यमे कलम चलाइक लाग सपसे पहिले टो समय मिलाके साहित्यिक क्षेत्रमे रुचि ढर्ना मनैन एक ठाउँमे भेला करैना । साहित्य का हो, साहित्यमे कौन कौन विधा रहठ बटैना । साहित्यके माध्यमसे गाउँ समाज ओ देशहे कैसिक परिवर्तन करे सेक्जाइठ । हमार भाषा, संस्कृति ओ पहिचान का हो, इहिन कैसिक बचैना कहिके समय समय ओ ठाउँ ठाउँमे उचित तालिमके व्यवस्था कर्ना । हरेक विधामे बेला बेलामे प्रतियोगिता करैना ओ पुरस्कृत कर्ना । डुर डुर साहित्यिक कार्यक्रममे सामेल करैना अइसिन करलेसे युवा हुंक्रे आकर्षित हुइहीं कना जैसिन लागठ महिन ।

१०.मनैनके जिन्गीमे साहित्यहे कैसिक परिभाषित कर्ठी ?
साहित्य कना मनैंनके जिन्गीसे जुरल एकठो अंग हो । हरेक मनैंनके जिन्गीमे अपन अपन पीर ब्यथा रहठ । अपन मनमे रहल उहे भावना पीर व्यथा रीस डाहा आक्रोस ओ विचारहे भित्री गहिराइमे जाके हर मेराइक बातहे ढेरसे छोट मीठ बनाके जसके टस एकठो खाली पन्नामे उटर्ना या मनैंनके माझमे कोइ ना कोइ माध्यमसे प्रस्तुत कैके अपन मनहे हल्का बनैना गाउँ समाज ओ देशहे परिवर्तन करैना अपन भासा संस्कृतिहे निरन्तर रुपमे बचाके ढर्नाहे साहित्य कैहजाइठ ।

११.ओरौनीमे का सन्देश डेहक चहठी ?
सपसे पहिले टो अपनेक् ओ अपनेक् टीमहे मोर अन्तर्वार्ताके लाग हृदयसे धन्यवाद डेना चाहटुँ । महिन यहाँसम पुगाके साठ डेहुइया सक्कु मैगर संघरिया हुँक्रन भित्री हृदयसे सम्झले बटुँ ओ धन्यवाद डेना चाहटुँ । सदा अस्टेके मैंयाँ ओ साथ डेटी रबी । अन्तमे मै इहे कहना चाहटुँ कि हमार अब्बक् जौन युवा पिढी बा सपके सप विदेशी पहिरन भाषा संस्कृति प्रति, दिन प्रतिदिन आकर्षित हुइटी जाइटी । अपन जौन भाषा संस्कृति बा भुलैटी जाइटी, समय, परिस्थिति ओ जबाना अनुसार बदल्ना ठीके हो मने अपन भाषा संस्कृति पहिरनहे भुलाके बदल्ना चाहीं अपन अस्तित्व मेटैना हो । टबेमारे सक्कु जहन मै इहे अर्जी कर्ना चाहटुँ कि अपन भाषा संस्कृति ओ पहिचानहे चाहिँ चाहे जैसिक बचाके ढारे परल काहे कि उ हमार पुर्खनके देन हो । हमार अइना वाला सन्तती हुँक्रेफें डेखे लगाइ पाइ परल । ओकर बिना हमार कोइ अस्तित्व नाइ रैहजाइ शुन्य हुइजिबी । धन्यवाद ।

‘थारु भासा संस्कृति हमार पुर्खनके डेहल सम्पत्ति हो’

निर्मल चौधरी