गीत
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई
बरका बनवाँ बसन्तामे आई, चली जैबी बनवाँ बिहारे । २
हे बनवाँ मे फुले लागल टेंस, सेमरा मे ढोंटा फुले रे,
बारी मे बसन्ती फुली गैनै, मनवाँ मे बनुवँक मैयाँ फुले रे ।
असारे मे पाकी गैलाँ जाम, झरी गैलाँ फुला असराई,
जाउ डाडु रुखवामे कोसम टुरे, पकली गुलरीया भइला मसवाई ।।
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई,………………………….। २
हे गोनियाँमे चोलीया सुहानी, पलियामे सखियाक नाच,
अंगनामे नाचैं छोकरा ओ झुमरा, मन्डरामे चैनार झाल सोहे रे ।
घेंचामे सुटिया सुहानी, हाँठेमे चुरीया ओ बम,
ढकियामे सुटही ओ गोंइजीक फुन्ना, लेहेंगामे चमचम सिटारा चमके ।।
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई,………………………….। २
हे वनदेवी जमनेहटा ताल, देउ गणेश रतनपुर मे,
काली मैयाँमे माघक मेला, देउ करम बनवाँ बीच रे ।
घोडाघोडी विष्णु उल्लासमे, असारेमे बेहडाके मेला,
बनसप्ती माता हे पटीया चढैबु, पार कराएयो बनुवाँ बरका ।।
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई………………………….। २
हे घमझुल्कम नाचैं मन्जोर, चटकली डाँरा पर रे,
लाली बलुवामे अजगर बसेंरा, गोहुवा कटैनिक लडीयामे बास ।
मैगर सारसके जोरी, टलुवम बा पानी घुमटी,
चुरीयासे दुधवा हँठियनके नेंगना, गरजट बघवा बरका बनमे ।।
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई………………………….। २
बसन्ता जैविक मार्ग (हुलाकी सडक) फोटुः कैलारी अनलाइलसे
एल्बमः काइल सन्देश
शब्दः मनोज चौधरी
भाष्कर देव चौधरी
प्रदेशी दर्पन कुशुम्याँ
स्वरः प्रदेशी र्दपन कुशुम्याँ
विन्दु शर्मा