बरका बनवाँ बसन्ता मे आई

मनोज, भाष्कर देव, दर्पन
६ बैशाख २०८०, बुधबार
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई

गीत
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई

बरका बनवाँ बसन्तामे आई, चली जैबी बनवाँ बिहारे । २

हे बनवाँ मे फुले लागल टेंस, सेमरा मे ढोंटा फुले रे,
बारी मे बसन्ती फुली गैनै, मनवाँ मे बनुवँक मैयाँ फुले रे ।
असारे मे पाकी गैलाँ जाम, झरी गैलाँ फुला असराई,
जाउ डाडु रुखवामे कोसम टुरे, पकली गुलरीया भइला मसवाई ।।
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई,………………………….। २

हे गोनियाँमे चोलीया सुहानी, पलियामे सखियाक नाच,
अंगनामे नाचैं छोकरा ओ झुमरा, मन्डरामे चैनार झाल सोहे रे ।
घेंचामे सुटिया सुहानी, हाँठेमे चुरीया ओ बम,
ढकियामे सुटही ओ गोंइजीक फुन्ना, लेहेंगामे चमचम सिटारा चमके ।।
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई,………………………….। २

हे वनदेवी जमनेहटा ताल, देउ गणेश रतनपुर मे,
काली मैयाँमे माघक मेला, देउ करम बनवाँ बीच रे ।
घोडाघोडी विष्णु उल्लासमे, असारेमे बेहडाके मेला,
बनसप्ती माता हे पटीया चढैबु, पार कराएयो बनुवाँ बरका ।।
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई………………………….। २

हे घमझुल्कम नाचैं मन्जोर, चटकली डाँरा पर रे,
लाली बलुवामे अजगर बसेंरा, गोहुवा कटैनिक लडीयामे बास ।
मैगर सारसके जोरी, टलुवम बा पानी घुमटी,
चुरीयासे दुधवा हँठियनके नेंगना, गरजट बघवा बरका बनमे ।।
बरका बनवाँ बसन्ता मे आई………………………….। २

बसन्ता जैविक मार्ग (हुलाकी सडक) फोटुः कैलारी अनलाइलसे

एल्बमः काइल सन्देश

शब्दः मनोज चौधरी
भाष्कर देव चौधरी
प्रदेशी दर्पन कुशुम्याँ

स्वरः प्रदेशी र्दपन कुशुम्याँ
विन्दु शर्मा

बरका बनवाँ बसन्ता मे आई

मनोज, भाष्कर देव, दर्पन