गजलः सखिया झुम्रक टार मजा लागठ

सागर कुस्मी
१७ बैशाख २०८०, आईतवार
गजलः सखिया झुम्रक टार मजा लागठ

गजल

महिन सखिया झुम्रक टार मजा लागठ ।
नाचेबेर गुरिया गहनक हार मजा लागठ ।

हमार लगाम भेसभुसा बहुत सोहावन बा,
टबे टिकली झोबन्ना सिंगार मजा लागठ ।

कोइ खाइठ चट्नी भात कोइ सरसिकार,
मने सिहरल जिउहे टे माँर मजा लागठ ।

पुरान चिजबरन बुडी बहुत सजाके ढारी,
पुरान चिज घालेबेर हरबार मजा लागठ ।

ढकिया डेलुवा डेख्के सबकोइ लोभाजैठैं,
काहेकी ओकर पनुवाँडार मजा लागठ ।

सागर कुस्मी
कैलाली

गजलः सखिया झुम्रक टार मजा लागठ

सागर कुस्मी