अख्वारी

अर्जुन थारु
१४ जेष्ठ २०७८, शुक्रबार
अख्वारी

बरा मैगर बा हमार समाज
यहाँ थारु जातिनके अपन छुट्टे
पहिचान बावै 
अपन छुट्टे रहनसहन बावै
छुट्टे मौलिक संस्कृति बावै 
महिन गर्व लागठ अपन नाउँक्
पाछे थारु जोरे पैलेक म
ओ महिन गर्व लागठ
अपन समुदायमा मिल्के 
बैठे पैलक म
मिलनसार फे कटना मिलनसार
सक्कु जातिन अपन पहुना मनठैं
अपनठे रहल खानपिनके 
परिकार ओ संस्कृतिसे 
पहुनन् स्वागठ कर्ठैं
ना रिसराग ना चिब्ली
कटना मिलनसार स्वभाव बाटिन
साइत थारु जातिनहस् 
आउर केउ नि हुइ ।

मनो दुख लागठ 
मोर समाज हिन आझ
चिनहुइया केउ नै हुइटैं
मोर समाजके दुख व्यथा
बुझुइया केउ नैहुइटैं
मोर समाज हिन आघे 
बरहुइया केउ नैहुइटैं 
बाटैं केबल 
अपन स्वार्थ डेखुइया
हमार अधिकार छिनुइया 
ओ पहिचानसे बन्चित करुइया 
बरा कर्रा बा सासकनसे 
मोर समाज हिन बचैना 
आब टो अपनहीं जागे परल 
हाँठेम कुरहार लैके लरे परल 
ओ रात दिन 
अपन जातके, समाज, संस्कृतिके
अधिकार ओ पहिचानके 
अख्वारी करे परल ।

अर्जुन थारु 
बारबर्दिया-५ बनघुसरी बर्दिया

अख्वारी

अर्जुन थारु