डैनटुर्वा

अंकर अन्जान सहयात्री
१५ जेष्ठ २०७८, शनिबार
डैनटुर्वा


पोरसाल डोंग्राहान छोट्कासे काठमान्डु गैल रही । सिख्नौटी चलाइ ना कहजाइ भेरभट्टामे डु डिन लगाके पुग्ली । चाउओर बड्री छुना मेरिक मकान, कान बहिर कैडेना मेरिक ढोंढोंपोंपों गारिक् आवाज, सारा गल्ली मनैंनसे भरल । असिन लावा ठाउँ डेख्के महा अंखोहर लागे ।

उ बेर फेसबुकमे बड्रिहान डाडु कले रहैं । भाइ काठमान्डु घुमेआइ । मै अप्नहे घुमैम् सारा नगरी । ओस्टक् कल्पुर्हान डिडीफे फोनम् कले रहिन । महिन म्यासेजमे बोलिचालिक लाग बनाइल सार्हुफें एसएमएस करले रहैं । यिहे घुम्ना सोंच बनाके गैल रही काठमान्डु ।

लकिन उहाँ जब हम्रे पुग्ली टो बड्रिहान डाडु चिन्हें छोरडेलैं । कल्पुर्हान डिडीफे मुँह् घुमाडेलिन । बनौटी सार्हुफें ओस्टेक् करडेलैं । अट्रा भारी सहरमे अट्रा ढेर नाँटपाँट होकेफे पराया बन्ली हम्रे । मनमनें सोंच्नु सहर कलक् टो डैनटुर्वा हो । जो कि अपन मनैंनफें अपन जस्टे बनाडेहठ ।
अंकर अन्जान सहयात्री
जानकी गाउँपालिका-८ जबलपुर कैलाली 

डैनटुर्वा

अंकर अन्जान सहयात्री