‘भासा, कला ओ साहित्य मनैनके पहिचानके मुख्य आढार हो’–कोपिला

खगेन्द्र गिरि ‘कोपिला’
१ जेष्ठ २०८०, सोमबार
‘भासा, कला ओ साहित्य मनैनके पहिचानके मुख्य आढार हो’–कोपिला

‘‘भासा, कला ओ साहित्य मनैनके पहिचानके मुख्य आढार हो’–कोपिला

नेपालगन्जमे बैठके कलम चलैना खगेन्द्र गिरि ‘कोपिला’ साहित्यमे एक परिचित नाउँ हो । २०२० साल फाल्गुणमे बाजुरामे जन्मल कोपिलाके १३ ठो पोस्टा प्रकाशित हुइल बटिन । कोपिलासे लिखित पोस्टा अश्रु अर्घ, ऋतुदर्शन, अतीत आमन्त्रण, व्यग्र आँदनी, आफ्नै छाल आफ्नै किनारा, अस्विकृत रहर जैसिन पुस्तक ढेर चर्चित रहल । थारु भासाके विकास यात्राहे लग्गेसे डेखल चिन्हँल कोपिला थारु भासी साहित्यिक गतिविधिमे फेन जुरल बटैं । इहे क्रमे साहित्यमे केन्द्रित होके सागर कुस्मीसे करल बातचित यहाँ प्रस्तुत कैल बा ।

१.साहित्यिक यात्रा कैह्यासे सुरु कर्लि ?
म्वाँर विद्यार्थी जीवन कञ्चनपुर ओ कैलालीम बिटल । विद्यार्थी कालसे मै डानडान साहित्यम जुरटि आइल बाटुँ । । २०३३ साल म महेन्द्रनगरसे प्रकाशित हुइना साप्ताहिक वार्ताम म्वाँर एकचो कविता प्रकाशित हुइल रह । ओकर शीर्षक भुला गिनुँ । २०५० साल म जब नेपालगंज आइनु और यहाँ स्थायी वसोवास आरम्भ हुइल ट म्वाँर साहित्य क गति फेन टेज हुइल ।

२.कैसिन अनुभुतिसे लिखाइओंर टानठ् ?
सबसे ढेउर ट सामाजिक जनजीवनक विषय टानठ् । मनैनक सुखदुःखक हरेक विषय अनुभूति बनक लिखाइमे अनुवाद हुइठ । समाज म डेख पर्ना अत्याचार, अन्याय, शोषण, भ्रष्टाचार, प्रताडना, पक्षपात, बेइमानी जैसिन विषष क प्रतिवाद कैना मन लग्ठा । इ प्रतिवाद कैना माध्यम इ साहित्य ही बनल बा ।

३.अप्ने लेखनके उद्देस्य का लेले बटि ?
सबसे पहिले ट आपन आत्मसन्तुष्टि ही म्वाँर लेखनक मुख्य उद्देश्य हो । ओकर पाछ लेखनक इ हुटहुटी एक सचेत नागरिकक डायित्व फेन बनल बावै । साहित्य क मुख्य उद्धेश्य समाज क लोवा डागरा डेखैना हो । निमुखा मनैन क स्वर बन्ना हो । समाज क प्रत्येक तह ओ तप्का म रहर चिन्तनशील विचार क आघ आने पर्ना हो । भाषा, संसकृति ओ सभ्याताक संरक्षण करना डायित्व फेन साहित्य क हो । मैं पेंm समाज क भाइचारा, मानवता, सदभाव ओ प्रेमके जगेर्ना कैक असामाजिक व्यवहार ओ अमानवियताके हटैना उद्देश्य ढैल्याटुँ ।

४.साहित्यमे अप्ने कैसिन विचार डेना मन परैठि ?
मानवतावादी और राष्ट्रवादी विचार । इ विचारम सब समुदाय, सब जातपात, सब भेग ओ सब क्षेत्रहे समेटे सेक्ना सम्भावना रहठ । मनैन क मनमा प्रेम, सदभाव, सहयोग, सामन्जस्य ओ मानवियता क भावना क संचार कैना विचार डेना मन परठ ।

५.मन पर्ना लेखन विधा कौन हो ? कारण ?
म्वाँर सबसे मन पर्ना विधा ट गजल हो । ओकर पाछ मुक्तकम फेन मन लागठ । गजल व मुक्तक क चोटिलोपन ओ प्रहारक क्षमता महिन आकर्षित करठ । गजल ओ मुक्तक म कम शब्द म गहन बाट बटुवाइ सेक्ठी । इ डुनु विधाम आपन मनक बाट सटिक रुपसे अभिव्यक्ति डेना आकर्षण रहठ । मैने नियात्रा, कथा, कविता ओ समीक्षा म फेन कलम चल्याइल्याटुँ । ओस्ट ट मन छुना साहित्य ट प्रत्येक विधाम रहट जे ।

६.अप्नेक लेखनमे यथार्थपरक रहठ् कनामे कैसिन प्रतिक्रिया बा ?
इ कहना ठिक हो । आपन सिर्जना म यथार्थपरक विषयबस्तु समेट्ना म्वाँर ढेउरसे ढेउर प्रयास रहठ । प्रयास म पूर्ण सफल रहना निरहना ड्वासर बाट हो । तर म्वाँर अधिकतम प्रयास साहित्य म समाज क यथार्थैपरक बाट समेट्ना रहट । सामाजिक यर्थाथतासे डुर रहल साहित्य पाठकसे फेन डुर हुइठ । बरबर विड्वान मनैं ना कहट कि साहित्य सामाजिक यर्थाथता क चित्र हो ।

८.साहित्यम मौलिकता कम महसुस कैगैल बा, यिहिहे कैसिक लेले बटि ?
इ बरवार समस्या आइल बा साहित्य म । आपन मौलिकतासे डुर होक रचल साहित्य अझकल हावी बा । प्रत्येक लेखुइयाहे आपन मौलिकता बचाक ढर्ना आवश्यक बा । साहित्य क फरकपन केवल भासा से नि बिल्गाइठ । आपन भासा ओ संस्कृति म रहल मौलिकता से फरक बिल्गाइठ ।
अझकल नेपाली भासा ओ थारु भासा म फेन हिन्दी उर्दू अंग्रेजी भासा क अतिक्रमण बा । हिन्दी उर्दू अंग्रेजी भासा क शब्ड क व्यापक प्रयोग हुइटा । यीहसे मौलिकता समाप्त हुइना डर बरहल बा ।

९.यूवा साहित्यओंर रुचि डेखैलेसेफें अन्य उमेरके मनैनके रुचि नैडेख्परठ कारण ?
उगते सुरज म प्रकाश फें टेज रहट । डुबटे सुरज म प्रकाश फे मन्ड रहट । मनैंन क स्वभाव म फें अइसिक प्रभाव रहठ । युवा साहित्यकार हुँक्र शारीरिक ओ मानसिक रुपसे ज्यादा सकृय ओ उत्साहित रठैं । अन्य उमेरके मनैनम डिन्चे सुस्तता रहट । इ कारणसे अइसिन बिल्गाइठ । युवा साहित्यकार क सकृयतासे साहित्य म लावा जाँगर ओ उत्साह बरहल बा । युवा हुँक्र भविष्य क कर्णधार हुइलक कारणसे साहित्य क विकास कैना जिम्मेवारी फेन बा । देश ओ समाजसे युवा साहित्यकारसे ढेउर सम्भावना बा ।

१०.वर्तमान थारु साहित्य लेखनक भविष्य कसिन बा ?
भविष्य एकडमसे उज्ज्वल बिल्गाइठ । थारु साहित्य आपन सांस्कृतिक प्रतिविम्व बनल बा । थारु साहित्य आपन माटीसे जुरल बा । सङ्ख्यात्मक ओ गुणात्मक विकासक लहर चलल बा । थारु साहित्य लेखक हुँक्र फेन उत्साहित आटैं । थारु साहित्यकार म राजनीतिक प्रतिद्वण्द्विता प्रभाव नै परल हो । आपसी समझदारी, सहयोग आडानप्रडान ओ सहकार्य कैना बिल्गाइठ । यी औरे भासा ओ समुदाय क साहित्यकार हुँक्रके लेना प्रेरणा क बाट हो । यी मौलिकता क जगेर्ना करना आवश्यक हो ।

११.युवावर्ग ओइने पोस्टा पहर्ना बानि नैहुइटिन् कनामे अप्नेक मत कसिन बा ?
डानडान इ समस्या बा । इ समय म पर्हना अनेक माध्यम क सुविधा हुइना क कारणसे पोस्टा पहर्ना बानी कम हुइल जैसिन बिल्गाइठ । अइसिन हुइलसेफें बर्हिया पोस्टा ट ढेउर ढेउर प्रचार ओ बिक्री हुइट काहुँ । साहित्यिक गतिविधि क प्रभावकारितासे पोष्टा पहर्ना बानि क विकास हुइटा । इ अनुभव कैल्याटुँ ।

१२.साहित्यके लाग अपन कर्लक प्रयास समुदायसे सम्मान करलहस् लागठ् कि नैलागठ ?
लागठ । जैसिक परिस्थिति अइलसेफें लेखकक साहित्यम लागल रहना आवश्यक बा । समाज एक ना एक डिन अवश्य सम्मान करठ । जैसिक साहित्यिक गतिविधि बर्हटे जाइ, पोस्टा प्रकाशित कइना प्रयास निरन्तर आघे बर्ही, लेखुइया बनैनक उत्साह म अभिवृद्धि हइटे जाइ समाज साहित्यकारनके सम्मान अवश्य करी । सबसे प्रमुख बाट हो साहित्य समाज के लाग होइक चाही ।

१३.काहे साहित्यमे कलम चलैना जरुरि मन्ठि ?
साहित्य समाजक उन्नति ओ प्रगतिक परिचायक हो । जौन समाज विकसित हुइ ओकर साहित्य फें विकसित रठा । विद्वान हुँक्र कहल्याटंै साहित्य मानव सभ्यता क चिनारी हो । सांस्कृतिक उन्नति क आढार फें साहित्य हो । इहे कारण से सामाजिक चेतना, जनजागरण ओ मानवीय भावनाक संचारके लाग साहित्यम कलम चलैना आवश्यक बा । कौन समाज हन आघे लैजैना पाछे लैजैना शक्ति साहित्यम रहठ् । समाजम सकारात्मक प्रभाव पर्ना साहित्यक विकास करना प्रत्येक समाजके लाग आवश्यक बा ।

१४.भासा, कला, साहित्य पहिचानके सवाल हो कनामे अप्नेहे का लागठ् ?
भासा, कला ओ साहित्य मनैनके पहिचानके मुख्य आढार हो । संस्कृति निर्माणक मुख्य आधार फेन भासा, कला, साहित्य हुइनाके कारणसे पहिचानक विकासके लाग याकर विकास फेन आवश्यक बा । साहित्य मनैनँ क आपन पहिचानक लेल प्रयास कैना प्रेरण डेठ । प्रत्येक समाज ओ राष्ट्रक पहिचान के सक्कु आढार निर्माण कैना काम म साहित्य सबसे आघे बा ।

१५.साहित्यमे लागके का पाइलहस लागठ, का गुमाइलहस लागठ ?
गुमइना बाट ट ओट्रा ख्याल नैंकैले आटुँ । साहित्यम लागक पइना सबसे मुख्य बाट ट मानवीयता, फराक सामाजिक सम्बन्ध ओ संघरिया, पाठक हुकनके प्रेम हो । समाजके लाग कुछ कइना, कुछ योगडान डेना साहित्य ही सिकाइल् । व्यक्तिगत संकुचनसे बिस्तारित होक फैलना स्वभाव क विकास साहित्य ही के डेल बा ।

१६.अन्त्यमे, जैटीजैटी का सन्देस डेहक चाहटी ?
सागरजी ओट्रा डुरसे आक म्वाँर संग अट्रा बाट कैली । महिनफें थारु भासाम आपन मनक बाट ढैना मौका मिलल । अपनि हे हार्डिक धन्यवाद बा ।

‘भासा, कला ओ साहित्य मनैनके पहिचानके मुख्य आढार हो’–कोपिला

खगेन्द्र गिरि ‘कोपिला’