गजलः मनके आँखी उघार डेहो

संगम चौधरी
४ जेष्ठ २०८०, बिहीबार
गजलः मनके आँखी उघार डेहो

गजल
सुरु करटुँ बिगरल ठाउँमे सवाँर डेहो ।
उछटे सेकम मनके आँखी उघार डेहो ।

साहित्यके फटुँवामे डौरल बटुँ मै यहाँ,
मोर दिलके कलम आउर टिस्लार डेहो ।

एकएक शब्दसे मनके फुलरिया सजाइटुँ,
मन नै परल बाट मनेमसे निकार डेहो ।

अपन मनमे संघारल बाट छिट्काइटुँ मै,
जिन्गीमे काम लग्ना शब्द किल ढार डेहो ।

मोर मनसे बहल एक एक अक्षरहे यहाँ,
गहिंरसे केराफटकके एकचो बिचार डेहो ।

संगम चौधरी
पुनवौस २ कंचनपुर

गजलः मनके आँखी उघार डेहो

संगम चौधरी