गजल
सुरु करटुँ बिगरल ठाउँमे सवाँर डेहो ।
उछटे सेकम मनके आँखी उघार डेहो ।
साहित्यके फटुँवामे डौरल बटुँ मै यहाँ,
मोर दिलके कलम आउर टिस्लार डेहो ।
एकएक शब्दसे मनके फुलरिया सजाइटुँ,
मन नै परल बाट मनेमसे निकार डेहो ।
अपन मनमे संघारल बाट छिट्काइटुँ मै,
जिन्गीमे काम लग्ना शब्द किल ढार डेहो ।
मोर मनसे बहल एक एक अक्षरहे यहाँ,
गहिंरसे केराफटकके एकचो बिचार डेहो ।
संगम चौधरी
पुनवौस २ कंचनपुर