अधिकार सबके सुनिश्चित रहेक चाहि

सीता थारु ‘निश्छल’
१५ जेष्ठ २०८०, सोमबार
अधिकार सबके सुनिश्चित रहेक चाहि

गजल
अधिकार सबके सुनिश्चित रहेक चाहि ।
नेपालीनके चाहना संविधान बनेक चाही ।

लालीगुरांस डाँफे मँजोर कृष्णसारसंगे,
हम्रे आपन अस्तित्व अप्नहें खोजेक चाही ।

नारी अशक्त पाछे परल वर्ग हुकन लाग,
अधिकार खोज्टी एकापसमे जुटेक चाही ।

निबुझल भेल्गन्जाहस् काजे सोंच्ठो टुहे्र,
जनताफें टो शिक्षित हुइनै बुझेक चाही ।

यी आदिवासी ओ भुमिपुत्र थारुनके हक,
जात्तिसे लावा संविधानमे लिखेक चाही ।

गजल
मनैनके एकठो डर हुइ सेकठ ।
ओकरफें कौनो जर हुइ सेठक ।

सोच्ठुं उ अबेरसम काजे करठंै
उहिनहेफें केक्रो कर हुइ सेठक ।

फल पैना टो तक्दिर फें चाहठ,
सोंचल उ महल खर हुइ सेकठ ।

सपना ओ रहर सबके भारी रहठ,
किसानके जिन्गी जुवा हर हुइ सेकठ ।

जहाँ कोइ उ मसानघाट कहल,
उह केक्रो स्वर्गहस घर हुइ सेकठ ।

सीता थारु ‘निश्छल’
बर्दिया

अधिकार सबके सुनिश्चित रहेक चाहि

सीता थारु ‘निश्छल’