सुर्खेत ओ दाङके सम्झना

वीरबदाहुर राजवंशी
२ जेष्ठ २०७८, आईतवार
सुर्खेत ओ दाङके सम्झना

कृष्णपुर गुलरिया कंचनपुरसे थारुनके धरोहर जोगराज चौधरीके नेतृत्वमे वडा नम्बर ३,५,६ के
अध्यक्ष क्रमश सुन्दर चौधरी, आशुराम चौधरी, नत्थुराम चौधरी ओ मै एक्ठो छोट गाडीम लगभग साँन्झ ७ बजेओर थारु लेखक संघके थारु साहित्य सम्मेलन कार्यक्रममे सहभागी हुइक लाग सुर्खेतके यात्रा सुरु हुइल । हमार इ यात्रा बहुआयामिक योजना बनल रह ।

गाभरमे बसेरा:-
इहक्रम म बाँके जिल्लाक गाभर भ्याली थारु होम स्टे म करिब रात १२ बजेओर खानपिन ओ बास हुइल । बिहानिक् नृत्यकर्म चिया गफ ओ अवलोकनसे
अइसिन महसुस हुइल कि यदि मनै आँट ओ साहस कर्बो कलसे हर काम करे सेक्जाइठ् । यीहे पाठ सिखे मिलल् । यी होम स्टे क सम्बन्धम बाँके राष्ट्रिय निकुञ्ज प्राकृतिक वनुवा ओ वन्यजन्तुसे जोरके स्थानीय रोजगार सिर्जना कैल बाट । यहाँके रहनसहन , संस्कार संस्कृति ,स्थानीय उत्पादनसिल
वस्तुके बजार, मनोरञ्जन शान्त ठाउँ, स्थानीय व्यक्तित्वके विकास, हरेक मानवहुकनके लगनशीलता यहाँ हुकहन्ठें रहल बौद्धिकताके सिकाइ आपन अनुकूल बमोजिम लौव डगर बनैटी बहुत सहज ओ खुल्लापन खुशी कराइल् ।

कार्यक्रमके बसाइ:-
२१ चैतके बिहान कार्यक्रम स्थान सुर्खेत छिरली ।कर्णाली प्रदेश थारु होम स्टे सुर्खेतम लगभग १२ बजेओर पुगली । कलुवा खाके कार्यक्रमम सहभागी हुइली । थारु लेखक संघक ५वाँ राष्ट्रिय थारु साहित्य सम्मेलनम बहुत दिग्गज तिख्खार देश भरके
थारु लगायत अन्य विद्वान हुकनसे मिलनभेट हुइल । उहाँ हुकनके विचार, कहाइ खोज अनुसन्धान मुलक समग्र सवालम जोरल विषय वस्तुके उत्थान भाषा ,संस्कृति ओ इतिहास  लुकल छिपल रहल सवालहे समेट्के लैजइना सामुहिक पहल ओ आह्वान दायित्व अपनत्व कराइल । हम्र गुलरिया, महेन्द्रनगर, बेलौरी ओ काठमाडौंसे आइल कंचनपुर जिल्लाके संघरियनसे भेठघाट संगे अइना २०७८ साल कार्यक्रमम हमार धरोहर जोगराज चौधरीके आँट ओ हिम्मत लन्ना हुइली । अइसिन राष्ट्रिय महत्व रख्ना कार्यक्रम कर्ना सौभाग्य ओ गर्वके महसुस हुइटा ।

रात बसेरा:-
ओहे सझियाक कार्यक्रम हुइल ठाउँसे २/३ किलोमिटर डख्खिन पछ्युँउ पातलगंगा थारु होम स्टे म बास हुइल । वहाँके सैल गाउँक् ३०/३५ घरधुरीक पानी पिना मुल एक्ठो पिपरक् रुख्वा तर बटिन् । उ रुख्वा नेपाल भर सपसे बर्वार हुइ कहिके कह तलह ।उ पातलगंगा होम स्टे गाउँ मसे बिहानिक् चिया पिके फेर कार्यक्रमम लग्ली । टमान थारु विद्वान लेखक हुकनक् किताब मेला, थारु आत्मनिर्भर ओ समय अनुसार व्यवसायी फे हुइँट कना होम स्टे के सन्देश मिलल् । सुर्खेत जिल्ला बुलबुले तलुवा ओ काँक्रेविहार मन्दिर बहुत चर्चित हुइलक् ओर्से हमार मनफे ओहोर टानल् ।

२०७८ सालके छैठौं राष्ट्रिय थारु साहित्य सम्मेलनके कार्यक्रम लेके हम्र छिन्चु होक सल्यान हुइटी  दाङ्ग जिल्ला चखौरा थारु सास्कृतिक संग्रहालयम २२ चैत सँझियक् बास लेह पुग्ली। यी संग्रहालयके संरक्षण  संवर्द्वन ओ विकास व्याकवार्ड सोसाइटी एजुकेशन वेसके अध्यक्ष, लुम्बिनी प्रदेशके मान्य
सांसद, नेपाली काँग्रेसक महासमिति सदस्य डिल्लीराज चौधरीके पहल ओ अगुवाइम रोजगार मुलक् व्यवसायीक विकाससे समष्टिगत थारुनक् भावना समेट्ना कोसिस करल बाट । धन्यवादके पात्र आशा भरोसाके केर्नि हुइँट् । हमार दाङ जिल्ला  जन्म कुन्दलीसे जोरल हुइलक् मारे यहाँ प्रवेश हुइटी कि बहुत आनन्द महसुस हुइल । काकर कि हमार पुर्खौली जन्म स्थान हो। उहिम मानक विकास कसिक हुइलक् हो ? यहाँके राजकाज के करे ? यहाँसे बसाइँ सराइ टमान ठाउँम के का कारणसे
हुइलक् हो ? यहाँसे पहिले आगमन कहाँसे हुइलक् हो ? मानव जातके विकास कहोरसे हुइलक् हो ? कना खिट्कोर्ले बाट । यहाँके अवलोकनसे मोर अनुसन्धान ओ गहिराइ कलक् इतिहास खिट्कोरेबेर जन्नी ओ थारु किल रलह । काकर कि वहाँके सांस्कृतिक संग्रहालय, जन्म कुन्दली, बसाइँ सराइ, लवाइ, खवाइ, भेषभुषा, पहिलक् वस्तु, प्रविधिक विकास वेल्सलक् विधि इ सक्कु गहिराइम जाके अध्ययन कर्ना दौरानम मै कहाँ पुग्नु कलसे दङ्गीशरण राजाके इतिहास, घनपट गुरुवाके प्रगन्ना, धातुके विकाससे पहिले बेलसल् इ सबम थारु अपनम आत्मनिर्भर रलह कनाम लग्गु पुग्नु । अब्बा थारु सम्वत २६४४ चलटा । इहिसे पहिले मनैन्के
विकासक् बारेम खिट्कोरल बा । जौन अब्बा हम्र ढेरसे ढेर जातजातिम विभक्त बटी । उ थारुनम नाइ रह कना सावित कर्ल बा ओ पुगल बाट ।

हजारौं बर्ष पहिले दङ्गीशरण राजा यहैंके
हुइँट कनाम सावित कर्ल ओ थारु राजाके इतिहास मिलल् । यहाँके आदिबासी भुमिपुत्र हुइट । यी इतिहाससे जोरटी थारुनक् टमान ठाउँम टमान कारणसे बसाइँ सराइ सरके आइल मिलठ् । तर फेन इ के हुइट ? कसिक यहाँ पुग्ल ? यहाँके पुर्खा के हो ? यहाँके इष्टमित्र गैगोतियार के हुइट ? कना विषयम अध्ययन अनुसन्धान कर पर्ना बिल्गाइठ् । अब्बक् कहाई यहिक रलह कनाम पुगल बटी । यी दङ्गीशरण कौन जातक् हुइट कना नैखुलल् हो ? अपन अपन अनुसन्धानके विषय बनल बा । एक्ठो विषयक लग्गु जरुर बटी कना लागठ् । राज्य एकिकरणक् नाउँम चार जात छत्तीस वर्णके फूलबारी कनाम बर्वार झाँपर मर्ल बा । ताकि हमारम कौनो छुवाछूत नैरह । थारु थरुनि किल रलह । भनाइक् अर्थ महिला ओ पुरुष किल रलह । तर ओकर पछिल्लो चरण बाहुन, क्षेत्री, ठाकुर, मगर, अहिर, मुसलमान, चमार, बंगाली लगायत हुकन अपन पाँट मिलाइल कहाइ टमान इतिहासकार, सामाजशास्त्री, विद्वान हुकनक् अध्ययन अनुसन्धान करटी लेख रचना पुस्तक पुस्तिकाम पर्ह मिलठ् ।थारुनम पाँट मिलाइबेर दुधभात खवाके मिलैठ ।

बंगाल बाराभाटसे एक्ठो अहिरा घुम्ती फिर्ती दाङ आपुग्ल । यहाँके रमणीय ठाउँ, चारुवर प्राकृतिक वनुवाँले घेरल् समथल उर्वरा जमिन यहाँके चिरैचुरुङ्गन वन्यजन्तु ओ कंचन पानीमे रमागैल । उहाँ बरा जन्नाहा गुरैपाटी ओ जडिबुटी बैडवा रलह । ओ सक्कु दाङ जिल्लाके देशबन्धी गुरुवाफे रलह । उहक्रम यहाँके सुग्घर लवन्डिनसे मैयाँ प्रेम बैठलिन, लट्पटागैल । टब अहिराहे दुधभात खवाके अपनमे पाँट मिलैल । लवन्डी अहिरा नाइ बनलि कि
अहिरा थारु बनल कना भगवती चौधरीके तर्क बटिन । जौन अहिराहे घनपट गुरुवा कहिके चिन्हजाइठ् ।
घनपट गुरुवाके कहानी गीत  ओ मन्त्रम बा । एकर बारेम हमार अवलोकन समुहके धरोहर जोगराज चौधरी लेख लिख्ना बाचा कर्ल बाट ।

उहाँहुकनके गोद मसे चारठो छावा जन्मल । मड्वा,भेर्वा,जगन्नठिया ओ डेमनडौरा हुइट । घनपट गुरुवाके अपटालीके बाद चारु भैया देशबन्धि बाँट्लेल् । सक्कु भाइ देशबन्धि चलैना दौरानम भेर्वा (मन्हला) डेमनडौरक् बाँट छिनलेल् । टब डेमनडौरा भुनभुनाइँठ कोइभर एक्ठो नाइ, कोइभर डु/डु ठो कहिके गुनगुनैना क्रमम टिनु भाइ सल्लाह कैक सक्कु भैयन ओर जाइ मिल्ना कहिके बराइन बनाडेल ।आझ इ डाडुभैया अब्बा नाइ रहिक डेउडुर्गनम परिणत होगैल बाट । यी बेला यहाँहुकनक् पहिचान डेबी डेउंटा होस्याकलक् कारण थारुनक् अपन अपन डेउटनक् नाउँसे थारुनके थर बा । हरेक थारुनके गाउँम भुइँह्यार सकभर गाउँक डख्खिन बनैले रठ । प्रत्येक थारुनक् उत्तर डख्खिन लम्बा घरक् सपसे उत्तर पुर्वक फर्का डेहुरार देशबन्धि गुरुवा, घरगुरुवा लगायत घोरुवा ठान लेल रठ ।बहरिम ढेंगरजुवा ओ अंगनामे मरुवा डेमनडौरा (चिम्लहुवा)
घोरुवा रहठ् । यी सब गुरबाबक् जन्मौटीम बा । डेउडुर्गनक् बारेम गुरबाबक् जन्मौटी, बर्किमार, अष्टिम्की, डसैंहियाँ, ढमार, माँगर लगायतम बर्कानाच, मुंग्रहवा, लट्ठहवा, नाचम गैना गीत वा मन्त्र फे हो । हमार पर्हल समय अनुसारके गीत नाच एक्ठो परेडफे हो । यधपी वास्तविक गैना गीत हरेक मन्त्रसे जुरल बा । लेकिन अब्बक् पुस्ताके लाग गीत हो, काखर कि उहीँ उपयोग कर्ना ज्ञान नाइ हो । चासोफें नैह‍ो । बेल्सबेर आधुनिक सिर्जना कैके भाटांग भुटुंग करल डेख्जाइठ् ।

बसाइ:-
वनजंगल, तालतलैया, नदिनाला किनार, समथल उर्वराजमिन, संयुक्त परिवार उत्तर डख्खिन लम्बा (दुई पाखे) फुस्के घर, प्रगन्ना, गुचमुचाइल बस्तीम बैठ्टी आइल बाट ओ अइसिन विशेषता मिलठ् ।जब धातुके विकास हुइनासे पहिले “माटिक ओरौना, माटिक किछौना” सब माटिक भाँरा अपनहि बनाके बेल्सिट् ।ढकिया, ग‍ोंडरि, छिटुवा, खैचा, बन्ठी, हेल्का, डिलिया, ढरहिया, खोंघिया, बाँसक् गुर्टा, बाँण, ढेंकि, चकिया, कोल, बहिंगा, बनकस् इ सब प्रकृति मुलक् वस्तुके उपयोगसे नितान्त रुपम प्रकृति पुजक् हुइट । हमार डेउडुर्गनके पुजा हेरबेर हिन्दु, बुद्विज्म, मुसलमानी हुकनक् समिश्रण डेउठानम मिलठ् । धार्मिक दृष्टिले फेन समानता डेख्जाइठ् ।

लवाइखवाइ:-
हमार समाजम थारु ओ थरुनिकिल रलक् मारे संयुक्त परिवारम बैठना हुइलक् ओर्से विशेषतः थारुनके उज्जर लगौंटी, झुलुवा, टोपी ओ थरुनीक् अंगिया, चोलिया, बिलोज, नेहंगा, गोनिया रहिन । सकभर सक्कुहुन पुग्ना एक्क रंग, एक्क ठानक् कपरा हुइक पर्ना आभुषण सक्कु चाँदीक बेल्सिंठ् । कलेसे नठिया भरिक सोनक् रहिन । गोराके पैला सकभर खाली वा पवला लगाइँठ् । ओस्टके लगैनाम फे पुर्ण समानुपातिक बाँडचुट्के लगाइँठ् । खैनाम जौन डेउडुर्गन डेठ उ सब पर्साडके रुपम खैठ पिठ । खैनापिना सक्कु घरपरिवार ” बाँट पुग भले खाइ नापुग” कहिके घरक् कोइ सदस्यन नैछुट्ना मेरिक बाँडचुट्क खैना चलन बा । पुर्ण रुपमे बराबर भाग लेनाडेना चलन रहे ओ बा फें । थारु हुक्र परम्परागत कम्युनिज्म बाट, कलसे जात विहिन ल, धर्मविहिन,
वर्गविहिन कना विषयम लावा नाइ हो । बरु समय परिस्थिति अनुसार बडल्टी जैना सवालम भरिक प्रविधिके विकासम द्रुत गति लेह नाइ सेक्नाम कुछ लग्गे हुइसेकठ् कना बा । थारुनक् राज्य संरचनाम खस लगायत अन्य हुकनक् रुपान्तरण कर्ना विषयम समय लागि लेकिन हमार ट यह लन्ना हो । यी उत्पीडित वर्ग हुकनक् लोकतान्त्रिक
गणतन्त्रके बारेम प्रशिक्षण स्कुलिङ्ग खासे जरुरत नाइ हो । ताकि अपनहि उ सिस्टम रहि ओ बा फें ।
                
ओरौनीमे:-
जौन उपर उल्लेखित बहुआयामिक उद्देश्य बमोजिम कंचनपुर गुलरियासे गाभर भ्याली, कर्णाली
प्रदेश थारु होम स्टे, पातलगंगा थारु होम स्टे, काँक्रेविहार मन्दिर, थारु लेखक संघके आयोजनामे सुर्खेत ५वाँ राष्ट्रिय थारु साहित्य सम्मेलन उत्साह, ज्ञानवर्द्वक भाषा, संस्कृति ओ इतिहास टमान विद्वत व्यक्तित्वनक् ठें रहल तरिका सीप ठोर बहुत सिक्गैल । हमार यात्रा क्रमसे अपन कूल डेउटनके बारेम छलफल करटी गैली । रोजगारके अवसर सिर्जनाके खोजी, अभ्यास अनुभव साटासाट, विकेन्द्रीकरण रहल उर्जा, व्यवसायीक डगर बनैनामे
सफल हुइली कनाम विश्वास हुइल बा । ओ अइना राष्ट्रिय थारु साहित्य कार्यक्रम कंचनपुर कर्ना बाचा करगैल । कार्यक्रममे जैसिक फें सहभागी हुइक् परि कना झबक्का लगुइया साहित्यकार पत्रकार सागर कुस्मी हृदयसे सम्झना । यी सक्कु अवसर चुनौती जुराडेलक् ओर्से आयोजक लेखक संघहे बहुत बहुत धन्यवाद । जय गुर्बाबा ।
वीरबहादुर राजवंशी
कृश्नपुर-६ बन्जरिया कंचनपुर

सुर्खेत ओ दाङके सम्झना

वीरबदाहुर राजवंशी

कृश्नपुर-६ बन्जरिया कंचनपुर